किशनगंज: बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. किशनगंज जिला पश्चिम बंगाल, नेपाल और बंग्लादेश के बॉर्डर से जुड़ा हुआ है. सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण इस इलाके को सीमांचल के नाम से भी जानते हैं. इस सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए थे. तब से लेकर अब तक इस सीट पर केवल एक बार हिंदू सांसद ने जीत दर्ज की है. 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार लखन लाल कपूर चुनाव जीते थे. इस बार किशनगंज में जदयू के मुजाहिद आलम और कांग्रेस के मो जावेद के बीच मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन AIMIM के अख्तरू ईमान के दंगल में आने से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है.
करीब 68 प्रतिशत मुस्लिम वोटरः किशनगंज लोकसभा सीट में करीब 68% मुस्लिम वोटर की संख्या है. इसके बाद यादव, सहनी, पासवान, ब्राह्मण, शर्मा, रविदास और मारवाड़ी वोटरों की संख्या है. 2024 का लोकसभा चुनाव किशनगंज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को सिर्फ एक सीट मिली थी वह थी किशनगंज की सीट. 40 में से 39 सीट एनडीए के खाते में गई थी उसे समय भी किशनगंज ने ही महागठबंधन को यहां से खाता खोलने का मौका दिया था. कांग्रेस के मोहम्मद जावेद यहां से चुनाव जीते थे.
विकास के नाम पर वोटिंग की बातः 2024 के चुनाव ने कांग्रेस ने एक बार फिर से मोहम्मद जावेद पर अपना भरोसा जताया है. इस बार एआईएमआईएम के अख्तरुल इमान और जदयू के मुजाहिद आलम चुनावी मैदान में हैं. इस बार चुनाव त्रिकोणात्मक बनाने का प्रयास चल रहा है. किशनगंज में इस बार कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को एआईएमआईएम और जदयू के प्रत्याशी से कड़ी टक्कर मिल रही है. यही कारण है कि इस बार किशनगंज के मतदाता कन्फ्यूजन की स्थिति में हैं. वह अभी तक निर्णय नहीं कर पाए हैं कि किसके पक्ष में वोट करना है. लेकिन स्थानीय लोग अभी भी यह मानते हैं कि वोट विकास के नाम देंगे.
गोलबंद होकर वोट करते हैंः किशनगंज का राजनीतिक इतिहास रहा है कि यहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग गोलबंद होकर किसी एक दल के पक्ष में मतदान करते हैं. किशनगंज के एक सीनियर जर्नलिस्ट ने नाम ना बताने के शर्त पर कहा कि चुनाव से 1 दिन पहले शाम की मगरिब की नमाज (संध्या के समय जो नमाज होता है) उसके बाद निर्णय ले लेते हैं कि किसके पक्ष में मतदान करना है. किशनगंज के स्थानीय पत्रकार अजहर रहमानी का कहना है कि किशनगंज का शुरू से इतिहास रहा है कि यहां पर एंटी बीजेपी के खिलाफ स्थानीय गोलबंद होते हैं. वोटिंग से एक रात पहले यहां के बहुसंख्यक (मुस्लिम) समाज के लोग निर्णय कर लेते हैं कि किसके पक्ष में गोल बंद होकर वोटिंग करना है.
धार्मिक आधार पर वोटिंगः किशनगंज के बारे में आमतौर पर यही धारणा है कि यहां पर धार्मिक आधार पर वोटिंग होती है. यही कारण है कि किशनगंज के इतिहास में मात्र एक बार हिंदू यहां से चुनाव जीत पाए हैं. लेकिन 2024 के चुनाव में इस बार मतदाता भी विकास के नाम पर वोटिंग की बात कर रहे हैं. स्थानीय व्यवसायी पंकज कुमार का कहना है कि किशनगंज में भले ही मुसलमान की आबादी ज्यादा हो लेकिन यहां गंगा जमुनी तहजीब बरकरार है. लोग इस बार विकास के नाम पर वोट करेंगे. वहीं स्थानीय अमित का कहना है कि विकास शिक्षा एवं रोजगार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसलिए इस बार इन्हीं मुद्दों के आधार पर वह लोग अपना मतदान करेंगे.
क्या है समीकरणः किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में करीब 68% मुस्लिम और 32% हिंदू मतदाता हैं. मुस्लिम बहुल किशनगंज की सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. 1957 से 2019 तक 16 लोकसभा चुनावों में से 9 बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. भाजपा से केवल एक बार शाहनवाज हुसैन जीते थे. पिछले तीन चुनावों 2009, 2014 एवं 2019 से कांग्रेस ही जीतती रही है. दिलचस्प बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से महागठबंधन का सिर्फ किशनगंज लोकसभा सीट पर ही कब्जा किया था. 2024 का लोकसभा चुनाव किशनगंज के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है कि इस बार वहां त्रिकोणात्मक मुकाबला है.
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