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आजादी के मतवालों की याद दिलाता है BHU परिसर में मौजूद जनतंत्र वृक्ष, 1950 में लगाया गया था, पढ़िए डिटेल - वाराणसी बीएचयू गणतंत्र दिवस यादें

आजादी मिलने के बाद देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वालों का स्मरण करते हुए वााराणसी के बीएचयू परिसर में एक पौधा (Varanasi BHU Janatantra Vriksha) लगाया गया था. अब यह बड़ा पेड़ बन चुका है. यह कई यादों को अपने आप में समेटे हुए है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 26, 2024, 6:52 AM IST

बीएचयू परिसर में मौजूद है जनतंत्र वृक्ष.

वाराणसी : पूरे देश में आज गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको गणतंत्र दिवस की उस विरासत के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज भी 1950 की याद को ताजा करता है. ये विरासत है बीएचयू में स्थापित जनतंत्र वृक्ष. यह आज भी उस दिन की याद को ताजा कर देता है. बताया जाता है कि परिसर में इसे 1950 में लगाया गया था. आज भी इसे संरक्षित करके रखा गया है. यह वृक्ष उस समय छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के सहयोग से लगाया गया था. तब यह पौधा था. इसे बिड़ला हॉस्टल के परिसर में लगाया गया था. अब यह बड़ा वृक्ष बन चुका है.

जनतंत्र वृक्ष का शिलापट्ट भी मौजूद हैं.
जनतंत्र वृक्ष का शिलापट्ट भी मौजूद हैं.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रो. बाला लखेंद्र बताते हैं, 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है, चाहे वह भारत छोड़ो आंदोलन हो या फिर अन्य गतिविधियां और रणनीतियां रही हों. यहां राजेंद्र प्रसाद लाहिरी हुआ करते थे, जिनके नेतृत्व में देशभर के बहुत सारे स्वतंत्रता आंदोलन के आंदोलनकारी नेता थे, वे सभी यहां आते रहते थे. इसका एक बहुत बड़ा इतिहास भी है. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन क्रांति की शुरुआत हुई. उस समय राधाकृष्णन जी ने छात्रों का सहयोग किया. कैसे हमें स्वतंत्रता मिली ये भी सभी को पता है.

बीएचयू परिसर में है जनतंत्र वृक्ष.
बीएचयू परिसर में है जनतंत्र वृक्ष.

बिरला छात्रावास में लगाया गया पौधा : उन्होंने बताया, 'स्वतंत्रता मिलने के बाद जब हमने 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस मनाने की घोषणा की और दिल्ली से लेकर पूरे भारत में कार्यक्रम हुआ. तब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी भी इसमें पीछे नहीं रहे. उन सभी ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. सबसे खुशी की बात है कि उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में जो हमारा छात्रावास था बिरला छात्रावास, जोकि अभी भी है, उस परिसर में सीता-अशोक एक पौधा लगाया गया. आज साल 1950 के बाद उस पौधे में लगातार वृद्धि हो रही है. आज भी हम लोग 26 जनवरी के अवसर पर वहां साफ-सफाई करते हैं.

1950 में बीएचयू में लगाया गया जनतंत्र वृक्ष.
1950 में बीएचयू में लगाया गया जनतंत्र वृक्ष.



संविधान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा : वो बताते हैं कि, बच्चे वहां जाकर संकल्प लेते हैं और अपने पूर्वजों को, स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं. वह जन तंत्र वृक्ष आज भी है. सिर्फ बीएचयू ही नहीं बल्कि पूरे भारत के युवा यहां अध्ययन के लिए आते हैं और वहां जाकर प्रेरणा लेते हैं. वे यह प्रेरणा लेते हैं कि वे अपने संविधान की रक्षा करेंगे. संविधान के बताए हुए मार्गों पर चलेंगे. इस देश को एक सशक्त और विकिसत राष्ट्र के साथ ही एक नया राष्ट्र बनाएंगे. भारत की संस्कृति की अगर हम बात करें तो सीता अपने आप में एक पूर्ण नाम है. सीता ऐसी नारी हैं, जिन्होंने सतीत्व का परिचय दिया ही, साथ ही त्याग, तपस्या, बलिदान का भी पाठ पढ़ाया है.

महिलाओं की शिक्षा के लिए लगा पौधा : उन्होंने कहा कि, सीता अशोक अपने आप में एक अलग वृक्ष है. इसका मेडिकल वैल्यू भी है. सीता अपने आप में भारतीय संस्कृति का एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. भारतीय संस्कृति की पहचान हैं. इसीलिए उस समय के हमारे पूर्वजों ने सोचा कि अगर हम इस वृक्ष को लगाएंगे तो हमारी बेटियों के लिए एक प्रेरणा का मार्ग बनेगा. खास तौर पर जो मालवीय जी का चिंतन था, 1916 में जब विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो आप देखेंगे कि 1947 में महिला साक्षरता दर बहुत कम थी. मुझे लगता है कि सीता अशोक का वृक्ष लगाकर के उन्होंने बेटियों की शिक्षा के लिए एक नई चेतना जागृत हो. इसी उद्देश्य से इस वृक्ष को लगाया गया होगा.

