झाबुआ। जिला अस्पताल से महज 100 मीटर की दूरी पर हुए एक्सीडेंट में घायल को एंबुलेंस नहीं मिली.यहां पहुंचे कुछ युवाओं से बोला गया कि पहले 108 नंबर पर फोन करो.जबकि अस्पताल में एंबुलेंस मौजूद थी.घायल मरीज को हाथठेले से कुछ युवा लेकर अस्पताल पहुंचे.युवाओं ने जब हंगामा किया तो उसके बाद सीएमएचओ ने 108 सेवा संचालन करने वाले प्रबंधक को नोटिस जारी किया है.
घायल को नहीं मिली एंबुलेंस
झाबुआ से बाइक पर अपने गांव जाते समय जेल तिराहे के पास करड़ावद गांव के बालू डामोर डिवाइडर से टकराकर घायल हो गया. उसके सिर में चोट आई और खून बहने लगा. चूंकि हादसा जिला अस्पताल से महज 100 मीटर दूर हुआ था, लिहाजा कुछ युवा फटाफट अस्पताल पहुंचे. यहां मौजूद एंबुलेंस के चालक से चलने के लिए कहा, परंतु चालक ने यह कह दिया कि पहले 108 नंबर डायल करो, फिर वहां से हमें सूचना मिलेगी तभी हम घटनास्थल पर पहुचेंगे.यह प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद भी आधे घंटे तक एंबुलेंस नहीं आई. ऐसे में वहां पर मौजूद आम आदमी पार्टी के जिला सचिव कमलेश सिंगाड़ और अन्य युवाओं ने पास ही रखे हाथ ठेले पर घायल को डाला और धकेलते हुए जिला अस्पताल पहुंच गए.
'स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद लचर'
आप के जिला सचिव कमलेश सिंगाड कहते हैं कि मप्र में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद लचर हो चुकी हैं. जिला अस्पताल से महज 100 मीटर की दूरी पर एक युवक सड़क दुर्घटना में घायल होकर पड़ा था. आधा घंटा तक एंबुलेंस नहीं मिल पाई.वह तो गनीमत थी कि वह बहुत गंभीर नहीं था अन्यथा तो उसकी जान ही चली जाती.अस्पताल में ऐंबुलेंस खड़ी थी लेकिन बुलाने पर भी नहीं गए.
हंगामा करने पर नोटिस जारी
हाथ ठेले से घायल को अस्पताल लेकर पहुंचे युवाओं का कहना है कि हंगामा करने पर सीएमएचओ डॉ बीएस बघेल ने दिखावे के लिए नोटिस जारी किया है. सीएमएचओ का कहना है कि 108 एंबुलेंस सेवा संचालन करने वाले प्रबंधक को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. रजिस्ट्रेशन जरूरी है, लेकिन गंभीर मामलों में संवेदनशीलता दिखाते हुए तत्काल एंबुलेंस सुविधा मुहैया करवाना चाहिए थी.
सरकारी तंत्र पर तमाचा
यह घटना सरकारी तंत्र पर तमाचा है. इससे साबित हो जाता है कि अपने फायदे के लिए नियम कायदे भूलने वाला सिस्टम आम आदमी के लिए सख्ती से नियम लागू करने में लग जाता है. फिर चाहे मानवीय संवेदना ही तार-तार क्यों न हो जाए. यह तो गनीमत है कि युवक की हालत गंभीर नहीं थी, वरना एंबुलेंस के इंतजार में उसकी जान भी चली जाती. तब शायद जिम्मेदारों के पास रटा रटाया जवाब होता कि हम जांच करवा कर दोषी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.