पटना: लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही एक बार फिर से बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चाएं हो रही हैं. इसको लेकर प्रयास लगाए जाने लगे हैं. ऐसे तो बिहार का चुनाव 2025 में होना है लेकिन मध्यावधि चुनाव की अटकलें लगायी जा रही हैं. अब सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार समय से पहले चुनाव क्यों चाहते हैं? मध्यावधि चुनाव के लिए बीजेपी क्यों तैयार नहीं है? अगर चुनाव होता है तो किसे इसका फायदा होगा और किसे नुकसान उठाना पड़ सकता है?
RJD को हुआ इस बार फायदा: लोकसभा चुनाव में इस बार एनडीए को 2019 के मुकाबले नौ सीट का नुकसान हुआ है और 40 में से 30 सीट पर जीत मिली है. वहीं आरजेडी जिसका 2019 में खाता नहीं खुला था इस बार उसे चार सीट पर जीत मिली है. महागठबंधन को 9 सीटों पर जीत मिली है और एक निर्दलीय उम्मीदवार भी जीते हैं जो कांग्रेस को समर्थन कर रहे हैं. इस हिसाब से देखें तो 10 सीट महागठबंधन खेमे के पास है. वोट प्रतिशत के हिसाब से आरजेडी लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी है. राजद के बाद भाजपा और फिर जदयू को वोट मिला है.
243 सीटों की जंग: बिहार में 243 विधानसभा हैं. 40 लोकसभा सीटों की गणना करें तो अधिकांश लोकसभा सीटों में 6 विधानसभा आते हैं. कुछ में 7 भी हैं. लोकसभा चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार एनडीए के हों या महागठबंधन के विधानसभा के 6 सीटों में कई लोकसभा सीटों में यह साफ दिख रहा है कि 6 में से एक या दो विधानसभा सीटों में हारने वाले उम्मीदवार भी आगे रहे हैं.
हारने वाले उम्मीदवार भी रहे आगे: इसे दो उदाहरण से भी हम समझ सकते हैं. पटना साहिब लोकसभा सीट में 6 विधानसभा के सीट हैं. उसमें से कांग्रेस के अंशुल अविजित फतुहा और बख्तियारपुर विधानसभा सीट पर अधिक वोट लाए हैं, जीतने वाले बीजेपी के रविशंकर प्रसाद के मुकाबले. इसी तरह पाटलिपुत्र से राजद की मीसा भारती चुनाव इस बार जीती हैं. रामकृपाल यादव को 6 विधानसभा में से बख्तियारपुर विधानसभा में मीसा भारती से अधिक वोट मिला है.
NDA को 140-145 विधानसभा सीट!: एनडीए की तरफ से यह दावा जरूर हो रहा है कि 30 लोकसभा सीटों के हिसाब से 180 विधानसभा सीट उनके पक्ष में है लेकिन जब प्रत्येक लोकसभा सीट में एक या दो विधानसभा सीट निकाल देंगे तो यह संख्या घटकर 130 से 135 विधानसभा सीट के आसपास पहुंच जाएगा. दूसरी तरफ महागठबंधन के 10 लोकसभा सीट की बात करें तो निर्दलीय के साथ तो उसमें भी 60 से अधिक विधानसभा सीट आते हैं
RJD को 100-105 से अधिक सीट!: 10 से 12 विधानसभा सीटों में वहां आगे एनडीए आगे रही है तो इस हिसाब से देखें तो 50 से कम विधानसभा सीटों में ही महागठबंधन आगे दिख रही है. दोनों मिला दें तो एक तरफ एनडीए 140-145 विधानसभा सीटों पर लोकसभा के रिजल्ट के आधार पर बढ़त में है तो दूसरी तरफ 100-105 से अधिक विधानसभा सीटों पर महागठबंधन फिलहाल बढ़त में है.
यहां लगा एनडीए को झटका: यदि हम क्षेत्र के हिसाब से लोकसभा और विधानसभा को देखें तो शाहाबाद, मगध, सीमांचल, मिथिलांचल, कोसी, तिरहुत और दक्षिण बिहार के साथ पश्चिम बिहार में से शाहाबाद, मगध और सीमांचल में एनडीए को इस बार भी झटका लगा है. शाहाबाद और मगध में 2020 विधानसभा चुनाव में भी जदयू का सुपड़ा साफ हो गया था. इस बार मगध और शाहाबाद आरजेडी को सफलता मिली है, लेकिन दूसरी तरफ मिथिलांचल सीमांचल और तिरहुत में एनडीए 2019 की तरह ही प्रदर्शन किया है.
