रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट के लिए पार्टी बदलने वाले नेताओं की फेहरिस्त अच्छी खासी रही. कई बागियों को अलग-अलग दलों ने सिर आंखों पर भी बिठाया भी. कुल 12 नेताओं ने दल बदल कर भाग्य आजमाया था. इनमें से पांच को जनता ने नकारा दिया, जबकि सात प्रत्याशी अपना लोहा मनवाने में सफल रहे.
इनको मिला दल बदलने का फायदा
इस लिस्ट में पहला नाम आता है चंपाई सोरेन का, झामुमो से भाजपा में आने पर पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में प्रोजेक्ट किया था. उनकी वजह से भाजपा को कोल्हान की एसटी सीटों पर फायदा मिलने की उम्मीद थी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. वैसे चंपाई सोरेन सरायकेला सीट बीजेपी की झोली में डालने में सफल रहे. उन्होंने झामुमो के गणेश महली को 20,447 वोट के अंदर से हराया.
उमाकांत रजक ने दर्ज की जीत
दल बदलने का लाभ उठाने वालों में दूसरा नाम है उमाकांत रजक का. लंबे समय से आजसू के साथ जुड़े रहे उमाकांत रजक का चंदनकियारी से टिकट मिलना असंभव था. क्योंकि यहां से भाजपा के नेता अमर बाउरी मैदान में थे. लिहाजा, राजनीतिक जमीन खिसकती देख उमाकांत रजक ऐन मौके पर झारखंड मुक्ति मोर्चा में चले गए. उन्होंने 33, 733 वोट के अंतर से जीत हासिल की. जेएलकेएम के अर्जुन रजवार ने 56, 294 वोट लाकर उमाकांत रजक की जीत की राह आसान कर दी. यहां भाजपा के अमर कुमार बाउरी तीसरे स्थान पर चले गए.
लुईस मरांडी को पार्टी बदलने का मिला फायद
डॉ लुईस मरांडी भी पार्टी बदलकर लाभ उठाने में सफल रहीं. दुमका सीट पर सुनील सोरेन के भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने से नाराज डॉ लुईस मरांडी ने झामुमो का दामन थामा और जामा सीट से 5738 वोट के अंतर से जीत गईं, जहां कभी सीता सोरेन झामुमो की टिकट पर जीता करती थीं.
राधाकृष्ण किशोर ने दर्ज की जीत
चुनाव के वक्त दल बदलने का फायदा राधा कृष्ण किशोर को भी मिला. उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर छतरपुर में भाजपा विधायक पुष्पा देवी को हराया. यहां राजद प्रत्याशी विजय कुमार के चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन के वोट में बिखराव के बावजूद राधा कृष्ण किशोर सिर्फ 736 वोट के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे. राधा कृष्ण किशोर छतरपुर सीट पर 1980, 1985 और 1995 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. इसके बाद जदयू, भाजपा, आजसू और राजद में भी गए. इस बार भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने कांग्रेस में वापसी की थी.
मंजू देवी ने केदार हाजरा को हराया
चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गई मंजू देवी जमुआ सीट जीतने में सफल रहीं. उन्होंने केदार हाजरा को 32631 वोट के अंतर से हराया. दरअसल जमुआ में केदार हाजरा भाजपा के सिटिंग विधायक थे. लेकिन पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटकर कांग्रेस नेत्री रहीं मंजू देवी को प्रत्याशी बना दिया था.
बरकट्ठा से भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले अमित यादव ठीक चुनाव के वक्त बीजेपी में शामिल हुए थे. अमित को झामुमो के जानकी प्रसाद यादव ने कड़ी टक्कर दी. अमित यादव सिर्फ 3660 वोट के अंतर से जीत पाए.
हारने वाले दल बदलू प्रत्याशी
2019 में एनसीपी की टिकट पर हुसैनाबाद सीट जीतने वाले कमलेश कुमार सिंह ने चुनाव के ठीक पहले भाजपा ज्वाइन किया. लेकिन राजद के संजय कुमार सिंह यादव से 34364 वोट के अंदर से हार गए. यहां भाजपा के बागी नेता विनोद कुमार सिंह ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़कर 18077 वोट हासिल किया जो कमलेश सिंह की हार का एक प्रमुख कारण बना.
बोरियो सीट पर भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे लोबिन हेंब्रम भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए. उनको झामुमो के धनंजय सोरेन 19, 273 वोट के अंतर से हरा दिया. इस लिस्ट में चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन का भी नाम है. उनको भाजपा ने घाटशिला से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाबूलाल सोरेन 22, 446 वोट से हार गए.
गिरिडीह के जमुआ में भाजपा का टिकट नहीं मिलने पर झामुमो में गए केदार हाजरा अपनी सीट गंवा बैठे. दल बदल कर नई राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे जेपी पटेल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा छोड़कर जीपी पटेल ने हजारीबाग सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा के मनीष जायसवाल से हार गए थे. इस बार कांग्रेस ने उन्हें मांडू से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन आजसू के निर्मल महतो से सिर्फ 231 वोट के अंतर से हार गए.
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