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जलती चिताओं के बीच साढ़े तीन दिन 'गद्दी' संभालती हैं डोमरानी, इनकी दी आग से ही मिलती है मुक्ति

देश की आबादी के संघर्ष की अनगिनत कहानियां हैं, लेकिन कई कहानियां हृदय को झकझोर देती हैं. ऐसी ही कहानी है वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रहने वाली देश की पहली डोमरानी जमुना देवी की. Manikarnika Ghat Jamuna Devi Domrani

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 8, 2024, 10:01 AM IST

Updated : Mar 9, 2024, 2:27 PM IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी की विशेष खबर.

वाराणसी : महज 17 साल की उम्र थी, पति का साथ छूट चुका था, गोद में चार बच्चे थे और ससुरालवालों ने बेदखल कर दिया. जीवन में ऐसा भूचाल आया कि लगने लगा सब खत्म हो चुका है. भविष्य में कुछ नजर नहीं आ रहा था, मगर उस समय हार नहीं मानी और दोबारा उठ खड़ी हुई. समाज के बंधनों को तोड़ा, लड़ीं और खुद को साबित कर दिखाया. हम बात कर रहे हैं देश की पहली डोमरानी यानी बड़की मालकिन जमुना देवी की. जमुना देवी मनिकर्णिका घाट पर शवों के लिए आग देने का काम करती हैं. जमुना देवी उन महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया और परिवार के लिए एक मजबूत दीवार बनकर खड़ी रहीं.

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मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.


सहनी पड़ा समाज का उलाहना : "सब कोई जब रोवत देखै ल, त सबके तकलीफ होला. हम तो उहां घाट पर बैठे ली. हमके तकलीफ न होत होई? हमहू के बहुत कष्ट रहल है वह समय. बाकी अब आदत पड़ गइल हौ. अब कोनो तकलीफ न होला. शुरू में जब आग देवे के रहल है तो बहुत डर लगै." ये कहना है जमुना देवी के शुरुआती दिनों का. जब उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर शवों को जलाने का काम शुरू किया था. उस समय एक महिला का घाट पर शवों को जलाना आखिर किसे स्वीकार होता? उन्हें भी समाज के तानों और उलाहनों को झेलना पड़ा. महिला होने के नाते उन्हें लोग घाट पर स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. हालांकि संघर्ष के बल पर आज वह डोमरानी हैं.

मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
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शुरू में शव जलाने के लिए जाने पर लगता था डर : जमुना देवी बताती हैं कि जब पहली बार गद्दी पर बैठीं तो बहुत सारी तकलीफें हुईं. पहले तो जब कोई किसी को रोता हुआ देखता है तो सबको तकलीफ होती है. अब तो आदत हो गई है, अब कोई तकलीफ नहीं होती है. जब शुरू-शुरू में शव को आग देना पड़ती था तो भी डर लगता था. उस समय जब लोग घाट पर शव लेकर आते थे तो पहला सवाल यही होता था कि घाट पर महिला क्यों बैठी है? दिन काटते-काटते कट गया. एक-एक महीना पर शव जलाने के लिए नंबर आता था. जमुना देवी कहती हैं कि रात को सोते वक्त कानों में 'राम नाम सत्य' गूंजता रहता. मुझे लगता फिर शव आ गया है. रात भर ऐसे ही सपने आते थे. सुबह जब नींद खुलती तो सब सही मिलता था. इसके बाद अपने कर्मचारियों के साथ घाट पर बैठना शुरू कर दिया. कोई न कोई मेरे साथ बैठा रहता था. मेरे डर के कारण मुझे कोई अकेला नहीं छोड़ता था. घाट पर कोई महिला नहीं जाती है. इसलिए हमको देखकर शव लाने वाले लोग अचंभित हो जाते थे. लोग कहते थे कि महिला यहां क्यों बैठी है? इसका क्या काम है यहां? हमसे कोई नहीं पूछता था. कर्मचारियों से पूछते थे कि यहां पर क्यों बैठी है.

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गरीबों की शव जलाने में करती हैं मदद : घाट पर सिर्फ शव जलाना ही काम नहीं होता है. बल्कि उन लोगों की मदद भी कर दी जाती है. जिनके पास शव जलाने के लिए लकड़ी-पैसे नहीं होते हैं. जमुना देवी बताती हैं कि एक-एक महीने पर घाट की गद्दी पर बैठने का मौका आता है. साढ़े तीन दिन की गद्दी होती है. घाट पर जब कोई गरीब आता है तो उसकी मदद भी की जाती है. लकड़ी नहीं है, किराया नहीं है तो उनकी मदद की जाती है. मदद नहीं होगी तो कैसे उनके लाए शव जलाए जाएंगे. मणिकर्णिका से उनका शव वापस तो जाएगा नहीं. बहुत से अस्पताल से शव आते हैं. पैसे खर्च हो जाते हैं उनके. ऐसे में उनकी भी मदद की जाती है.


