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जिसने कभी ताने दिए आज दे रहे शाबाशी, जुबेर खां ने दिव्यांगता की बेड़ियां तोड़ बनाया मुकाम - NATIONAL WHEELCHAIR CRICKETER

जानिए अलवर के जुबेर खां की कहानी, जिन्होंने दिव्यांगता को हराकर अपना सपना सच कर दिखाया है.

नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट के खिलाड़ी जुबेर खां
नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट के खिलाड़ी जुबेर खां (ETV Bharat Alwar)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 18, 2025, 12:11 PM IST

अलवर : जब हौसले बुलंद हों तो कोई मुश्किल आपके सपनों के आड़े नहीं आती. अलवर के तिजारा के छोटे से गांव बगथला के रहने वाले जुबेर खां ने इसे सच कर दिखाया है. जुबेर को बचपन से क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन ​दिव्यांगता इसमें आड़े आ जाती था. उन्होंने बताया कि जब भी भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता तो टीवी पर मैच देखकर मन में सोचता कि काश वह भी क्रिकेट खेल पाता तो खूब चौके, छक्के लगाता. हालांकि, जुबेर को मन में विश्वास था कि उसका सपना कभी न कभी यर्थाथ में बदलेगा.

जुबेर के सपने को सच करने में उनके 10 वर्षीय पुत्र उमर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसने न केवल क्रिकेट खेलने में सहयोग दिया, बल्कि हमेशा उनके साथ खड़ा रहा. पिता की कामयाबी के लिए उमर ने कभी पिता की व्हीलचेयर को संभाला तो कभी घर पर नेट लगाकर बल्लेबाजी का अभ्यास कराया. इसी का नतीजा रहा कि वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में अलवर का नाम देश भर में गौरवान्वित कर सके.

जानिए अलवर के जुबेर खां की कहानी (ETV Bharat Alwar)

पढे़ं. Rajasthan: दृष्टिहीन बॉक्सर ने संवारी कई जिंदगियां, उस एक हादसे ने बदल दी पूरी दुनिया

नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट के खिलाड़ी जुबेर खां का कहना है कि वह बचपन से दिव्यांग हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है और रोजगार का कोई साधन नहीं है. परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है. दिव्यांग पेंशन के अलावा पत्नी सिलाई का काम कर थोड़ा बहुत कमाती है. इसी से परिवार का गुजर बसर हो पाता है. ऐसी स्थिति में व्हीलचेयर क्रिकेट खेलना आसान नहीं था, लेकिन मन में विश्वास था कि वह एक दिन यह सपना जरूर सच करेगा. वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में खेल चुके हैं और अब उनका सपना भारत के लिए खेलना है.

पढ़ें. समाज ने दुत्कारा, फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेर रही भरतपुर की पैरा प्लेयर सोनिया चौधरी

आसान नहीं था सपना सच करना : जुबेर खां के लिए व्हीलचेयर क्रिकेट खेलने का सपना सच कर पाना आसान नहीं था. दिव्यांगता के चलते लोग ताने मारते थे, लेकिन बेटे उमर की हौसला अफजाई और सपोर्ट के साथ जुबेर ने दिव्यांगता को हरा दिया. बेटे उमर ने अपने पिता को बल्लेबाजी का अभ्यास कराया. वह खुद बॉलर बनकर पिता के लिए बॉलिंग करता और उन्हें बल्लेबाजी का अभ्यास कराता. पुत्र उमर के विश्वास का ही नतीजा है कि जुबेर खां आज दिव्यांग क्रिकेट टीम का बेहतरीन ऑलराउंडर हैं. वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में राजस्थान की ओर से खेल रहे हैं.

पढ़ें. दोनों पैर खोए तो मां ने दी हिम्मत, अब राहुल नेशनल पैरा गेम्स में लेंगे हिस्सा, जुगाड़ के धनुष से साध रहे निशाना

दोस्त की सलाह ने बदल दी तकदीर : जुबेर के दोस्त ने एक दिन फोन कर बताया कि जिला स्तरीय व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता के ट्रायल चल रहे हैं. दोस्त की बात सुनकर पहले तो वह झिझका, लेकिन दोस्त ने उसकी हिम्मत बढ़ाकर विश्वास जगाया. इसके बाद वह ट्रायल देने गया और शानदार प्रदर्शन किया, जिससे उसका टीम में चयन हो गया. दोस्त की हौसला आफजाई उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ और उसके बाद वह क्रिकेट में आगे बढ़ता ही गया. पहले जुबेर ने जिला स्तर पर क्रिकेट खेला और बाद में नेशनल स्तर की व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में राजस्थान की ओर से शामिल हुए. अब वह तीन साल से लगातार क्रिकेट खेल रहे हैं. कभी दिव्यांगता को अभिशाप कहने वाले परिजन भी अब जुबेर खां को व्हीलचेयर पर क्रिकेट खेलता देख स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

