राजगढ़। जिले में एक ऐसा परिवार है जो भेष बदलकर अपने भरण पोषण का इंतजाम करता है. इस परिवार की परंपरा कई पीढ़िओं से चली आ रही है. ये बहुरूपिये का भेष धारण करके लोगों का मनोरंजन करते हैं और उसी कमाई से परिवार का पालन पोषण करते हैं. लेकिन उनका कहना है कि ये आखिरी पीढ़ी है जो इस काम में है, हम अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, वो नौकरी करेंगे.
बहुरूपिये को देख डर गये लोग
इंसान को पेट के लिए न जाने क्या-क्या करना पड़ता है. राजगढ़ जिले में एक ऐसा परिवार है जो दो वक्त की रोटी के लिए भेष बदलकर लोगों का मनोरंजन करता है. उससे जो कुछ मिल जाता है उसी से अपना गुजारा करता है. मंगलवार को राजगढ़ जिले में तपती दोपहरी में बंदर का भेष बनाकर एक बहरूपिया शहर में सड़कों पर घूमता नजर आया. जिसे देखकर लोग चकित हो गये कि इतना बड़ा बंदर सड़क पर सीधा कैसे चल सकता है. बच्चे डर भी गये. उनके डरने का कारण ये भी था कि सालभर पहले मुहल्ले में एक पागल बंदर घुस आया था, उसने अपने आतंक से दो दर्जन से अधिक लोगों को घायल कर दिया था. वो खौफनाक मंजर अभी भी मुहल्ले वालों के जहन में ताजा था. हालांकि बाद में लोगों को पता चल गया कि ये असली बंदर नहीं बल्कि कोई बहरूपिया है.
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इस काम में ये हमारी आखिरी पीढ़ी है
ईटीवी भारत से बात करने पर बहरूपिये ने अपनी दास्तान बताई. उसने अपना नाम छुट्टन बताया और ये भी बताया कि आखिर उसकी ऐसी क्या मजबूरी है जो ये काम करना पड़ रहा है. छुट्टन ने बताया कि "ये पेशा उनके परिवार में पीढ़िओं से चला आ रहा है. यही उनके परिवार के भरण-पोषण का साधन भी है. लोगों का मनोरंजन करके जो कुछ कमाई होती है उसी से घर का जैसे-तैसे खर्च चलता है. साथ ही छुट्टन ने ये भी बताया कि ये उनके परिवार की आखिरी पीड़ी है जो दूसरों का मनोरंजन करके जीवन यापन कर रही है, क्योंकि अब हम अपने बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं. वो इस बहरूपिये के पेशे में नहीं आयेगें. वे पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी करेगें नहीं तो कोई व्यवसाय करेगें, लेकिन जो हम कर रहे हैं वो नहीं करेंगे.