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पांडवकालीन नीलकंठ महादेव मंदिर बना पर्यटन केंद्र, हमेशा लगा रहता है भक्तों का तांता, मंदिर की यह है खासियत - Neelkanth Mahadev Temple

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 19, 2024, 7:09 PM IST

अलवर में सरिस्का के जंगल में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कराई थी. जानिए मंदिर की विशेषताएं

नीलकंठ महादेव मंदिर
नीलकंठ महादेव मंदिर (ETV Bharat Alwar)
नीलकंठ महादेव मंदिर (ETV Bharat Alwar)

अलवर : जिले को पर्यटन केंद्रों की खान कहा जाता है. इसका कारण यहां सरिस्का टाइगर रिजर्व, पांडुपोल एवं भर्तृहरि धाम सहित 52 ऐतिहासिक किले देश दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं. सरिस्का के पास स्थित पांडवकालीन नीलकंठ महादेव मंदिर भी इन दिनों धार्मिक के साथ ही प्रमुख पर्यटन केंद्र का रूप ले चुका है. यहां महाशिवरात्री एवं श्रावण मास के अलावा भी साल भर पर्यटकों का आना जाना रहता है.

मंदिर के पुजारी भैरूसहाय योगी ने बताया कि अलवर शहर से करीब 65 किलोमीटर दूर सरिस्का के जंगल में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कराई. इस ऐतिहासिक मंदिर पर विदेशी आक्रांताओं ने हमला कर मिटाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. साथ ही सरिस्का की वादियों में स्थित होने के कारण नीलकंठ महादेव मंदिर की प्रसिद्धि देश दुनिया में है. सरिस्का, पांडुपोल आने वाले ज्यादातर पर्यटक नीलकंठ महादेव मंदिर भी पहुंचते हैं. इस कारण यह ऐतिहासिक मंदिर अब अलवर जिले का प्रमुख पर्यटन केंद्र भी बन गया है.

इसे भी पढ़ें- जोधपुर का 300 साल पुराना मंदिर, जहां धन ऐश्वर्य की होती है प्राप्ति, सिर्फ पुरुष ही करते हैं जलाभिषेक - Sawan 2024

नीलकंठ मंदिर की यह भी खासियत : ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की खासियत है कि यहां स्थापित शिवलिंग नीलम का है. साढ़े चार फीट ऊंचे शिविलिंग की एक और खासियत है कि वह महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान प्राकृतिक रूप से दिन में तीन बार अपना रंग भी बदलता है. यही कारण है कि नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर जिला ही नहीं बल्कि प्रदेश के प्रमुख शिव मंदिरों में शुमार है.

विदेशी आक्रांताओं ने किया था आक्रमण : सरिस्का स्थित ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की ख्याति के चलते ही विदेशी मुगल आक्रांताओं ने इसे तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. मंदिर में आज भी विदेशी आक्रांताओं की ओर क्षतिग्रस्त प्रतिमाएं मौजूद हैं. वर्तमान में आर्केलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की ओर से मंदिर की देखरेख की जा रही है. इतिहासकार हरिशंकर गोयल का कहना है कि मंदिर की स्थापना वर्ष 1010 में तत्कालीन शासक अजयपाल ने कराई थी.

इसे भी पढ़ें- देवगिरि पहाड़ी पर मौजूद दो सौ साल पुराने नीलकंठ महादेव के दर्शनों के लिए उमड़ा सैलाब - Neelkanth Mahadev Temple in Dausa

ऐतिहासिक मंदिर की यह भी विशेषता : नीलकंठ महादेव मंदिर का गर्भगृह, शिखर पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है. इस मंदिर की विशेषता है कि इसके निर्माण में सीमेंट, चूना या किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है. मंदिर के गर्भगृह एवं शिखरों पर दुलर्भ देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी हुई हैं. यहां नृत्य मुद्रा में भगवान गणेश की दुलर्भ प्रतिमा एवं अन्य कई देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाएं हैं, जो प्राचीन संस्कृति एवं कलाकृति का बेजोड़ नमूना है.

