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दवाईयों की होम डिलीवरी पर रोक की मांग, आंदोलन की राह पर 12 लाख दवा विक्रेता - INDORE DRUG SELLERS PROTEST

कोविड के समय शुरू हुई घर-घर दवा पहुंचाने की सुविधा का दवा विक्रेता विरोध जता रहे हैं. इसे बंद करने की मांग की है.

INDORE DRUG SELLERS PROTEST
आंदोलन की राह पर 12 लाख दवा विक्रेता (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 11 hours ago

इंदौर: कोरोना की आपात स्थिति के दौरान लोगों को बचाने के लिए घर-घर दवा उपलब्ध कराने का सरकारी फैसला लिया गया था. लोगों की मदद करने को लेकर लिया गया फैसला अब दवा विक्रेताओं के विरोध प्रदर्शन और आंदोलन की वजह बन रहा है. इसे रद्द करने की अपील एक बार फिर अखिल भारतीय केमिस्ट एवं ड्रगिस्ट संगठन द्वारा भारत सरकार को की गई है.

कोविड के समय शुरू हुई थी घर-घर दवा पहुंचाने की सुविधा

दरअसल, भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मार्च 2020 में कोविड महामारी के दौरान घर-घर जाकर दवाई देने और विक्रय आदि के लिए आवाजाही पर कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध लगाया था. इसके तहत घर-घर दवाइयों की आपूर्ति की अनुमति दी गई थी. दवाओं की बिक्री के लिए प्रिस्क्रिप्शन पर मेडिकल स्टोर स्टॉकिस्ट की मुहर लगाने की अनिवार्यता (नियम 65) को अस्थायी रूप छूट दी गई थी, लेकिन कोरोना की महामारी को बीते अब 5 साल होने को है, लेकिन सरकार ने यह अधिसूचना अब तक वापस नहीं ली है.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कर रहे दुरुपयोग

दवा विक्रेताओं का आरोप है कि कोविड-19 महामारी के दौरान घर-घर दवाइयां पहुंचाने की विशेष अनुमति संबंधी सरकारी फैसले का कई ऑनलाइन सप्लायर कंपनियां अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर कर रही है. ऐसी स्थिति में ना तो डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन देखा जा रहा है और न ही एक्सपायरी डेट की दवाइयां. कई मामलों में ऑनलाइन दवा भेजने का आर्डर करने वाले मरीज असली-नकली दवाइयों को भी पहचान नहीं पाते. वहीं बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के कौन सी दवाई कितनी मात्रा में लेनी है और संबंधित दवाई को लेने पर स्वास्थ्य संबंधी क्या-क्या रिएक्शन हो सकते हैं. यह सारी सावधानियां दरकिनार हो जाती हैं.

दवा विक्रेताओं ने जताया विरोध

नतीजन मरीज को इसका स्वास्थ्य संबंधी खतरा झेलना पड़ रहा है. इधर इसी स्थिति के मद्देनजर अखिल भारतीय केमिस्ट एंड ड्रजिस्ट एसोसिएशन (एआईओसीडी) अब आंदोलन की राह पर है. जिसने तीसरी बार भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखकर कोविड-19 महामारी के दौरान जारी अधिसूचना जीएसआर 220 (ई) को रद्द करने की मांग की है. संगठन के महासचिव राजीव सिंघल बताते है कि "इस अधिसूचना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय दवा विक्रेताओं के माध्यम से आपातकालीन स्थितियों में दवाओं की डिलीवरी करना था, लेकिन अब स्विगी और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा आवश्यक नियामक सुरक्षा उपायों का पालन किए बिना घर पर दवाएं पहुंचाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है.

घर-घर दवा पहुंचाने की सुविधा बंद करने की मांग

ये सभी अवैध प्लेटफॉर्म बिना किसी वैध प्रिस्क्रिप्शन के दवाएं विक्रय कर रहे हैं. जिससे स्वचिकित्सा, नशीली दवाओं का दुरुपयोग और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) जैसी गंभीर समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं. ऐसे सभी अवैध प्लेटफॉर्म मरीजों की सुरक्षा को नजर अंदाज करके केवल अपने मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

इस अधिसूचना का मूल उद्देश्य खास परिस्थितियों में वैध लाइसेंस प्राप्त नजदीकी दवा विक्रेताओं के लिए दवाओं की डिलीवरी करना था, न कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म द्वारा महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को दरकिनार करना, क्योंकि अब देश में महामारी का आपातकालीन चरण समाप्त हो चुका है. इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए. अगर सरकार सकारात्मक कार्रवाई नहीं करती है, तो देश भर के 12.40 लाख दवा विक्रेताओं और संगठन से जुड़े सदस्यों को चरणबद्ध आंदोलन शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा.