अलवर : जब हौसले बुलंद हों तो कोई मुश्किल आपके सपनों के आड़े नहीं आती. अलवर के तिजारा के छोटे से गांव बगथला के रहने वाले जुबेर खां ने इसे सच कर दिखाया है. जुबेर को बचपन से क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन ​दिव्यांगता इसमें आड़े आ जाती था. उन्होंने बताया कि जब भी भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता तो टीवी पर मैच देखकर मन में सोचता कि काश वह भी क्रिकेट खेल पाता तो खूब चौके, छक्के लगाता. हालांकि, जुबेर को मन में विश्वास था कि उसका सपना कभी न कभी यर्थाथ में बदलेगा.

जुबेर के सपने को सच करने में उनके 10 वर्षीय पुत्र उमर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसने न केवल क्रिकेट खेलने में सहयोग दिया, बल्कि हमेशा उनके साथ खड़ा रहा. पिता की कामयाबी के लिए उमर ने कभी पिता की व्हीलचेयर को संभाला तो कभी घर पर नेट लगाकर बल्लेबाजी का अभ्यास कराया. इसी का नतीजा रहा कि वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में अलवर का नाम देश भर में गौरवान्वित कर सके.

जानिए अलवर के जुबेर खां की कहानी (ETV Bharat Alwar)

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नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट के खिलाड़ी जुबेर खां का कहना है कि वह बचपन से दिव्यांग हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है और रोजगार का कोई साधन नहीं है. परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है. दिव्यांग पेंशन के अलावा पत्नी सिलाई का काम कर थोड़ा बहुत कमाती है. इसी से परिवार का गुजर बसर हो पाता है. ऐसी स्थिति में व्हीलचेयर क्रिकेट खेलना आसान नहीं था, लेकिन मन में विश्वास था कि वह एक दिन यह सपना जरूर सच करेगा. वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में खेल चुके हैं और अब उनका सपना भारत के लिए खेलना है.

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आसान नहीं था सपना सच करना : जुबेर खां के लिए व्हीलचेयर क्रिकेट खेलने का सपना सच कर पाना आसान नहीं था. दिव्यांगता के चलते लोग ताने मारते थे, लेकिन बेटे उमर की हौसला अफजाई और सपोर्ट के साथ जुबेर ने दिव्यांगता को हरा दिया. बेटे उमर ने अपने पिता को बल्लेबाजी का अभ्यास कराया. वह खुद बॉलर बनकर पिता के लिए बॉलिंग करता और उन्हें बल्लेबाजी का अभ्यास कराता. पुत्र उमर के विश्वास का ही नतीजा है कि जुबेर खां आज दिव्यांग क्रिकेट टीम का बेहतरीन ऑलराउंडर हैं. वह नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में राजस्थान की ओर से खेल रहे हैं.

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दोस्त की सलाह ने बदल दी तकदीर : जुबेर के दोस्त ने एक दिन फोन कर बताया कि जिला स्तरीय व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता के ट्रायल चल रहे हैं. दोस्त की बात सुनकर पहले तो वह झिझका, लेकिन दोस्त ने उसकी हिम्मत बढ़ाकर विश्वास जगाया. इसके बाद वह ट्रायल देने गया और शानदार प्रदर्शन किया, जिससे उसका टीम में चयन हो गया. दोस्त की हौसला आफजाई उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ और उसके बाद वह क्रिकेट में आगे बढ़ता ही गया. पहले जुबेर ने जिला स्तर पर क्रिकेट खेला और बाद में नेशनल स्तर की व्हीलचेयर क्रिकेट प्रतियोगिता में राजस्थान की ओर से शामिल हुए. अब वह तीन साल से लगातार क्रिकेट खेल रहे हैं. कभी दिव्यांगता को अभिशाप कहने वाले परिजन भी अब जुबेर खां को व्हीलचेयर पर क्रिकेट खेलता देख स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

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