गर्भगृह में प्रज्जवलित है अखंड जोत : मंदिर के पुजारी भैरूसहाय योगी ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी, तभी से यहां गर्भगृह में अखंड जोत प्रज्जवलित है. नीलकंठ महादेव मंदिर की पूजा नाथ संप्रदाय की ओर से की जाती है. श्रावण मास एवं महाशिवरात्रि पर मंदिर के शिवलिंग के दर्शन के लिए राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मुंबई, हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों से भक्त आते हैं. श्रावण मास में यहां मेले का माहौल रहता है.

नीलकंठ महादेव मंदिर (ETV Bharat Alwar)

अलवर : जिले को पर्यटन केंद्रों की खान कहा जाता है. इसका कारण यहां सरिस्का टाइगर रिजर्व, पांडुपोल एवं भर्तृहरि धाम सहित 52 ऐतिहासिक किले देश दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं. सरिस्का के पास स्थित पांडवकालीन नीलकंठ महादेव मंदिर भी इन दिनों धार्मिक के साथ ही प्रमुख पर्यटन केंद्र का रूप ले चुका है. यहां महाशिवरात्री एवं श्रावण मास के अलावा भी साल भर पर्यटकों का आना जाना रहता है.

मंदिर के पुजारी भैरूसहाय योगी ने बताया कि अलवर शहर से करीब 65 किलोमीटर दूर सरिस्का के जंगल में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कराई. इस ऐतिहासिक मंदिर पर विदेशी आक्रांताओं ने हमला कर मिटाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. साथ ही सरिस्का की वादियों में स्थित होने के कारण नीलकंठ महादेव मंदिर की प्रसिद्धि देश दुनिया में है. सरिस्का, पांडुपोल आने वाले ज्यादातर पर्यटक नीलकंठ महादेव मंदिर भी पहुंचते हैं. इस कारण यह ऐतिहासिक मंदिर अब अलवर जिले का प्रमुख पर्यटन केंद्र भी बन गया है.

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नीलकंठ मंदिर की यह भी खासियत : ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की खासियत है कि यहां स्थापित शिवलिंग नीलम का है. साढ़े चार फीट ऊंचे शिविलिंग की एक और खासियत है कि वह महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान प्राकृतिक रूप से दिन में तीन बार अपना रंग भी बदलता है. यही कारण है कि नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर जिला ही नहीं बल्कि प्रदेश के प्रमुख शिव मंदिरों में शुमार है.

विदेशी आक्रांताओं ने किया था आक्रमण : सरिस्का स्थित ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की ख्याति के चलते ही विदेशी मुगल आक्रांताओं ने इसे तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. मंदिर में आज भी विदेशी आक्रांताओं की ओर क्षतिग्रस्त प्रतिमाएं मौजूद हैं. वर्तमान में आर्केलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की ओर से मंदिर की देखरेख की जा रही है. इतिहासकार हरिशंकर गोयल का कहना है कि मंदिर की स्थापना वर्ष 1010 में तत्कालीन शासक अजयपाल ने कराई थी.

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ऐतिहासिक मंदिर की यह भी विशेषता : नीलकंठ महादेव मंदिर का गर्भगृह, शिखर पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है. इस मंदिर की विशेषता है कि इसके निर्माण में सीमेंट, चूना या किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है. मंदिर के गर्भगृह एवं शिखरों पर दुलर्भ देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी हुई हैं. यहां नृत्य मुद्रा में भगवान गणेश की दुलर्भ प्रतिमा एवं अन्य कई देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाएं हैं, जो प्राचीन संस्कृति एवं कलाकृति का बेजोड़ नमूना है.

गर्भगृह में प्रज्जवलित है अखंड जोत : मंदिर के पुजारी भैरूसहाय योगी ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी, तभी से यहां गर्भगृह में अखंड जोत प्रज्जवलित है. नीलकंठ महादेव मंदिर की पूजा नाथ संप्रदाय की ओर से की जाती है. श्रावण मास एवं महाशिवरात्रि पर मंदिर के शिवलिंग के दर्शन के लिए राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मुंबई, हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों से भक्त आते हैं. श्रावण मास में यहां मेले का माहौल रहता है.

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