मिथिलांचल में एनडीए का वर्चस्व: मिथिलांचल में दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर एनडीए को जीत मिली है. दरभंगा और मधुबनी में बीजेपी के उम्मीदवार ने राजद के उम्मीदवार को डेढ़ लाख से अधिक मतों से पराजित किया है. हालांकि दोनों जगह राजद के बड़े नेता चुनाव लड़ रहे थे, जहां दरभंगा में ललित यादव तो मधुबनी में अली अशरफ फातमी चुनाव मैदान में थे.
सीमांचल में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर: सीमांचल में किशनगंज सीट कांग्रेस के पास फिर से चला गया है. इस बार कटिहार सीट पर भी कांग्रेस को जीत मिली है तो वहीं अररिया सीट बीजेपी ने फिर जीता है. जबकि पूर्णिया सीट पर एनडीए को नुकसान हुआ है. क्योंकि जदयू के उम्मीदवार यहां से चुनाव हार गए हैं. निर्दलीय पप्पू यादव को यहां से सफलता मिली है.
पप्पू यादव को मिली सफलता: महागठबंधन के उम्मीदवार भी यहां चुनाव लड़ रहे थे. आरजेडी की तरफ से बीमा भारती चुनाव मैदान में थी लेकिन उन्हें बहुत ज्यादा वोट नहीं मिला. ऐसे निर्दलीय पप्पू यादव ने कांग्रेस का समर्थन किया है. इस तरह से सीमांचल में 2019 में 3 सीटों पर एनडीए को सफलता मिली थी, इस बार तीन सीट महागठबंधन ने जीता है.
मधेपुरा, सुपौल पर जेडीयू का कब्जा: कोसी क्षेत्र की मधेपुरा, सुपौल दोनों सीट पर जदयू को फिर से जीत मिली है. डेढ़ लाख से अधिक मतों से राजद प्रत्याशी को जदयू के उम्मीदवार ने दोनों सीट पर हराया है. वहीं तिरहुत क्षेत्र में वैशाली , उजियारपुर, हाजीपुर , शिवहर , मुजफ्फरपुर और वाल्मीकि नगर लोकसभा सीटों पर एनडीए को जीत मिली है. 2019 में भी जीत मिली थी.
दूसरे स्थान पर रहीं हिना शहाब: सिवान सीट पर एक बार फिर से जदयू के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है हालांकि जदयू ने इस बार उम्मीदवार बदल दिया था. उसके बावजूद जदयू यह सीट बचाने में कामयाब रहा है. राजद ने यहां से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को मैदान में उतारा था, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे तो वहीं निर्दलीय हिना शहाब दूसरे स्थान पर रहीं.
इन सीटों पर हुई आरजेडी की हार: दक्षिण और पश्चिम बिहार की लोकसभा सीटों की बात करें तो मुंगेर , नवादा, सारण, जमुई, भगलपुर और बांका में भी एनडीए को जीत मिली है. इन सभी सीटों पर राजद की हार हुई है. 2019 में भी एनडीए को सभी सीटों पर सफलता मिली थी. मगध की गया और नवादा सीट पर भी एनडीए को जीत मिली है. गया से जीतनराम मांझी तो नवादा से बीजेपी के विवेक ठाकुर ने जीत हासिल की है. गया से राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सर्वजीत चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन इसके बावजूद राजद की हार हो गई.
मुंगेर पर कब्जा आसान नहीं: कुल मिलाकर देखें तो मगध के साथ मिथिलांचल, कोसी, चंपारण और दक्षिण और पश्चिम बिहार की लोकसभा सीटों में एनडीए ने 2019 का प्रचम लहराया है. सिवान शिवहर दरभंगा मुंगेर लोकसभा सीट पर राजद को अंतिम बार 2004 में जीत मिली थी. उसके बाद से लगातार चुनाव आरजेडी हार रहा है. वैशाली में आरजेडी को अंतिम बार 2009 में चुनाव में जीत मिली थी उसके बाद से लगातार चुनाव में हर है तो वहीं उजियारपुर बाल्मीकि नगर लोकसभा सीट अभी तक कोई सफलता आरजेडी को नहीं मिली है.
नीतीश के साथ बड़ा वोट बैंक: लोकसभा सीटों के आधार पर विधानसभा के सीटों को लेकर विश्लेषण शुरू है. सभी दलों की ओर से मंथन हो रहा है. राजनीतिक विशेषज्ञ मंथन करने में लगे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर संजय कुमार का कहना है कि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव अलग-अलग पैटर्न से लड़ा जाता है. लेकिन जातीय और सामाजिक समीकरण की बात करें तो एक तरफ नीतीश कुमार के साथ इस बार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी रहेंगे भाजपा तो हैं ही और नीतीश कुमार का अति पिछड़ा वोट बैंक जो 36 प्रतिशत है वह भी रहेगा.
