शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुबंध आधार पर दी गई सेवाओं को नियमित सेवा के साथ जोड़ते हुए वरिष्ठता और पदोन्नति के लिए गिने जाने के फैसले को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया. इस संदर्भ में पूर्व में हाईकोर्ट ने अनुबंध आधार पर दी गई सेवाओं को नियमित सेवा के साथ जोड़ते हुए वरिष्ठता और पदोन्नति के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे. हिमाचल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने इस मामले में दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया.
खंडपीठ ने कहा कि मामले से जुड़े रिकॉर्ड से पता चलता है कि तत्कालीन हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक प्राधिकरण के समक्ष मूल आवेदकों ने, हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के माध्यम से अपनी प्रारंभिक भर्ती के बाद, अपने नियमितीकरण तक बिना किसी रुकावट के लगातार सेवा की. जिस तर्क पर पुनर्विचार की मांग की जा रही है, वह रिकॉर्ड में शायद ही कोई त्रुटि दर्शाता है. इसलिए पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनने के कारण याचिका खारिज कर दिया.
गौरतलब है कि ताज मोहम्मद और राज्य सरकार ने तत्कालीन स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल द्वारा लेखराम के मामले में पारित आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. तथ्यों के अनुसार खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग में प्रार्थियों की नियुक्ति अनुबंध के आधार पर बतौर इंस्पेक्टर ग्रेड वन हुई थी. उनकी सीधी भर्ती विभाग के नियमानुसार एचपी सबोर्डिनेट सर्विसिज सलेक्शन बोर्ड के माध्यम से हुई थी. वर्ष 2015 और 2016 में उन्हें नियमितिकरण नीति के तहत रेगुलर किया गया.
प्रार्थियों ने सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की पीठ द्वारा डायरेक्ट रिक्रूट क्लास II इंजीनियरिंग ऑफिसर्स बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र मामले में पारित फैसले का हवाला देते हुए, उन्हें भी यह लाभ दिए जाने की मांग की थी. इसके लिए प्रार्थियों ने ट्रिब्यूनल में ओरिजनल एप्लीकेशन दायर की. ट्रिब्यूनल ने प्रार्थियों की गुहार स्वीकारते हुए उनके अनुबंध काल को वरिष्ठता के साथ साथ पदोन्नति के लिए भी आंकने के आदेश दिए थे. सरकार ने ट्रिब्यूनल के इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराया था.
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