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झाबुआ में अब इंसानी स्वरूप में नजर आएंगे शुभंकर, मतदान के लिए वोटर्स को करेंगे जागरूक - jhabua bagheera in human form

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 31, 2024, 10:10 PM IST

झाबुआ जिला प्रशासन ने बघीरा के जोड़े को अब इंसानी रूप देने जा रहा है. प्रशासन ने पहले इस बघीरा के जोड़े को काका-काकी नाम देते हुए शुभंकर के रूप में लॉन्च किया था.

JHABUA BAGHEERA IN HUMAN FORM
झाबुआ में अब इंसानी स्वरूप में नजर आएंगे शुभंकर, मतदान के लिए वोटर्स को करेंगे जागरूक

झाबुआ। मतदाता जागरूकता अभियान के तहत प्रशासन ने जिस बघीरा के जोड़े को चुनावी काका-काकी का नाम देते हुए शुभंकर के रूप में को लॉन्च किया था. अब वे इंसानी शक्ल में नजर आएंगे. लगातार हो रहे सामाजिक विरोध को देखते हुए प्रशासन को बैकफुट पर आते हुए आठ दिन में अपना निर्णय बदलना पड़ा है.
गौरतलब है कि गत 22 मार्च को कलेक्टर ने मतदाता जागरूकता अभियान के तहत बघीरा के जोड़े को लोकसभा चुनाव के लिए शुभंकर के रूप में लॉन्च किया था. इन्हें नाम दिया गया- "चुनावी काका और काकी". इसके बाद से ही आदिवासी संगठन विरोध पर उतर आए.

आदिवासी संगठनों का कहना था, पशु को आदिवासी परिधान पहनाकर शुभंकर बनाकर प्रशासन ने आदिवासी संस्कृति का अपमान किया है. बढ़ते विरोध के चलते आखिरकार प्रशासन को शुभंकर में बदलाव करना पड़ गया. हालांकि उनका पहनावा तो वही है, लेकिन शक्ल-सूरत बघीरा की जगह इंसान की हो गई है.

अब फिर से प्रिंट करवाने होंगे शुभंकर के फ्लेक्स

प्रशासन द्वारा बघीरा के जोड़े को शुभंकर बनाए जाने के बाद सभी नगरीय निकायों और जनपदों ने अपने स्तर पर इनके फ्लेक्स प्रिंट करवाते हुए अलग -अलग स्थानों पर लगवा दिए थे. चूंकि अब शुभंकर में बदलाव कर दिया गया है, लिहाजा अब ये सारी कवायद नए सिरे से करना होगी. ऐसे में अब बड़ा सवाल है कि जो अतिरिक्त खर्च होगा. उसके लिए फंड का इंतजाम कहां से किया जाएगा?

JHABUA BAGHEERA IN HUMAN FORM
झाबुआ में अब इंसानी स्वरूप में नजर आएंगे शुभंकर

इन्होंने किया था विरोध

जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के प्रदेश प्रवक्ता अनिल कटारा ने कलेक्टर से मुलाकात कर बताया था कि इस शुभंकर से आदिवासी समाज कहीं न कहीं खुद को आहत महसूस कर रहा था. उनका कहना था पशुओं से हमारी तुलना नहीं होना चाहिए.

भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा नमक संगठन ने भी इसे लेकर ज्ञापन सौंपा था. संगठन के सदस्यों का कहना था आदिवासी क्षेत्र में रहकर आदिवासी संस्कृति का सम्मान नहीं हो रहा है. चुनावी काका का जो चित्र है. वह भील समुदाय के आराध्य देव मुकुटधारी बाबा बुड़वा मोटा धणी बाबादेव का है. जबकि चुनावी काकी का चित्र भीली संस्कृति के पहनावे के अंतर्गत भीली महिला का है. दोनों में जंगली जानवरों के मुख सहित जानवरों के अंगों का समावेश किया गया है. इससे हमारे भील संस्कृति का अपमान हुआ है.

जिला पंचायत सदस्य व युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विजय भाबर ने भी इन शुभंकर के विरोध में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कैंपेन चला दिया था. उन्होंने लिखा था- शुभंकर को जानवर के रूप में प्रदर्शित करने के साथ उनकी वेशभूषा हमारे आदिवासी समाज को दर्शाती है. प्रशासन का यह कृत्य निंदनीय है.

यहां पढ़ें...

ढाई अक्षर नाम का अनोखा प्रत्याशी, 13 चुनाव लड़ने के बाद भी वोट मांगने नहीं जाता किसी के घर

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कुछ संगठनों के सुझाव पर शुभंकर में आंशिक संशोधन किया है

जिला पंचायत सीईओ व नोडल अधिकारी जितेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि 'कुछ संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने जिला प्रशासन से मुलाकात कर शुभंकर के स्वरूप में संशोधन किए जाने को लेकर ज्ञापन दिया था. इस मुद्दे पर संवेदनशीलता से विचार करते हुए लोकसभा चुनाव के शुभांकरों में आंशिक संशोधन किया गया है. हमारा उद्देश सभी की भावनाओं का सम्मान रखते हुए मतदान का प्रतिशत बढ़ाना है.'

