जबलपुर. सरकारों की बेरुखी के कारण जबलपुर भारत का आईटी हब बनते-बनते रह गया, जबकि जबलपुर में भारत का सबसे बड़ा दूरसंचार प्रशिक्षण संस्थान था. दूरसंचार के लिए जरूरी उपकरणों का निर्माण जबलपुर में होता था और एक जमाने में देशभर से हजारों लोग दूरसंचार के क्षेत्र में काम करने के लिए जबलपुर आते थे, लेकिन जनप्रतिनिधियों ने कभी भी इस मुद्दे को संसद में नहीं उठाया. इसी वजह से कभी 10 हजार लोगों को रोजगार देने वाली फैक्ट्री में अब महज 50 लोग काम करते हैं.
टेलीकॉम सेक्टर में चलता था जबलपुर का नाम
भारत में जब भी टेलीफोन और दूरसंचार के विकास की बात होगी तो उसमें सबसे ऊपर जबलपुर का नाम आएगा, क्योंकि भारत ही नहीं पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में दूरसंचार की ट्रेनिंग के लिए भारत का एकमात्र संस्थान डॉ. भीमराव अंबेडकर दूरसंचार प्रशिक्षण संस्थान जबलपुर में है. इस संस्थान में भारत के अलावा नेपाल से भी दूरसंचार की ट्रेनिंग लेने के लिए इंजीनियर आते रहे हैं. इस संस्थान के नाम पर एक डाक टिकट भी जारी हुआ था.
भारत की सात बड़ी फैक्ट्री में से दो जबलपुर में
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब दुनिया भर के देशों को टेलीकॉम की जरूरत समझ में आने लगी थी, तब देशभर में टेलीफोन के तारों को बनाने के लिए और टेलीफोन एक्सचेंज बनाने के लिए फैक्ट्री का निर्माण किया गया. पहली फैक्ट्री कोलकाता में खोली गई. दूसरी फैक्ट्री जबलपुर में खोली गई, फिर इसी की तीसरी फैक्ट्री भी जबलपुर में खोली गई. इसके अलावा एक फैक्ट्री मुंबई में और एक खड़गपुर में भी खोली गई, यानी जबलपुर में दूरसंचार की दो बड़ी फैक्ट्रियां हुआ करती थी. एक जबलपुर शहर में और दूसरी इंडस्ट्रियल एरिया रिछाई में.
देशभर से आते थे रोजगार की तलाश में लोग
जबलपुर शहर के बीचों-बीच लगभग 77 एकड़ जमीन में टेलीकॉम की यह फैक्ट्री हुआ करती थी. इसमें टेलीफोन एक्सचेंज, टेलीफोन के वायर, टेलीफोन के खंभे और टेलीफोन टावर बनते थे. उस समय जबलपुर की इन दोनों फैक्ट्रियों में 10000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे. इसी टेलीकॉम फैक्ट्री से रिटायर हुए सत्येंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि ''उनके परिवार कोलकाता से जबलपुर आया था और पहले उनके पिता फैक्ट्री में काम किया करते थे. बाद में उन्हें भी इसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई थी''. सत्येंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि ''जबलपुर उसे जमाने में आईटी का हब हुआ करता था और उत्तर प्रदेश बिहार से आने वाले हजारों लोग इन फैक्ट्री में काम किया करते थे''.
बंद होने की कगार पर फैक्ट्री
फैक्ट्री में ही काम करने वाले अनूप कुमार सिंह बताते हैं कि ''अब रिछाई के प्लांट और शहर के प्लांट में कुल मिलाकर 50 कर्मचारी और अधिकारी ही बचे हैं. फैक्ट्री में उत्पादन के नाम पर इंटरनेट की वायर डालने के लिए प्लास्टिक के पाइप बनाने का काम होता है''.
आईटी हब बन सकता था जबलपुर
ऐसा नहीं है कि भारत में आईटी ने तरक्की नहीं की है लेकिन, आईटी के नाम पर सारी तरक्की पुणे बेंगलुरु जैसे शहरों के खाते में चली गई, जबकि एक समय में जबलपुर भारत का आईटी हब हुआ करता था. यहां न केवल ट्रेनिंग सेंटर से बल्कि उत्पादन की इकाईयां थी. शिक्षा के लिए सरकारी संस्थान थे और देश के ठीक बीचों-बीच स्थित होने की वजह से यदि यहां से पूरे देश के लिए नेटवर्क डाला जाता तो वह काफी सस्ता और प्रभावी होता.
अब टेलीकॉम फैक्ट्री की यह जमीन बेशकीमती हो गई है और इस पर देश की कई निजी कंपनियों की निगाहें टिकी हुई हैं. कर्मचारियों का कहना है कि ''वह दिन दूर नहीं जब इस जमीन पर देश के किसी बड़े उद्योगपतियों का कब्जा हो जाएगा. यदि जबलपुर के नेताओं ने इन फैक्ट्रियों पर ध्यान दिया होता तो आज जबलपुर भारत का आईटी हब होता और सोचिए यदि जबलपुर आईटी हब होता तो जबलपुर की तरक्की कितनी होती''.