कोटा. जिले की लाडपुरा तहसील के गिरधरपुरा गांव निवासी किसान श्रीकृष्ण सुमन अपने आम के खास पेड़ की वजह से देशभर में सुर्खियां बटोरी हैं. उनके लगाए हुए आम के पेड़ राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में फल दे रहे हैं. अपने सदाबहार आम की किस्म के इनोवेशन के लिए दो बार अलग-अलग राष्ट्रपतियों से वे सम्मानित भी हो चुके हैं. इसके अलावा कई मुख्यमंत्री और कृषि मंत्रियों के अलावा नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन और कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है. उनके आम के पेड़ की खासियत ऐसी है कि भारत ही नहीं विश्व में भी उसकी डिमांड है, क्योंकि उनके द्वारा उन्नत किए गए आम के पेड़ में साल भर आम लगते हैं. भारत आकर कई लोग इसे अपने देश ले जा चुके हैं. अब श्रीकृष्ण सुमन अपने इस किस्म के लिए पेटेंट भी करवा रहे हैं, जिसके लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है.
साल में तीन बार आते हैं आम : श्रीकृष्ण सुमन का कहना है कि 1998 से आम की खेती करने लग गए थे. इसके बाद वह साल भर आम आ जाए इसके इनोवेशन में जुटे गए. इसमें उन्हें साल 2014-2015 में सफलता मिली. उनके द्वारा उन्नत किए गए पेड़ में एक साल में आम तीन बार आने लगे, जबकि सामान्य पेड़ पर 1 साल में एक बार ही सीजन में आम आता है. उन्होंने साल 2016-17 से ऑफ सीजन में भी आम बेचना शुरू किया. वर्तमान में जहां पर थोक में आम 40 से 60 रुपए किलो रुपए किलो बिक रहा है. श्रीकृष्ण सुमन को अपने आम के 10 से 15 रुपए किलो ज्यादा दाम मिल रहे हैं. सुमन का कहना है कि ऑफ सीजन में इसी आम के दाम 200 रुपए किलो तक होते हैं.
विदेश से वैज्ञानिक आए और पौधे ले गए : श्रीकृष्ण सुमन के अनुसार उनके इनोवेशन की खबर पूरे देश में वैज्ञानिकों को लगी. इसके बाद साल 2017-18 के बाद उन्होंने अब तक करीब 25,000 पौधे तैयार करके बेचे हैं. वे केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ सहित कई राज्यों में पौधे बेच चुके हैं. भारत के बाहर भी इस वैरायटी को अमेरिका, जर्मनी, दुबई, कनाडा, इराक, ईरान व अफ्रीकन कंट्री से वैज्ञानिक व किसान लेकर गए हैं.
350 ग्राम तक पहुंच जाता है एक आम : श्रीकृष्ण सुमन के अनुसार सदाबहार किस्म के पौधे पर लगातार फ्रूट और फ्लावरिंग चलती है. पेड़ पर बड़े-छोटे सभी तरह के आम लगते हैं. यह सभी सीजन में चलता है. पेड़ पर पके हुए आम के साथ-साथ छोटे और फ्लावरिंग भी चलती रहती है. यह साइकिल पूरे साल चलती है. ऐसे में हर समय पेड़ आम देता है. आम की खासियत यह है कि यह पकाने के बाद 250 से लेकर 350 ग्राम तक का एक आम होता है. इसके अलावा आंधी में भी पेड़ से फल नहीं गिरता है. सदाबहार आम की गुठली छोटी होती है. यह भीतर से केसरिया निकलता है और पेड़ पर ही पक जाता है. इसका स्वाद हापुस आम की तरह होता है.
विदेशी लोग खुद आकर ले गए पौधे : श्रीकृष्ण सुमन का कहना है कि अफ्रीका का एक लाख पौधों का ऑर्डर था, लेकिन भारतीय मिट्टी की जांच के बाद ही पौधे दिए जा सकते थे, जिसके लिए लेबोरेटरी में पहले कई तरह की जांच होती है. इसकी सैंपलिंग करवाना टेस्टिंग करवाना मुनासिब नहीं हो पाया. इसके चलते यह आर्डर कैंसिल करना पड़ा था. हालांकि, कुछ लोग यहां से मिट्टी हटाकर पौधे लेकर गए हैं. कुछ लोगों की केवल इसकी टहनियां ही कोरियर के जरिए विदेशों में भेजी गई है.