"साथ ही महिलाओं की 50% आबादी का बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ है जो लोकसभा चुनाव में भी दिखा है. दूसरी तरफ तेजस्वी यादव माई बाप तक समीकरण बनाने में लगे हैं. साथ ही कुशवाहा को भी जोड़ने की कोशिश है और वामपंथी दल उनके साथ है तो दोनों तरफ से जातीय और सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश हो रही है. अब विधानसभा चुनाव में क्या स्थिति रहेगी क्या, स्लोगन रहेंगे, क्या नेरेटिव बनेगी वोटिंग सब कुछ इस पर निर्भर रहेगा."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ
तेजस्वी का दावा: एक तरफ जहां राजद के तरफ से लगातार दावा हो रहा है कि विधानसभा में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी. तेजस्वी यादव तो दो कदम आगे बढ़कर यह भी दावा कर रहे हैं कि 2019 में आरजेडी को जीरो सीट मिली थी लेकिन विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. अब लोकसभा में चार सीट मिला है तो चार गुना अधिक विधानसभा चुनाव में सीट मिलेगा. जदयू के नेता इसको लेकर तंज कस रहे हैं क्योंकि आरजेडी को 75 से अधिक सीट मिला है. उस हिसाब से तब तो विधानसभा का आकार बढ़ाना पड़ेगा.
"इंडिया गठबंधन के लोग तो 40 सीट जीतने का दावा कर रहे थे लेकिन क्या हाल रहा उनका, लक्ष्य के करीब तो हम ही लोग पहुंचे."- उमेश कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष, जदयू
एनडीए उम्मीदवार की जीत का मार्जिन घटा: 2024 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर से बीजेपी के उम्मीदवार राज भूषण चौधरी 234000 से अधिक मतों से जीते हैं और यह सबसे अधिक अंतर से जीत इस बार का है. जबकि 2019 में मधुबनी से बीजेपी के उम्मीदवार अशोक यादव साढ़े 4 लाख से अधिक मतों से चुनाव जीते थे . इस बार 20 ऐसे उम्मीदवार हैं जिनका 100000 से अधिक मतों से जीत मिली है जिसमें एनडीए के 18 और महागठबंधन के एक साथ ही एक निर्दलीय उम्मीदवार हैं. 2019 में 6 ऐसे एनडीए के उम्मीदवार थे जिनको 3 लाख से अधिक वोटो से जीत मिली थी तो इस बार जीत का अंतर भी काफी घटा है और यह एनडीए के लिए परेशानी बढ़ाने वाला है.
महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमे में चुनाव की तैयारी शुरू: विधानसभा का चुनाव नवंबर, 2025 में होना है. ऐसे तो नीतीश कुमार चाहते थे लोकसभा चुनाव के साथ ही हो जाए लेकिन बीजेपी उस समय तैयार नहीं थे. अब लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है, चर्चा यह है कि नीतीश कुमार झारखंड और अन्य राज्यों के साथ ही चुनाव कराने के लिए दबाव डाल सकते हैं. फिलहाल जदयू के नेता भी खुलकर चुनाव को लेकर नहीं बोल रहे हैं लेकिन तैयारी महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमे में शुरू है.
रोजगार बना बड़ा मुद्दा: लोकसभा चुनाव में 20 सीटों पर पिछड़े और अति पिछड़ों ने बाजी मारी है , जबकि 12 सीटों पर सवर्ण ने सिक्का जमाया है. 6 सीट दलितों के लिए रिजर्व है तो वहीं दो सीट पर इस बार मुस्लिम उम्मीदवार ने भी जीत हासिल की है.. 2019 के मुकाबले एनडीए के लिए यह भी एक परेशानी बढ़ाने वाला संकेत है. इस तरह से देखें तो विधानसभा का चुनाव एनडीए के लिए इस बार आसान नहीं होने वाला है. क्योंकि तेजस्वी यादव का नौकरी रोजगार का मुद्दा इस बार भी रहेगा और इसलिए लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद ही नीतीश कुमार ने बहाली शुरू करने के लिए कई विभागों को निर्देश दे रखा है कुछ ने तो घोषणा भी कर दी है.
इसे भी पढ़ें- क्या नीतीश के दबाव में बिहार में होंगे मध्यावधि चुनाव? लोकसभा चुनाव के बाद बदले राजनीतिक परिदृश्य - Bihar mid term election