देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है. मतदान से पहले राजनीतिक पार्टियों के नेता चुनावी मैदान में जमकर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन इस बार के चुनाव में पहाड़ के मुद्दे कहीं गायब दिख रहे हैं. पहाड़ के असल मुद्दे क्या होने चाहिए. ऐसे कौन से काम होने बाकी हैं, जो आम जनता के लिए फायदेमंद हों. इन तमाम मुद्दों पर ईटीवी भारत ने उत्तराखंड जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत की और जाना की पहाड़ की असल पीड़ा क्या है.
सवाल: लोकसभा चुनाव चल रहा है, राजनीतिक पार्टियां प्रचार प्रसार में जुटी हुई हैं, लेकिन इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे नजर नहीं आ रहे हैं. आखिर इसके पीछे की क्या वजह है?
जवाब: स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव होने चाहिए, हालांकि लोकसभा चुनाव हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मुद्दे होते हैं, लेकिन स्थानीय मुद्दों पर भी वार्ता होनी चाहिए. 19 अप्रैल को उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. ऐसे में जो फर्स्ट टाइम वोटर हैं, वह मतदान करें, क्योंकि मतदान करना हमारा अधिकार है, जो भी उनके मनपसंद का नेता हैं, उनको चुनें. साथ ही प्रीतम ने संगीत के जरिए भी मतदाताओं को जागरूक किया.
सवाल: आपका बचपन पहाड़ों पर बीता है. अभी भी आप पहाड़ों पर जाते रहते हैं. पहले के मुकाबले पहाड़ों में कितने बदलाव आ गए हैं?
जवाब: पहाड़ बहुत बदल गए है. सड़कें बनी हैं, बिजली पहुंची है. स्कूलों की संख्या बढ़ी है. साथ ही तमाम विकास कार्य भी हुए हैं, लेकिन अभी भी आमूल चूल परिवर्तन होने बाकी हैं, जिसके तहत पहाड़ों में लोगों को रोजगार उपलब्ध हो. पर्यटन व तीर्थाटन को और अधिक बढ़ावा दिया जाए. साथ ही पहाड़ के अंदर स्वरोजगार पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए.
सवाल: प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहा पलायन एक गंभीर समस्या बनी हुई है. लिहाजा पलायन को रोकने के लिए सरकारों को क्या उपाय करने की जरूरत है?
जवाब: पलायन एक समस्या है, लेकिन प्रदेश के युवा अपनी योग्यता के अनुसार देश-विदेश में काम कर रहे हैं. साइंटिस्ट और इंजीनियर भी बना रहे हैं. सरकार ने पलायन आयोग का गठन तो किया है, लेकिन वो नाकाफी है. पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए एक ठोस नीति बनाए जाने की जरूरत है, ताकि पहाड़ को आबाद किया जा सके. साथ ही पहाड़ के युवाओं को रोजगार देने के लिए संभावनाओं को तलाशा जाए. प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में रहने वाले लोग देश के प्रहरी हैं. उत्तराखंड के कई जिले चीन और नेपाल की सीमा से लगे हैं. सीमांत इलाके के लोग बॉर्डर की सूचनाएं देने का काम करते हैं. ऐसे में पहाड़ों को आबाद रखने की आवश्यकता है.
प्रीतम भरतवाण का मानना है कि पहाड़ से पलायन रोकने के लिए जरूरी है कि अधिकारी भी पहाड़ में ही रहें. राजकीय कार्यालय सिर्फ मैदानी क्षेत्रों में न हों, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों पर भी हों. इसके अलावा गैरसैंण में भी सरकारों को रहना होगा. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में नेताओं को हवाई यात्रा के बजाए सड़क मार्ग से जाना चाहिए, ताकि वो जमीनी हकीकत से रूबरू हो सकें.
सवाल: उत्तराखंड राज्य का गठन हुए 23 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन अभी तक स्थाई राजधानी नहीं बन पाई है. ऐसे में जब गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है, तो गैरसैंण में विकास के कार्य भी होने चाहिए?
जवाब: प्रीतम भरतवाण ने कहा कि ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आवाजाही को बढ़ाया जाए. गैरसैंण में कार्यालय बनाया जाए, जिसमें परमानेंट अधिकारी रहें, जिससे उसे क्षेत्र का विकास होगा. साथ ही कहा कि कुछ समय के लिए ही गैरसैंण ना जाएं. क्योंकि पहाड़ को समझने के लिए पहाड़ में ही रहना पड़ेगा. इसके लिए जरूरी व्यवस्थाओं के साथ ही अधिकारियों को भी वहां पर तैनात करना पड़ेगा. इसके अलावा पहाड़ के लोगों को स्वरोजगार और स्वावलंबन की ओर ले जाना पड़ेगा.
सवाल: साल 2024 में हुए बजट सत्र के दौरान पहाड़ के विधायक ही गैरसैंण में सत्र करने के पक्ष में नहीं थे. तमाम विधायकों ने इसके लिए मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भी लिखा था?