लोग ताना देते थे, अब हैं खास पहचान : एक वक्त था लोग जमुना देवी को ताना देते थे. आज लोग उन्हें जानते-पहचानते हैं. उनके हाथ से लोग चिता की अग्नि मांगकर ले जाते हैं. उनके हाथ की अग्नि से घाट पर शवों की जलाया जाता है. लोग कहते हैं कि उनके हाथ से लोगों को तारन मिलता है. इस पर वे भावुक होकर कहती हैं कि मेरा तारन कैसा होगा? मुझे तो मालूम ही नहीं है कि मेरी मिट्टी कहां जाएगी. महादेव का ही आसरा है. महादेव इतना संघर्ष से आगे लेकर आए हैं. महादेव ही उस समय पर भी देखेंगे. जब रानी मरी थीं तब बनारस घाट पर थे. राजा के मरने के समय हम अपने मायके गए हुए थे. अब आखिरी समय हमारा भी आ गया है.

सरकार से दिखीं नाराज : बातचीत के दौरान जमुना देवी थोड़ा नाराज भी दिखीं. उन्होंने कहा कि मणिकर्णिका घाट पर सरकार ने सबकुछ तो बनवा दिया. कॉरिडोर बना. मणिकर्णिका पर भी काम हुआ. मगर हम लोग जहां पर बैठते थे अब वहां पर लकड़ी वालों ने अपनी लकड़ियां रखकर कब्जा कर लिया है. हम लोग सीएम योगी के पास गए कि वहां से लकड़ियां हटवाई जाएं. उन्होंने इसको लेकर फोन भी कर दिया, मगर अभी तक लकड़ी हटाए जाने का काम नहीं हुआ है. हमारा बस यही कहना है कि हमको सुरक्षित रहने दो. जहां हम बैठते हैं लकड़ी वहां से हटाई जाए. उस जगह की मरम्मत की जाए. सारी जमीन नगर पालिका की है. नीचे मशाननाथ का मंदिर है और ऊपर लकड़ी है.


यह भी पढ़ें : बाबा विश्वनाथ के धाम में मोक्ष का भवन हुआ फुल, मोक्ष पाने के लिए वृद्ध कर रहे इंतजार

यह भी पढ़ें : Varanasi Manikarnika Ghat : बनारस का तर्पण और अंतिम क्रिया से विशेष संबंध, जानिए क्यों आते हैं नेपाली तीर्थयात्री

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी की विशेष खबर.

वाराणसी : महज 17 साल की उम्र थी, पति का साथ छूट चुका था, गोद में चार बच्चे थे और ससुरालवालों ने बेदखल कर दिया. जीवन में ऐसा भूचाल आया कि लगने लगा सब खत्म हो चुका है. भविष्य में कुछ नजर नहीं आ रहा था, मगर उस समय हार नहीं मानी और दोबारा उठ खड़ी हुई. समाज के बंधनों को तोड़ा, लड़ीं और खुद को साबित कर दिखाया. हम बात कर रहे हैं देश की पहली डोमरानी यानी बड़की मालकिन जमुना देवी की. जमुना देवी मनिकर्णिका घाट पर शवों के लिए आग देने का काम करती हैं. जमुना देवी उन महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया और परिवार के लिए एक मजबूत दीवार बनकर खड़ी रहीं.

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मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.


सहनी पड़ा समाज का उलाहना : "सब कोई जब रोवत देखै ल, त सबके तकलीफ होला. हम तो उहां घाट पर बैठे ली. हमके तकलीफ न होत होई? हमहू के बहुत कष्ट रहल है वह समय. बाकी अब आदत पड़ गइल हौ. अब कोनो तकलीफ न होला. शुरू में जब आग देवे के रहल है तो बहुत डर लगै." ये कहना है जमुना देवी के शुरुआती दिनों का. जब उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर शवों को जलाने का काम शुरू किया था. उस समय एक महिला का घाट पर शवों को जलाना आखिर किसे स्वीकार होता? उन्हें भी समाज के तानों और उलाहनों को झेलना पड़ा. महिला होने के नाते उन्हें लोग घाट पर स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. हालांकि संघर्ष के बल पर आज वह डोमरानी हैं.

मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
मणिकर्णिका घाट की बड़की रानी जमुना देवी.
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शुरू में शव जलाने के लिए जाने पर लगता था डर : जमुना देवी बताती हैं कि जब पहली बार गद्दी पर बैठीं तो बहुत सारी तकलीफें हुईं. पहले तो जब कोई किसी को रोता हुआ देखता है तो सबको तकलीफ होती है. अब तो आदत हो गई है, अब कोई तकलीफ नहीं होती है. जब शुरू-शुरू में शव को आग देना पड़ती था तो भी डर लगता था. उस समय जब लोग घाट पर शव लेकर आते थे तो पहला सवाल यही होता था कि घाट पर महिला क्यों बैठी है? दिन काटते-काटते कट गया. एक-एक महीना पर शव जलाने के लिए नंबर आता था. जमुना देवी कहती हैं कि रात को सोते वक्त कानों में 'राम नाम सत्य' गूंजता रहता. मुझे लगता फिर शव आ गया है. रात भर ऐसे ही सपने आते थे. सुबह जब नींद खुलती तो सब सही मिलता था. इसके बाद अपने कर्मचारियों के साथ घाट पर बैठना शुरू कर दिया. कोई न कोई मेरे साथ बैठा रहता था. मेरे डर के कारण मुझे कोई अकेला नहीं छोड़ता था. घाट पर कोई महिला नहीं जाती है. इसलिए हमको देखकर शव लाने वाले लोग अचंभित हो जाते थे. लोग कहते थे कि महिला यहां क्यों बैठी है? इसका क्या काम है यहां? हमसे कोई नहीं पूछता था. कर्मचारियों से पूछते थे कि यहां पर क्यों बैठी है.

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गरीबों की शव जलाने में करती हैं मदद : घाट पर सिर्फ शव जलाना ही काम नहीं होता है. बल्कि उन लोगों की मदद भी कर दी जाती है. जिनके पास शव जलाने के लिए लकड़ी-पैसे नहीं होते हैं. जमुना देवी बताती हैं कि एक-एक महीने पर घाट की गद्दी पर बैठने का मौका आता है. साढ़े तीन दिन की गद्दी होती है. घाट पर जब कोई गरीब आता है तो उसकी मदद भी की जाती है. लकड़ी नहीं है, किराया नहीं है तो उनकी मदद की जाती है. मदद नहीं होगी तो कैसे उनके लाए शव जलाए जाएंगे. मणिकर्णिका से उनका शव वापस तो जाएगा नहीं. बहुत से अस्पताल से शव आते हैं. पैसे खर्च हो जाते हैं उनके. ऐसे में उनकी भी मदद की जाती है.


लोग ताना देते थे, अब हैं खास पहचान : एक वक्त था लोग जमुना देवी को ताना देते थे. आज लोग उन्हें जानते-पहचानते हैं. उनके हाथ से लोग चिता की अग्नि मांगकर ले जाते हैं. उनके हाथ की अग्नि से घाट पर शवों की जलाया जाता है. लोग कहते हैं कि उनके हाथ से लोगों को तारन मिलता है. इस पर वे भावुक होकर कहती हैं कि मेरा तारन कैसा होगा? मुझे तो मालूम ही नहीं है कि मेरी मिट्टी कहां जाएगी. महादेव का ही आसरा है. महादेव इतना संघर्ष से आगे लेकर आए हैं. महादेव ही उस समय पर भी देखेंगे. जब रानी मरी थीं तब बनारस घाट पर थे. राजा के मरने के समय हम अपने मायके गए हुए थे. अब आखिरी समय हमारा भी आ गया है.

सरकार से दिखीं नाराज : बातचीत के दौरान जमुना देवी थोड़ा नाराज भी दिखीं. उन्होंने कहा कि मणिकर्णिका घाट पर सरकार ने सबकुछ तो बनवा दिया. कॉरिडोर बना. मणिकर्णिका पर भी काम हुआ. मगर हम लोग जहां पर बैठते थे अब वहां पर लकड़ी वालों ने अपनी लकड़ियां रखकर कब्जा कर लिया है. हम लोग सीएम योगी के पास गए कि वहां से लकड़ियां हटवाई जाएं. उन्होंने इसको लेकर फोन भी कर दिया, मगर अभी तक लकड़ी हटाए जाने का काम नहीं हुआ है. हमारा बस यही कहना है कि हमको सुरक्षित रहने दो. जहां हम बैठते हैं लकड़ी वहां से हटाई जाए. उस जगह की मरम्मत की जाए. सारी जमीन नगर पालिका की है. नीचे मशाननाथ का मंदिर है और ऊपर लकड़ी है.


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Last Updated : Mar 9, 2024, 2:27 PM IST
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