जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने अहम आदेश में कहा कि दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करवाना आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं आता है. जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि दहेज प्रताड़ना व क्रूरता किये जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाना पीड़ित का कानूनी हक है. एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ पत्नी तथा उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज किये गये धारा 306 की एफआईआर तथा कोर्ट में लंबित प्रकरण को खारिज करने के आदेश जारी किये हैं.
सास-ससुर की रिपोर्ट को दी थी हाईकोर्ट में चुनौती
याचिकाकर्ता बीनू लोधी,उसकी मां शिव कुमारी लोधी तथा पिता बहादुर लोधी निवासी सागर की तरफ से हाईकोर्ट में धारा 306 के तहत प्रकरण दर्ज किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि बीनू ने अपने पति व सास-ससुर के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. रिपोर्ट दर्ज करवाने के 20 दिन बाद उसके पति ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी. नरसिंहपुर पुलिस ने मृतक के परिजनों के बयानों के आधार पर उनके खिलाफ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने के तहत धारा 306 के तहत प्रकरण दर्ज किया था. याचिका में एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित अपराधिक प्रकरण को खारिज किये जाने की राहत चाही गयी थी.
पत्नी ने दर्ज कराया था दहेज प्रताड़ना का मामला
एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि बीनू का विवाह 12 जून 2022 को नरसिंहपुर निवासी मनीष लोधी से हुआ था. शादी के बाद कम दहेज लाने पर पति तथा सास-ससुर उसके साथ क्रूरता करते हुए मानसिक व शारीरिक यातना देते थे. ससुराल पक्ष के लोगों ने उसका स्त्रीधन छीनकर घर से निकाल दिया था. जिसके कारण उसने पति,सास-ससुर के खिलाफ राहतगढ़ थाना जिला सागर में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. पुलिस ने 6 मई 2023 को तीनों के खिलाफ दहेज एक्ट,406,489 ए सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया था.
पति ने रिपोर्ट दर्ज होने के बाद कर ली थी आत्महत्या
एफआईआर दर्ज होने के बीस दिन बाद उसके पति मनीष लोधी ने आत्महत्या कर ली थी. मृतक के परिजनों ने बयान दिये थे कि पत्नी और ससुराल पक्ष ने दहेज प्रताड़ना की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. इसलिए मनीष ने आत्महत्या की है. नरसिंहपुर पुलिस ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 306 के तहत प्रकरण दर्ज करते हुए न्यायालय के समक्ष चालान भी पेश कर दिया.
हाईकोर्ट ने एफआईआर खारिज करने के दिए निर्देश
एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान करते हुए अपने आदेश में कहा है कि दहेज एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करवाने को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करना नहीं माना जा सकता है. एकलपीठ ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा है कि रिपोर्ट झूठी थी, यह फैसला न्यायालय को गवाहों के आधार पर करना चाहिए था.