जवाब: प्रीतम ने कहा कि विधायकों को पहाड़ जाना चाहिए और पहाड़ में ही रहना चाहिए. इसके साथ ही उनके कार्यालय भी उनकी विधानसभा क्षेत्र में होना चाहिए. चुनाव के दौरान नेताओं के कार्यालय जगह-जगह पर खोले जाते हैं, लिहाजा सामान्य दिनों में भी उनके विधानसभा क्षेत्र में उनके कार्यालय होना चाहिए. ताकि जनता आसानी से अपने क्षेत्र के विधायक से मिल सके और अपनी समस्याओं का समाधान कर सके.
सवाल: प्रदेश की संगीत और संस्कृति को बढ़ाने में आपका बड़ा योगदान है. इसकी बेहतरी के लिए सरकार को क्या कदम उठाने की जरूरत है?
जवाब: प्रदेश की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार को काम करना चाहिए. प्रदेश के योद्धाओं की कहानी सिलेबस में शामिल करने के साथ ही तमाम बोली भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे संस्कृति को फायदा मिलेगा. इसके अलावा उत्तराखंडी परिधान और खाने को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
सवाल: उत्तराखंड राज्य का गठन जिस अवधारणा के साथ हुआ था, क्या वो अवधारणा पूरी हुई है?
जवाब: अभी बहुत बारीकी से काम करने की जरूरत है. उत्तराखंड राज्य गठन को 23 साल बीत गए हैं, लेकिन अभी तक अवधारणा पूरी नहीं हो पाई है, तो ऐसे में उसके लिए तो नेताओं और पार्टियों को सोचना चाहिए कि आखिर इसके पीछे की क्या वजह है?
उत्तर प्रदेश से पृथक होकर अलग पर्वतीय राज्य जब बना तो उसकी भौगोलिक परिस्थितियां उत्तर प्रदेश के दौरान भी वही थी. ऐसे में राज्य बनने के बाद इस प्रदेश में आमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए, जिसके तहत जल, जंगल और जमीन संरक्षित होनी चाहिए. युवाओं को रोजगार मिले. कुल मिलाकर पहाड़ की परिस्थितियों को देखते हुए राज्य का गठन किया गया उस दिशा में काम किया जाना चाहिए.
सवाल: वर्तमान समय में पर्वतीय क्षेत्रों की मुख्य समस्याएं क्या हैं, जिस पर सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है?
जवाब: उत्तराखंड राज्य में रोजगार एक बड़ी समस्या है. प्रदेश को पर्यटन प्रदेश बना सकते हैं. ऐसे में प्रदेश के भीतर पर्यटन के क्षेत्र में तमाम बड़े काम करने की जरूरत है, जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा. पहाड़ों में लोग सुकून की तलाश के लिए आते हैं. ऐसे में अगर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों को अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर देते हैं तो इससे युवाओं को भी रोजगार मिलेगा. साथ ही विश्व के मानचित्र पर भी उत्तराखंड का एक बड़ा नाम होगा.
उत्तराखंड राज्य को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है, जिसको संरक्षित करते हुए पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह सच्चे मन से करना पड़ेगा, यह काम अगले 5 साल को सोचकर नहीं, बल्कि अगले 100 साल को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. कुल मिलाकर दूर की दृष्टि रखनी पड़ेगी.
सवाल: मौजूदा चुनाव योजनाओं वर्सेस सवालों का हो रहा है. ऐसे में चुनाव के दौरान प्रदेश के कौन कौन से स्थानीय मुद्दे होने चाहिए, जिन मुद्दों पर चुनाव होने से प्रदेश के विकास की गति रफ्तार पकड़ेगी?
जवाब: चुनाव के दौरान स्थानीय मुद्दों पर बात होनी चाहिए, जिसके तहत ठोस भू कानून, 1950 से मूल निवास, पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के लिए अलग से इंसेंटिव की व्यवस्था, ऑर्गेनिक खेती और उन्नत उत्पादन को बढ़ावा देने पर बात के साथ ही विषम परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लिए वित्त पोषित योजनाएं होनी चाहिए.
इसके अलावा सिंगल विंडो सिस्टम, मानकों में सहूलियत, नौकरियों की टर्म कंडीशन में रियायत बरती जाए. सरकार जब कोई नीति बनती है, तो उसमें इस बात का ध्यान रखा जाए कि उसका फायदा सभी को हो. उसमें तमाम कागजातों या प्रमाण पत्रों को अनिवार्य कर दिया जाएगा तो ऐसे में जनता को काफी दिक्कत होती है.
सवाल: मौजूदा राज्य और केंद्र सरकार के कामकाजों को आप किस तरह से देखते हैं?
जवाब: सरकारें सभी अच्छी होती हैं. राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से काम किये जा रहे हैं, लेकिन इसमें और तीव्रता लाने की जरूरत है. केंद्र और उत्तराखंड की सरकार का सामंजस्य तो ठीक है.
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