2500 पेड़ का बगीचा, 20 हजार पौधे लगाने की तैयारी : श्रीकृष्ण सुमन का कहना है कि पारिवारिक बंटवारे में उन्हें पुश्तैनी एक बीघा जमीन गिरधरपुरा में मिली थी. इस जमीन पर ही उन्होंने 1000 पौधे लगाए थे. इससे हुई कमाई के बाद ही उन्होंने देलून्दा में तीन बीघा का एक खेत खरीदा, जहां पर 1500 पौधे लगाए हैं. अभी यह पौधे केवल 5 साल की उम्र में ही फल देने लगे हैं. हालांकि उत्पादन अभी कम है. नए बगीचे के पौधों से 50 से 60 किलो आम सालाना मिल जाता है, जबकि पुराने पौधों से 150 से 180 किलो के आसपास मिलता है. हाल ही में एक कंपनी से उन्होंने अनुबंध किया है, जिसके तहत लाखेरी में 20,000 पौधों को लगाना है. यहां पर पूरी तरह से जैविक खेती ही होगी. इससे होने वाले उत्पादन को विदेश में भी सप्लाई करने की योजना है.
एनआईएफ ने माना एग्रीकल्चर साइंटिस्ट : नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) ने श्रीकृष्ण सुमन को सदाबहार आम की संशोधित किस्म के लिए पुरस्कृत किया था. यह पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2017 में उन्हें दिया था, जिसके बाद 2023 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी उन्हें सम्मानित किया. इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च और कृषि अनुसंधान में काम करने वाली गई संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित किया है. लाखों रुपए का इनाम भी उन्हें दिया गया है. उन्हें कृषि वैज्ञानिक के रूप में माना जाता है. देश के कृषि मंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों ने उन्हें कई बार सम्मानित किया है.
कुछ अलग करने की जिद से शुरू हुई कहानी : श्रीकृष्ण सुमन बीएससी कर रहे थे, लेकिन परिवार के हालात ठीक नहीं थे, इसलिए पढ़ाई बीच में छोड़कर खेती करना पड़ा. परिवार में भी सबसे बड़े थे और जमीन भी काफी कम थी. परिवार के पास में 7 बीघा जमीन थी और इस पर खेती करनी थी. इस पर भी गेहूं और चावल ही उगाया जा रहा था, लेकिन उत्पादन कभी ठीक नहीं होता था और मुनाफा भी काफी कम होता था. परिवार को चलाना इस जमीन के उत्पादन से मुश्किल था. इसके बाद रोज आमदनी के लिए सब्जी की खेती शुरू की. परिवार भी साथ लग गया, मुनाफा होने पर आस-पास की जमीन लीज पर लेकर भी सब्जी बेचना शुरू किया, लेकिन पेस्टिसाइड से लोगों को नुकसान के चलते सामान्य खेती शुरू कर दी. इसमें मुनाफा भी होने लगा. तब इनोवेशन के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक से एक ही पौधे पर अलग-अलग कलर के गुलाब लगाए. इस गुलाब की काफी चर्चा हुई. बाद में उन्होंने आम का पौधा लगाकर और रिसर्च शुरू कर दी.
ग्राफ्टिंग तकनीक से किया इनोवेशन : एग्रीकल्चर इनोवेशन कर रहे सुमन ने आम के पौधे पर ग्राफ्टिंग तकनीक से कई सालों तक प्रयोग किया. बाद में सर्दी के सीजन में भी उस आम के पौधे पर फ्लावरिंग हुई, जिसे देखकर कृषि वैज्ञानिक और विभाग के लोग चकित रह गए. बाद में इसी तकनीक से उन्होंने कई सारे पौधे और लगा दिए, जिन में साल भर आम आने लगे. उनके आम के पौधे की राष्ट्रपति भवन में भी प्रदर्शनी लगी और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस तरह के चार पौधे मुगल गार्डन में भी लगवाए.
पाकिस्तान से भी आए थे खरीदने, बैरंग लौटा दिया : श्रीकृष्ण सुमन के आम की खासियत को सुनकर साल 2019 में पाकिस्तान से भी लोग कोटा आम के पौघे लेने पहुंच गए थे. हालांकि, श्रीकृष्ण सुमन ने उन्हें बैरंग लौटा दिया और कहा कि पहले रिश्तों में सुधार की जरूरत है और रिश्तों में मिठास होने पर ही सदाबहार आम का पौधा उन्हें मिलेगा. ऐसे में पाकिस्तानी डेलिगेशन वापस लौट गया था.