यह भी पढ़ें : रामलला के दर्शन के लिए वानर रूप में गर्भ गृह पहुंचे 'बजरंगबली', अपने आराध्य को देखा फिर भीड़ से होकर निकल गए

बीएचयू परिसर में मौजूद है जनतंत्र वृक्ष.

वाराणसी : पूरे देश में आज गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको गणतंत्र दिवस की उस विरासत के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज भी 1950 की याद को ताजा करता है. ये विरासत है बीएचयू में स्थापित जनतंत्र वृक्ष. यह आज भी उस दिन की याद को ताजा कर देता है. बताया जाता है कि परिसर में इसे 1950 में लगाया गया था. आज भी इसे संरक्षित करके रखा गया है. यह वृक्ष उस समय छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के सहयोग से लगाया गया था. तब यह पौधा था. इसे बिड़ला हॉस्टल के परिसर में लगाया गया था. अब यह बड़ा वृक्ष बन चुका है.

जनतंत्र वृक्ष का शिलापट्ट भी मौजूद हैं.
जनतंत्र वृक्ष का शिलापट्ट भी मौजूद हैं.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रो. बाला लखेंद्र बताते हैं, 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है, चाहे वह भारत छोड़ो आंदोलन हो या फिर अन्य गतिविधियां और रणनीतियां रही हों. यहां राजेंद्र प्रसाद लाहिरी हुआ करते थे, जिनके नेतृत्व में देशभर के बहुत सारे स्वतंत्रता आंदोलन के आंदोलनकारी नेता थे, वे सभी यहां आते रहते थे. इसका एक बहुत बड़ा इतिहास भी है. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन क्रांति की शुरुआत हुई. उस समय राधाकृष्णन जी ने छात्रों का सहयोग किया. कैसे हमें स्वतंत्रता मिली ये भी सभी को पता है.

बीएचयू परिसर में है जनतंत्र वृक्ष.
बीएचयू परिसर में है जनतंत्र वृक्ष.

बिरला छात्रावास में लगाया गया पौधा : उन्होंने बताया, 'स्वतंत्रता मिलने के बाद जब हमने 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस मनाने की घोषणा की और दिल्ली से लेकर पूरे भारत में कार्यक्रम हुआ. तब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी भी इसमें पीछे नहीं रहे. उन सभी ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. सबसे खुशी की बात है कि उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में जो हमारा छात्रावास था बिरला छात्रावास, जोकि अभी भी है, उस परिसर में सीता-अशोक एक पौधा लगाया गया. आज साल 1950 के बाद उस पौधे में लगातार वृद्धि हो रही है. आज भी हम लोग 26 जनवरी के अवसर पर वहां साफ-सफाई करते हैं.

1950 में बीएचयू में लगाया गया जनतंत्र वृक्ष.
1950 में बीएचयू में लगाया गया जनतंत्र वृक्ष.



संविधान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा : वो बताते हैं कि, बच्चे वहां जाकर संकल्प लेते हैं और अपने पूर्वजों को, स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं. वह जन तंत्र वृक्ष आज भी है. सिर्फ बीएचयू ही नहीं बल्कि पूरे भारत के युवा यहां अध्ययन के लिए आते हैं और वहां जाकर प्रेरणा लेते हैं. वे यह प्रेरणा लेते हैं कि वे अपने संविधान की रक्षा करेंगे. संविधान के बताए हुए मार्गों पर चलेंगे. इस देश को एक सशक्त और विकिसत राष्ट्र के साथ ही एक नया राष्ट्र बनाएंगे. भारत की संस्कृति की अगर हम बात करें तो सीता अपने आप में एक पूर्ण नाम है. सीता ऐसी नारी हैं, जिन्होंने सतीत्व का परिचय दिया ही, साथ ही त्याग, तपस्या, बलिदान का भी पाठ पढ़ाया है.

महिलाओं की शिक्षा के लिए लगा पौधा : उन्होंने कहा कि, सीता अशोक अपने आप में एक अलग वृक्ष है. इसका मेडिकल वैल्यू भी है. सीता अपने आप में भारतीय संस्कृति का एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. भारतीय संस्कृति की पहचान हैं. इसीलिए उस समय के हमारे पूर्वजों ने सोचा कि अगर हम इस वृक्ष को लगाएंगे तो हमारी बेटियों के लिए एक प्रेरणा का मार्ग बनेगा. खास तौर पर जो मालवीय जी का चिंतन था, 1916 में जब विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो आप देखेंगे कि 1947 में महिला साक्षरता दर बहुत कम थी. मुझे लगता है कि सीता अशोक का वृक्ष लगाकर के उन्होंने बेटियों की शिक्षा के लिए एक नई चेतना जागृत हो. इसी उद्देश्य से इस वृक्ष को लगाया गया होगा.

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