शिमला: जिस महान शहनाई वादक की छेड़ी गई धुनों से अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव आरंभ होता रहा, सभी रागों के सिद्धहस्त कलाकार सूरजमणि अब इस संसार से विदा हो गए हैं. नवरात्रि पर्व में सूरजमणि ने शुक्रवार सुबह इस नश्वर संसार से विदा ले ली. एम्स बिलासपुर में उनका निधन हो गया. शहनाई के आकाश की वो सूरज सी मणि अब परलोक में स्थापित हो गई है. सूरजमणि के निधन से समूचे संगीत संसार में शोक की धुन है. मंडी जिले के चच्योट निवासी सूरजमणि ने देश-विदेश में अपनी कला की छाप छोड़ी. बिना उस्ताद के वे एकलव्य की तरह बिस्मिल्लाह खां को अपना गुरु मानकर संगीत साधना करते रहे और सभी रागों में सिद्ध हो गए थे. बीमारी के दौरान पहले उन्हें नेरचौक और फिर एम्स में भर्ती किया गया था.
बिस्मिल्लाह खान के रिकार्ड्स सुनकर सीखे सभी राग
सूरजमणि की मौजूदगी से देवस्थान मंगल ध्वनि से गूंज उठते थे और देव कारज की शुभ घड़ियां उनकी शहनाई से निकलने वाले मधुर स्वरों की राह निहारती थी. लकड़ी के प्राण विहीन टुकड़े से बनी शहनाई सूरजमणि के प्राणों में रची-बसी थी. अब ये शहनाई खामोश हो गई है. सूरजमणि ने संगीत विद्या नहीं पढ़ी थी. अक्षर ज्ञान से लगभग अनजान सूरजमणि संगीत की महीन बारीकियों को लेकर वाद-विवाद भी नहीं करते थे. हां, यह बात सौ प्रतिशत सही है कि वे शहनाई की आत्मा को गहराई से महसूस करते रहे. अभावों के बीच पले-बढ़े सूरजमणि ने महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के रिकार्ड्स सुन-सुन कर सभी रागों में महारत हासिल कर ली थी. तीसरी जमात तक पढ़े सूरजमणि हिमाचल में अकेले ऐसे शहनाई वादक थे, जो इस साज को हर स्केल पर साध चुके थे. यानी वे हर स्केल पर समान गहराई से शहनाई बजा लेते थे. सूरजमणि आकाशवाणी में शहनाई वादन के A ग्रेड कलाकार थे, ये सम्मान पाने वाले वो हिमाचल के इकलौते शहनाई वादक थे.
सूरजमणि जिस परिवार में पैदा हुए, वो देव समाज में इसलिए प्रतिष्ठित माना जाता था, क्योंकि धार्मिक आयोजन इस परिवार के बिना शुरू नहीं होते. मंगलाचारी के नाम से पहचान रखने वाला यह परिवार पहले मंगल ध्वनि बजाता फिर देव उत्सव शुरू होते. सूरजमणि के ताया गुज्जूराम और चाचा कुंदन लाल शहनाई के माहिर उस्ताद थे. श्रमिक पिता मोहनलाल दो जून रोटी के जुगाड़ में व्यस्त रहते, लेकिन मां मरची देवी का कंठ सुरीला था और वो गाती भी थीं. पंद्रह साल की आयु में सूरजमणि को चाचा कुंदन लाल ने रागों से परिचय करवाना शुरू कर दिया. बड़े होने पर बिस्मिल्लाह खान की कैसेट्स से सीखा और हिमाचल के संगीत जगत के प्रतिष्ठित नाम डॉ. कृष्ण लाल सहगल ने भी सूरजमणि को रागों की पहचान सिखाई.
सूरजमणि से प्रभावित थे मोहित चौहान
वर्ष 1990 में उन्होंने आकाशवाणी में दस्तक दी और वे पहली ही बार में सिलेक्ट कर लिए गए. सूरजमणि ने हिमाचल के सभी संगीत मंचों पर अपनी कला बिखेरी है. देश में चेन्नई, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा सहित विदेश में भी शहनाई बजाई है. हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में भी उन्होंने कई बार शिरकत की है. हिमाचल के संगीत सितारे मोहित चौहान उनसे बहुत प्रभावित थे. मोहित चौहान अपने एक जन्मदिन पर सूरज को मुंबई ले गए थे और वहां उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया था. सूरजमणि के बेटे ने वोकल म्यूजिक में एमफिल की है.
पूरा किया ये वादा, जब तक सांस रहेगी, शहनाई बजाते रहेंगे
सूरजमणि अभावों के बावजूद ये वादा करते थे कि जब तक सांस है, शहनाई बजाते रहेंगे. इस वादे को उन्होंने पूरा भी किया. सूरजमणि राग यमन कल्याण व राग भैरवी अकसर बजाया करते थे. आकाशवाणी में अनेक बार इन रागों पर प्रस्तुति दी. इसके अलावा वे राग यमन कल्याण, भीम प्लासी, मियां मल्हार, विहाग, पीलू, राग बागेश्वरी भी खूब बजाया करते थे. उनके देहावसान के साथ ही हिमाचल में संगीत की एक मणि विदा हो गई.