जबलपुर। जिले के आसपास बड़े पैमाने पर पशुपालन किया जाता है. पशुपालन के दौरान बड़े पैमाने पर गोबर निकलता है. अभी तक जबलपुर के पशुपालक इस गोबर को नदियों और नालों में बहा देते थे. डेरी मालिकों के सामने यह गोबर किसी समस्या से कम नहीं था, लेकिन अब जबलपुर के पशुपालक अपने गोबर को भी बेच पाएंगे. जबलपुर में वेस्ट टू एनर्जी प्लांट किसानों से 50 पैसा प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीद रहा है. मतलब अब किसानों को गोबर को भी बेचकर भी पैसा मिल सकेगा.
गोबर से बनेगी ग्रीन एनर्जी और खाद
जबलपुर में स्मार्ट सिटी और सांची दुग्ध संघ ने मिलकर एक वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनाया है. इस प्लांट की लागत लगभग 18 करोड़ रुपए बताई जा रही है. इसमें रोज लगभग 75 ट्रॉली गोबर का इस्तेमाल सही तरीके से किया जा सकेगा. यह गोबर जबलपुर के आसपास के नदी और नालों को खराब कर रहा था. अब इसका इस्तेमाल इस प्लांट में ग्रीन एनर्जी और खाद बनाने के रूप में किया जा रहा है. इस प्लांट के ऑपरेशनल मैनेजर महेंद्र सिंह ने बताया कि 'यहां हर रोज 75 ट्राली गोबर बेचा जा रहा है. हम इसी गोबर का इस्तेमाल करके उससे तीन चीज बना रहे हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण बायो सीएनजी को बनाने के लिए गोबर को इन बड़े ड्रम में भेजा जाता है.
सांची दुग्ध चलाएगी अपना प्लांट
'जहां अपने आप गोबर चढ़कर सीएनजी छोड़ता है. इसे फिल्टर करके फिर सिलेंडरों में भर दी जाती है. महेंद्र सिंह ने हमें बताया कि जल्द ही इस सीएनजी का इस्तेमाल जबलपुर के सीएनजी पंप पर होने लगेगा और यह आम लोगों को मिल सकेगी. वहीं इसी सीएनजी के माध्यम से सांची दुग्ध संघ अपना प्लांट भी चलाएगी. जिससे कोयले की बचत हो सकेगी. सांची दुग्ध संघ को हर साल लगभग 80 लाख रुपए जमीन का किराया भी मिलेगा. इसके पहले इसी तरह का एक प्लांट इंदौर में भी चल रहा है. महेंद्र सिंह का कहना है कि यह एक सफल प्रोजेक्ट है और बायो सीएनजी कई किस्म से बनाई जा सकती है.'
नए उद्योग को मिलेगा मौका
वहीं सीएनजी निकालने के बाद जो गोबर बचेगा, इसका इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाएगा. महेंद्र सिंह का कहना है कि उनके प्लांट से खाद के दो तरह का पदार्थ निकल रहा है. जिसमें एक पदार्थ सॉलिड है. इसका इस्तेमाल खाद बनाने के लिए किया जा रहा है और दूसरा लिक्विड है. यह भी पूरी तरह से नेचुरल फर्टिलाइजर है. फिलहाल किसानों को मुफ्त में दे रहे हैं, हालांकि बाद में इसके भी दाम लिए जाएंगे. इस वेस्ट टू एनर्जी प्लांट को दिल्ली की एक कंपनी चला रही है. इसमें 30 लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस प्लांट के बन जाने से आसपास की छोटी नदियां जो गोबर की गंदगी की वजह से बर्बाद हो रही थी. वह बच जाएगी और जबलपुर में एक नए उद्योग को फलने-फूलने का मौका मिलेगा. अभी भी जबलपुर में इससे कहीं ज्यादा गोबर पैदा होता है. यदि सभी जगह का गोबर इकट्ठा कर लिया जाए, तो इतना बड़ा दूसरा प्लांट और चल सकता है.