देहरादून: उत्तराखंड में वन विभाग अब वैज्ञानिक विश्लेषण के जरिए मानव वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने की कोशिश में जुट गया है. खास बात ये है कि 'ह्यूमन वाइल्डलाइफ कनफ्लिक्ट मिटिगेशन सेल' इस मामले में महकमे के लिए बेहद मददगार साबित हो रहा है. ऐसे में मिली जानकारियों के आधार पर विभाग न केवल सटीक कार्ययोजना बना पा रहा है. बल्कि, संवेदनशील क्षेत्रों का चिन्हीकरण कर उन पर विशेष ध्यान भी दिया जा रहा है.
7 महीने पहले बनाया गया था मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ: मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ की ओर से जुटाए गए आंकड़ों और जानकारी की बदौलत विभाग के अधिकारी इसके लिए वैज्ञानिक विश्लेषण कर पा रहे हैं. इस प्रकोष्ठ का गठन करीब 7 महीने पहले किया गया था. खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रकोष्ठ में ही बनाए गए कॉल सेंटर में पहले कॉल करते हुए यहां की स्थितियों का भी जायजा लिया था.
मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ न केवल प्रदेश में अब तक हुई मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं का रिकॉर्ड तैयार कर रहा है. बल्कि, इसके जरिए अलग-अलग वन्यजीवों के इंसानों से आमना-सामना होने से जुड़ी जानकारियां भी जुटाई जा रही है. बड़ी बात ये है कि अब प्रकोष्ठ के गठन का मकसद भी हल होता हुआ दिखाई दे रहा है और कई महत्वपूर्ण जानकारियां वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद कार्य योजना में जोड़ी जा रही है.
मसलन मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं के आधार पर संवेदनशील क्षेत्र को चिन्हित किया गया है और इसी आधार पर विभाग की ओर से बजट की प्राथमिकताएं भी तय की गई है. इसके अलावा क्विक रिस्पांस टीम की तैनाती से लेकर उनके प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जा रही है. साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग वन्यजीवों से इंसानों के संघर्ष पर इस तरह के संसाधन जुटाए जा रहे हैं.
वहीं, जिन क्षेत्रों में बाघों की इंसानों के साथ संघर्ष की घटनाएं दिखाई दे रही है, वहां पर टीमों को इस लिहाज से प्रशिक्षित किया जा रहा है. साथ ही बाघों के बाड़ों और दूसरी जरूरी चीजों को भी मुहैया कराया जा रहा है. इसी तरह गुलदार, सांप, मगरमच्छ और दूसरे वन्यजीव से संघर्ष के मामले में भी कार्य योजना को इस लिहाज से बनाया जा रहा है.
वनाधिकारी भी मानते हैं कि वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए प्रकोष्ठ की जानकारियां काफी ज्यादा काम आ रही हैं और अब संघर्ष की घटनाओं को रोकथाम के लिए ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से कार्य योजनाओं को आगे बढ़ाया जा पा रहा है. वैसे आंकड़ों से ये बात भी सामने आई है कि मानव वन्यजीव संघर्ष के रिकॉर्ड पिछले सालों की तुलना में कुछ बेहतर हुए हैं. उधर, दूसरी तरफ मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण प्रकोष्ठ के जरिए कृषि और पशु क्षति से जुड़े आंकड़े भी तैयार किया जा रहे हैं. जिस पर भविष्य में इस तरह की प्लानिंग योजनाओं में दिखाई देगी.
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