इंदौर: कोरोना की आपात स्थिति के दौरान लोगों को बचाने के लिए घर-घर दवा उपलब्ध कराने का सरकारी फैसला लिया गया था. लोगों की मदद करने को लेकर लिया गया फैसला अब दवा विक्रेताओं के विरोध प्रदर्शन और आंदोलन की वजह बन रहा है. इसे रद्द करने की अपील एक बार फिर अखिल भारतीय केमिस्ट एवं ड्रगिस्ट संगठन द्वारा भारत सरकार को की गई है.

कोविड के समय शुरू हुई थी घर-घर दवा पहुंचाने की सुविधा

दरअसल, भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मार्च 2020 में कोविड महामारी के दौरान घर-घर जाकर दवाई देने और विक्रय आदि के लिए आवाजाही पर कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध लगाया था. इसके तहत घर-घर दवाइयों की आपूर्ति की अनुमति दी गई थी. दवाओं की बिक्री के लिए प्रिस्क्रिप्शन पर मेडिकल स्टोर स्टॉकिस्ट की मुहर लगाने की अनिवार्यता (नियम 65) को अस्थायी रूप छूट दी गई थी, लेकिन कोरोना की महामारी को बीते अब 5 साल होने को है, लेकिन सरकार ने यह अधिसूचना अब तक वापस नहीं ली है.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कर रहे दुरुपयोग

दवा विक्रेताओं का आरोप है कि कोविड-19 महामारी के दौरान घर-घर दवाइयां पहुंचाने की विशेष अनुमति संबंधी सरकारी फैसले का कई ऑनलाइन सप्लायर कंपनियां अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर कर रही है. ऐसी स्थिति में ना तो डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन देखा जा रहा है और न ही एक्सपायरी डेट की दवाइयां. कई मामलों में ऑनलाइन दवा भेजने का आर्डर करने वाले मरीज असली-नकली दवाइयों को भी पहचान नहीं पाते. वहीं बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के कौन सी दवाई कितनी मात्रा में लेनी है और संबंधित दवाई को लेने पर स्वास्थ्य संबंधी क्या-क्या रिएक्शन हो सकते हैं. यह सारी सावधानियां दरकिनार हो जाती हैं.

दवा विक्रेताओं ने जताया विरोध

नतीजन मरीज को इसका स्वास्थ्य संबंधी खतरा झेलना पड़ रहा है. इधर इसी स्थिति के मद्देनजर अखिल भारतीय केमिस्ट एंड ड्रजिस्ट एसोसिएशन (एआईओसीडी) अब आंदोलन की राह पर है. जिसने तीसरी बार भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखकर कोविड-19 महामारी के दौरान जारी अधिसूचना जीएसआर 220 (ई) को रद्द करने की मांग की है. संगठन के महासचिव राजीव सिंघल बताते है कि "इस अधिसूचना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय दवा विक्रेताओं के माध्यम से आपातकालीन स्थितियों में दवाओं की डिलीवरी करना था, लेकिन अब स्विगी और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा आवश्यक नियामक सुरक्षा उपायों का पालन किए बिना घर पर दवाएं पहुंचाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है.

घर-घर दवा पहुंचाने की सुविधा बंद करने की मांग

ये सभी अवैध प्लेटफॉर्म बिना किसी वैध प्रिस्क्रिप्शन के दवाएं विक्रय कर रहे हैं. जिससे स्वचिकित्सा, नशीली दवाओं का दुरुपयोग और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) जैसी गंभीर समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं. ऐसे सभी अवैध प्लेटफॉर्म मरीजों की सुरक्षा को नजर अंदाज करके केवल अपने मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

इस अधिसूचना का मूल उद्देश्य खास परिस्थितियों में वैध लाइसेंस प्राप्त नजदीकी दवा विक्रेताओं के लिए दवाओं की डिलीवरी करना था, न कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म द्वारा महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को दरकिनार करना, क्योंकि अब देश में महामारी का आपातकालीन चरण समाप्त हो चुका है. इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए. अगर सरकार सकारात्मक कार्रवाई नहीं करती है, तो देश भर के 12.40 लाख दवा विक्रेताओं और संगठन से जुड़े सदस्यों को चरणबद्ध आंदोलन शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा.

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