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मोक्ष नगरी का नाम कैसे पड़ा 'गयाजी' ? रोचक है पुराणों में वर्णित है कहानी - Pitru Paksha 2024

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 3 hours ago

क्या आप जानते हैं कि पितरों को तारने वाली पवित्र तीर्थ नगरी गया का नाम गयाजी कैसे पड़ा? इसको लेकर एक कथा पुराणों में वर्णित है. पढ़ें पूर खबर

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गया : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. गया का नाम 'गयाजी' कैसे पड़ा उसको लेकर एक कथा सतयुग काल से जुड़ी है. पुराण-शास्त्रों में वर्णित कथाओं में उल्लेख है, कि यहां भगवान विष्णु गदाधर रूप में स्वयं साक्षात आए थे और उन्होंने गयासुर नामक राक्षस को शांत करने के लिए उसके शरीर पर अपने दाहिने पैर को रखा था.

काशी प्रयाग से भी प्राचीन तीर्थ है गया : गया जी धाम का कई पुराण शास्त्रों में वर्णन है. गया जी तीर्थ के काशी प्रयाग से भी प्राचीन होने का वर्णन कई पुराण शास्त्रों में आता है. गया जी के बारे में कथा है, कि भगवान विष्णु ने गदाधर रूप में यहां आकर स्वयं अपना दाहिना पैर गयासुर नाम के राक्षस के शरीर पर रखा था. भगवान विष्णु के गजाधर रूप में गयासुर के शरीर पर पैर रखने से गयासुर को उत्तम लोक की प्राप्ति हुई थी.

अपने स्पर्श से स्वर्ग भेजने लगा था गयासुर : पुराण शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार गयासुर नाम का राक्षस हुआ करता था, जो अत्यंत ही तपस्वी धार्मिक प्रवृत्ति का था. गयासुर ने कोलाहल पर्वत पर तपस्या की थी. उसकी घोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए थे और उसके समक्ष प्रकट हुए थे. तब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान मांगने को कहा था, तो गयासुर ने मांगा था, कि मैं जिसे स्पर्श करूं, वह स्वर्गलोक चला जाए. भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान न चाहते हुए भी दे दिया.

यमपुरी हो गई सूनी : इस तरह का वरदान मिलने के बाद गयासुर के स्पर्श से सभी प्राणी स्वर्ग लोक को जाने लगे. यमपुरी सूनी होने लगी. इसके बाद सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास गए. ब्रह्मा जी गयासुर के पास आए और कहा कि मुझे यज्ञ के लिए इस धरती पर पवित्र स्थान नहीं मिल रहा है, इसलिए अपना शरीर इस यज्ञ के लिए मुझे दें. गयासुर नाम के असुर ने भगवान ब्रह्मा जी की बात को मान लिया. इसके बाद ब्रह्मा जी ने गयासुर नाम के राक्षस के शरीर पर धर्मशिला रखकर यज्ञ शुरू किया.

जब भगवान विष्णु प्रकटे गदाधर रूप में : धर्मशिला होने के बावजूद गयासुर का शरीर हिलता डुलता रहा. वह इतना पुण्यात्मा था, कि उसके शरीर पर धर्मशिला रखने के बावजूद हिलता डुलता रहा. उसके शरीर के हिलने डुबने से रोकने के लिए भगवान विष्णु स्वयं यहां गदाधर रूप में पहुंचे और अपना दाहिना पैर गयासुर के शरीर पर रखा. भगवान विष्णु के दाहिने पैर के रखते ही गयासुर का शरीर हिलना डुलना बंद हो गया.

ऐसे पड़ा गया नाम : गयासुर ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. कहा, जिस स्थान पर मैं अपने प्राण का त्याग कर रहा हूं. वह शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उसमें सदैव मौजूद रहूं. उस शिला पर आपके पवित्र चरण चिन्ह सदैव रहें. यह तीर्थ मेरे नाम से जाना जाए. भगवान विष्णु ने गयासुर की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया. इसके बाद से भगवान विष्णु की यह नगरी गयाजी है और यहां पितरों के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड किया जाता है.

''भगवान विष्णु ने गया सुर नाम के राक्षस के शरीर पर अपना दाहिना पैर रखा था, तब से यह धाम इस असुर के नाम से जाना जाता है और तब से गया नामकरण हुआ. यहां साक्षात भगवान विष्णु के चरण चिन्ह मौजूद हैं. गयासुर राक्षस का शरीर जहां-जहां फैला था, वहां -वहां पिंडवेदिया हैं और सभी का माहत्म्य बताया गया है. सभी पिंड वेदियों पर अलग-अलग तिथियों में पितृपक्ष में पिंडदान श्राद्ध और तर्पण का विधान है.''- धीरनलाल, गया पाल पंडा

गयासुर के शरीर के हिस्से वाले भाग पर पिंड वेदी : गयाजी तीर्थ क्षेत्र कई मील में है. कहा जाता है कि जहां-जहां गया सुर के शरीर का हिस्सा है, वहां पिंडवेदी विराजमान है और इन वेदियों पर पिंडदान करने का विधान है. यही वजह है, कि गयाजी में सालों भर पिंडदानी आते हैं. वहीं, पितृपक्ष में पिंंडदान का खास महत्व है. गयासुर के ऊपर भगवान विष्णु के अलौकिक चरण चिन्ह हैं, जहां पितरों के मोक्ष की कामना की जाती है.

कसौटी पत्थरों से बना है विष्णुपद मंदिर : विष्णुपद मंदिर कसौटी पत्थरों से बना है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई के द्वारा कराया गया था. विष्णु पद मंदिर अद्भुत और प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल है. युगों -युगों के बाद भी भगवान विष्णु के चरण चिन्ह यहां उसी रूप में आज भी मौजूद हैं. इस तरह गयासुर नाम के असुर के नाम पर गयाजी का नाम गया पड़ा था.