झाबुआ। मतदाता जागरूकता अभियान के तहत प्रशासन ने जिस बघीरा के जोड़े को चुनावी काका-काकी का नाम देते हुए शुभंकर के रूप में को लॉन्च किया था. अब वे इंसानी शक्ल में नजर आएंगे. लगातार हो रहे सामाजिक विरोध को देखते हुए प्रशासन को बैकफुट पर आते हुए आठ दिन में अपना निर्णय बदलना पड़ा है.
गौरतलब है कि गत 22 मार्च को कलेक्टर ने मतदाता जागरूकता अभियान के तहत बघीरा के जोड़े को लोकसभा चुनाव के लिए शुभंकर के रूप में लॉन्च किया था. इन्हें नाम दिया गया- "चुनावी काका और काकी". इसके बाद से ही आदिवासी संगठन विरोध पर उतर आए.

आदिवासी संगठनों का कहना था, पशु को आदिवासी परिधान पहनाकर शुभंकर बनाकर प्रशासन ने आदिवासी संस्कृति का अपमान किया है. बढ़ते विरोध के चलते आखिरकार प्रशासन को शुभंकर में बदलाव करना पड़ गया. हालांकि उनका पहनावा तो वही है, लेकिन शक्ल-सूरत बघीरा की जगह इंसान की हो गई है.

अब फिर से प्रिंट करवाने होंगे शुभंकर के फ्लेक्स

प्रशासन द्वारा बघीरा के जोड़े को शुभंकर बनाए जाने के बाद सभी नगरीय निकायों और जनपदों ने अपने स्तर पर इनके फ्लेक्स प्रिंट करवाते हुए अलग -अलग स्थानों पर लगवा दिए थे. चूंकि अब शुभंकर में बदलाव कर दिया गया है, लिहाजा अब ये सारी कवायद नए सिरे से करना होगी. ऐसे में अब बड़ा सवाल है कि जो अतिरिक्त खर्च होगा. उसके लिए फंड का इंतजाम कहां से किया जाएगा?

JHABUA BAGHEERA IN HUMAN FORM
झाबुआ में अब इंसानी स्वरूप में नजर आएंगे शुभंकर

इन्होंने किया था विरोध

जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के प्रदेश प्रवक्ता अनिल कटारा ने कलेक्टर से मुलाकात कर बताया था कि इस शुभंकर से आदिवासी समाज कहीं न कहीं खुद को आहत महसूस कर रहा था. उनका कहना था पशुओं से हमारी तुलना नहीं होना चाहिए.

भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा नमक संगठन ने भी इसे लेकर ज्ञापन सौंपा था. संगठन के सदस्यों का कहना था आदिवासी क्षेत्र में रहकर आदिवासी संस्कृति का सम्मान नहीं हो रहा है. चुनावी काका का जो चित्र है. वह भील समुदाय के आराध्य देव मुकुटधारी बाबा बुड़वा मोटा धणी बाबादेव का है. जबकि चुनावी काकी का चित्र भीली संस्कृति के पहनावे के अंतर्गत भीली महिला का है. दोनों में जंगली जानवरों के मुख सहित जानवरों के अंगों का समावेश किया गया है. इससे हमारे भील संस्कृति का अपमान हुआ है.

जिला पंचायत सदस्य व युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विजय भाबर ने भी इन शुभंकर के विरोध में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कैंपेन चला दिया था. उन्होंने लिखा था- शुभंकर को जानवर के रूप में प्रदर्शित करने के साथ उनकी वेशभूषा हमारे आदिवासी समाज को दर्शाती है. प्रशासन का यह कृत्य निंदनीय है.

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ढाई अक्षर नाम का अनोखा प्रत्याशी, 13 चुनाव लड़ने के बाद भी वोट मांगने नहीं जाता किसी के घर

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कुछ संगठनों के सुझाव पर शुभंकर में आंशिक संशोधन किया है

जिला पंचायत सीईओ व नोडल अधिकारी जितेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि 'कुछ संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने जिला प्रशासन से मुलाकात कर शुभंकर के स्वरूप में संशोधन किए जाने को लेकर ज्ञापन दिया था. इस मुद्दे पर संवेदनशीलता से विचार करते हुए लोकसभा चुनाव के शुभांकरों में आंशिक संशोधन किया गया है. हमारा उद्देश सभी की भावनाओं का सम्मान रखते हुए मतदान का प्रतिशत बढ़ाना है.'

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