पटना: बिहार के प्रमुख क्षेत्रीय दल प्रदेश तक ही सिमट कर रह गए हैं. बिहार से बाहर इनकी ताकत लगातार घट रही है, इसलिए झारखंड विधानसभा चुनाव में बिहार के क्षेत्रीय दलों को गठबंधन के बड़े दलों ने तवज्जो नहीं दिया. एनडीए में बिहार के सत्तारूढ़ दल जेडीयू को मात्र दो सीट ही दी गयी, जबकि वह 11 सीटों पर दावा कर रही थी. इसी तरह इंडिया ब्लाक में बिहार के प्रमुख दल राजद को मात्र 6 सीट मिली. इसको लेकर तेजस्वी यादव में नाराजगी देखी जा रही है.
कभी बोलती थी लालू की तूतीः राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की कभी संयुक्त बिहार में तूती बोलती थी. 1990 के दशक में लालू यादव का सिक्का चलना शुरू हुआ. बिहार ही नहीं केंद्र में भी सरकार बनाने और बिगड़ने में बड़ी भूमिका निभाने लगे. लेकिन आज पड़ोसी राज झारखंड में भी लालू प्रसाद यादव का प्रभाव सीट बंटवारे में नहीं दिखा. झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने आरजेडी को आधा दर्जन सीटों पर ही समेट दिया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि लालू प्रसाद यादव का अब राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव घटा है.
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन गयाः बिहार के किसी क्षेत्रीय दल को पिछले 14 साल से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं मिला है. आरजेडी को 2008 में एक बार राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जरूर मिला, लेकिन 2 साल में ही छिन गया. वहीं जदयू के 2003 में गठन के बाद से राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है. 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव की संयुक्त बिहार में तूती बोलती थी. झारखंड के अलग होने के बाद भी बिहार के प्रमुख दलों की ताकत झारखंड में दिखी थी, लेकिन हर चुनाव के बाद लगातार घट रही है.
2005 में राजद के थे 7 विधायकः 2005 में राजद के 51 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. 7 उम्मीदवार चुनाव जीते थे. वोट प्रतिशत 8.48% था. 2009 में राजद उम्मीदवारों की संख्या 56 हो गई, लेकिन विधायकों की संख्या घटकर 5 हो गई. वोट प्रतिशत भी घटकर 5.03% हो गया. 2014 में एक भी सीट नहीं मिली और वोट प्रतिशत घटकर 3.13 हो गया. 2019 में राजद ने सात उम्मीदवार उतारे. एक पर जीत हुई, लेकिन वोट प्रतिशत घट गया.
पार्टी मजबूत करने में लगे हैंः राजद प्रवक्ता अरुण कुमार का कहना है कि राजद की ताकत कम नहीं हुई है. राजद 2008 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त कर चुका है और उस समय बिहार के अलावे झारखंड में भी राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ था. मणिपुर, नगालैंड में भी पार्टी की स्थिति बेहतर थी. हालांकि 2 साल तक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला रहा, उसके बाद हमारी शक्ति जरूर घटी है. लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हम लोग फिर से पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं.
"झारखंड में झामुमो और कांग्रेस ने एक तरफा 70 सीटों पर लड़ने का जिस प्रकार से ऐलान किया उस पर हम लोगों की नाराजगी थी. राजद की ताकत को कम आंका गया है. झारखंड में बिना राजद के सहयोग से सरकार नहीं बन सकती है."- अरुण कुमार, राजद प्रवक्ता
राजद को तवज्जो नहीं दे रहा गठबंधनः बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री जयंत राज का कहना है कि लालू प्रसाद यादव की ताकत लगातार घट रही है. वह दिख भी रहा है. पहले बिहार में भी उनकी सरकार थी और दूसरे राज्यों में भी उनकी स्थिति बेहतर थी. लेकिन, लोकसभा चुनाव में ही देखिए बिहार में कुछ सीटों पर सिमट गए. मंत्री जयंत राज ने कहा कि लालू प्रसाद यादव की ताकत बिहार और बाहर लगातार घट रही है, इसलिए उनके जो घटक दल भी उन्हें बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं.
सीट बंटवारे में दिख रहा असरः राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे का कहना है कि लालू प्रसाद यादव ने बिहार में लंबे समय तक शासन किया है. केंद्र में भी सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं. एक समय राष्ट्रीय नेता जरूर थे, लेकिन अब राष्ट्रीय नेता नहीं रहे. प्रभाव घटना स्वाभाविक है, क्योंकि बिहार से बाहर पार्टी का विस्तार नहीं हुआ. झारखंड में जरूर उपस्थिति है लेकिन बहुत बड़ी हैसियत वहां भी अब नहीं है. झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी बड़ी है. इसलिए उनके शर्तों के हिसाब से ही गठबंधन में रहने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
"1990 के दशक में जरूर लालू प्रसाद यादव की संयुक्त बिहार में तूती बोलती थी. यही स्थिति नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की भी है. जिस गठबंधन के साथ हैं उनके साथ तालमेलल बैठाना दोनों दलों की मजबूरी है."- सुनील पांडे, राजनीतिक विश्लेषक
तेजस्वी ने संभाला मोर्चा: लालू प्रसाद यादव की ताकत बिहार में भी घटी थी. 2010 में 22 विधायक पर पहुंच गए थे. 2015 में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में आरजेडी की वापसी हुई थी. अब तेजस्वी यादव राजद की कमान संभाल रहे हैं. 2020 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे थे. हालांकि, इसके पीछे एनडीए के घटक दलों के बीच आपसी विवाद रहा था. लोकसभा चुनाव में भी आरजेडी का बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा. बिहार में केवल चार सीटों पर जीत मिली है. झारखंड में भी तेजस्वी यादव ने मोर्चा संभाला है.
जदयू की भी घटी ताकतः झारखंड की पहली सरकार बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी थी. समता पार्टी के पांच और जनता दल के एक विधायक मंत्री बने थे. 2003 में समता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया, जो जदयू बना. 2005 के चुनाव में जदयू ने 16 उम्मीदवार खड़े किए थे. 6 जीती और 4% वोट मिला था. 2009 के विधानसभा चुनाव में जदयू दो सीट जीती. वोट प्रतिशत भी घटकर 2.78% हो गया. 2014 और 2019 के चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. वोट प्रतिशत भी घटा.
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