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गया : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. गया का नाम 'गयाजी' कैसे पड़ा उसको लेकर एक कथा सतयुग काल से जुड़ी है. पुराण-शास्त्रों में वर्णित कथाओं में उल्लेख है, कि यहां भगवान विष्णु गदाधर रूप में स्वयं साक्षात आए थे और उन्होंने गयासुर नामक राक्षस को शांत करने के लिए उसके शरीर पर अपने दाहिने पैर को रखा था.

काशी प्रयाग से भी प्राचीन तीर्थ है गया : गया जी धाम का कई पुराण शास्त्रों में वर्णन है. गया जी तीर्थ के काशी प्रयाग से भी प्राचीन होने का वर्णन कई पुराण शास्त्रों में आता है. गया जी के बारे में कथा है, कि भगवान विष्णु ने गदाधर रूप में यहां आकर स्वयं अपना दाहिना पैर गयासुर नाम के राक्षस के शरीर पर रखा था. भगवान विष्णु के गजाधर रूप में गयासुर के शरीर पर पैर रखने से गयासुर को उत्तम लोक की प्राप्ति हुई थी.

अपने स्पर्श से स्वर्ग भेजने लगा था गयासुर : पुराण शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार गयासुर नाम का राक्षस हुआ करता था, जो अत्यंत ही तपस्वी धार्मिक प्रवृत्ति का था. गयासुर ने कोलाहल पर्वत पर तपस्या की थी. उसकी घोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए थे और उसके समक्ष प्रकट हुए थे. तब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान मांगने को कहा था, तो गयासुर ने मांगा था, कि मैं जिसे स्पर्श करूं, वह स्वर्गलोक चला जाए. भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान न चाहते हुए भी दे दिया.

यमपुरी हो गई सूनी : इस तरह का वरदान मिलने के बाद गयासुर के स्पर्श से सभी प्राणी स्वर्ग लोक को जाने लगे. यमपुरी सूनी होने लगी. इसके बाद सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास गए. ब्रह्मा जी गयासुर के पास आए और कहा कि मुझे यज्ञ के लिए इस धरती पर पवित्र स्थान नहीं मिल रहा है, इसलिए अपना शरीर इस यज्ञ के लिए मुझे दें. गयासुर नाम के असुर ने भगवान ब्रह्मा जी की बात को मान लिया. इसके बाद ब्रह्मा जी ने गयासुर नाम के राक्षस के शरीर पर धर्मशिला रखकर यज्ञ शुरू किया.

जब भगवान विष्णु प्रकटे गदाधर रूप में : धर्मशिला होने के बावजूद गयासुर का शरीर हिलता डुलता रहा. वह इतना पुण्यात्मा था, कि उसके शरीर पर धर्मशिला रखने के बावजूद हिलता डुलता रहा. उसके शरीर के हिलने डुबने से रोकने के लिए भगवान विष्णु स्वयं यहां गदाधर रूप में पहुंचे और अपना दाहिना पैर गयासुर के शरीर पर रखा. भगवान विष्णु के दाहिने पैर के रखते ही गयासुर का शरीर हिलना डुलना बंद हो गया.

ऐसे पड़ा गया नाम : गयासुर ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. कहा, जिस स्थान पर मैं अपने प्राण का त्याग कर रहा हूं. वह शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उसमें सदैव मौजूद रहूं. उस शिला पर आपके पवित्र चरण चिन्ह सदैव रहें. यह तीर्थ मेरे नाम से जाना जाए. भगवान विष्णु ने गयासुर की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया. इसके बाद से भगवान विष्णु की यह नगरी गयाजी है और यहां पितरों के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड किया जाता है.

''भगवान विष्णु ने गया सुर नाम के राक्षस के शरीर पर अपना दाहिना पैर रखा था, तब से यह धाम इस असुर के नाम से जाना जाता है और तब से गया नामकरण हुआ. यहां साक्षात भगवान विष्णु के चरण चिन्ह मौजूद हैं. गयासुर राक्षस का शरीर जहां-जहां फैला था, वहां -वहां पिंडवेदिया हैं और सभी का माहत्म्य बताया गया है. सभी पिंड वेदियों पर अलग-अलग तिथियों में पितृपक्ष में पिंडदान श्राद्ध और तर्पण का विधान है.''- धीरनलाल, गया पाल पंडा

गयासुर के शरीर के हिस्से वाले भाग पर पिंड वेदी : गयाजी तीर्थ क्षेत्र कई मील में है. कहा जाता है कि जहां-जहां गया सुर के शरीर का हिस्सा है, वहां पिंडवेदी विराजमान है और इन वेदियों पर पिंडदान करने का विधान है. यही वजह है, कि गयाजी में सालों भर पिंडदानी आते हैं. वहीं, पितृपक्ष में पिंंडदान का खास महत्व है. गयासुर के ऊपर भगवान विष्णु के अलौकिक चरण चिन्ह हैं, जहां पितरों के मोक्ष की कामना की जाती है.

कसौटी पत्थरों से बना है विष्णुपद मंदिर : विष्णुपद मंदिर कसौटी पत्थरों से बना है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई के द्वारा कराया गया था. विष्णु पद मंदिर अद्भुत और प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल है. युगों -युगों के बाद भी भगवान विष्णु के चरण चिन्ह यहां उसी रूप में आज भी मौजूद हैं. इस तरह गयासुर नाम के असुर के नाम पर गयाजी का नाम गया पड़ा था.

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