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हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की वरिष्ठता सूची रद्द करने के फैसले पर लगाई मुहर - Himachal High Court

Una Kanungo seniority list cancel: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की वरिष्ठता सूची को रद्द करने के एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया है. प्रार्थी ने राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर 20 फरवरी 2020 को चुनौती दी थी. प्रार्थी का कहना था सरकार द्वारा जारी पत्र भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के विपरीत है.

HIMACHAL PRADESH HIGH COURT
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 15, 2024, 1:50 PM IST

शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की वरिष्ठता सूची को रद्द करने के फैसले को सही ठहराया है. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कानूनगो की 8 मई 2020 को जारी वरिष्ठता सूची को रद्द करते हुए इसे पुनः जारी करने के आदेश जारी किए थे. हाईकोर्ट की ही खंडपीठ ने इस फैसले पर मुहर लगा दी. जिसके तहत एकल पीठ ने ऊना जिले में तैनात कानूनगो की वरिष्ठता सूची को निर्धारित करने के बाबत 10 जुलाई 1997 को जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों के अमल को गैरकानूनी ठहराया गया था.

एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया

एकल पीठ ने इसके साथ ही 8 मई 2020 को जारी कानूनगो की वरिष्ठता सूची के आधार पर पदोन्नत किए नायब तहसीलदारों की नियुक्तियों को भी रद्द करने के आदेश जारी किए थे. एकलपीठ ने यह व्यवस्था दी थी कि राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं पदोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने वाली दोनों अपीलों को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि एकल पीठ के फैसले में किसी भी तरह की कमी नहीं है. इस कारण इस फैसले को सही करार दिया जाता है.

2020 में दी थी सरकार द्वारा जारी पत्र को चुनौती

गौरतलब है कि प्रार्थी कुलदीप कुमार व अन्यों ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर 20 फरवरी 2020 को राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र को यह कहकर चुनौती दी थी कि यह भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के विपरीत जारी किया गया है. पत्र जारी करने के पीछे 30 जून 1997 को राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों का हवाला दिया गया था. जिसके तहत ऊना के कानूनगो की वरिष्ठता सूची बदल दी गई और निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादियों को उनसे ऊपर वरिष्ठता सूची में स्थान दे दिया गया.

प्रार्थियों की दलील पर हाईकोर्ट की सहमति

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को वर्ष 1998 में भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के तहत पटवारी के पदों पर नियुक्त किया गया था. उनकी वरिष्ठता नियम 15 (ए) व 15 (बी) के तहत निर्धारित की गई थी. प्रार्थियों की दलील थी कि कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं पदोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. एकलपीठ ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया था. कार्यकारी निर्देशों के आधार पर जारी की गई वरिष्ठता सूची को रद्द करते हुए कानूनगो की वरिष्ठता सूची पुनः जारी करने के आदेश जारी किए थे. यही नहीं कार्यकारी निर्देशों के आधार पर जारी की गई वरिष्ठता सूची के तहत दी गई पदोन्नतियों को भी प्रदेश उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट ने पदोन्नतियों के लिए रिव्यू डीपीसी करने के आदेश जारी कर दिए थे.

अन्य जिलों की वरिष्ठता सूची में नहीं होगा बदलाव

अपीलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह सूचित किया गया था कि एकलपीठ के फैसले के दृष्टिगत 10 जुलाई 1997 को जारी कार्यकारी निर्देश रद्द होने की स्थिति में 30 जून 1997 के निर्देशों के आधार पर प्रदेश के कई अन्य जिलों में तैयार की गई पटवारियों की व्यवस्थित वरिष्ठता सूची को फिर से तैयार किया जा रहा है. कोर्ट ने आदेश दिए कि अन्य जिलों में पटवारियों की तय की गई वरिष्ठता सूची में एकलपीठ के निर्णय में जारी निर्देशों के आधार पर बदलाव नहीं किया जाएगा.

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शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की वरिष्ठता सूची को रद्द करने के फैसले को सही ठहराया है. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कानूनगो की 8 मई 2020 को जारी वरिष्ठता सूची को रद्द करते हुए इसे पुनः जारी करने के आदेश जारी किए थे. हाईकोर्ट की ही खंडपीठ ने इस फैसले पर मुहर लगा दी. जिसके तहत एकल पीठ ने ऊना जिले में तैनात कानूनगो की वरिष्ठता सूची को निर्धारित करने के बाबत 10 जुलाई 1997 को जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों के अमल को गैरकानूनी ठहराया गया था.

एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया

एकल पीठ ने इसके साथ ही 8 मई 2020 को जारी कानूनगो की वरिष्ठता सूची के आधार पर पदोन्नत किए नायब तहसीलदारों की नियुक्तियों को भी रद्द करने के आदेश जारी किए थे. एकलपीठ ने यह व्यवस्था दी थी कि राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं पदोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने वाली दोनों अपीलों को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि एकल पीठ के फैसले में किसी भी तरह की कमी नहीं है. इस कारण इस फैसले को सही करार दिया जाता है.

2020 में दी थी सरकार द्वारा जारी पत्र को चुनौती

गौरतलब है कि प्रार्थी कुलदीप कुमार व अन्यों ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर 20 फरवरी 2020 को राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र को यह कहकर चुनौती दी थी कि यह भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के विपरीत जारी किया गया है. पत्र जारी करने के पीछे 30 जून 1997 को राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों का हवाला दिया गया था. जिसके तहत ऊना के कानूनगो की वरिष्ठता सूची बदल दी गई और निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादियों को उनसे ऊपर वरिष्ठता सूची में स्थान दे दिया गया.

प्रार्थियों की दलील पर हाईकोर्ट की सहमति

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को वर्ष 1998 में भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के तहत पटवारी के पदों पर नियुक्त किया गया था. उनकी वरिष्ठता नियम 15 (ए) व 15 (बी) के तहत निर्धारित की गई थी. प्रार्थियों की दलील थी कि कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं पदोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. एकलपीठ ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया था. कार्यकारी निर्देशों के आधार पर जारी की गई वरिष्ठता सूची को रद्द करते हुए कानूनगो की वरिष्ठता सूची पुनः जारी करने के आदेश जारी किए थे. यही नहीं कार्यकारी निर्देशों के आधार पर जारी की गई वरिष्ठता सूची के तहत दी गई पदोन्नतियों को भी प्रदेश उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट ने पदोन्नतियों के लिए रिव्यू डीपीसी करने के आदेश जारी कर दिए थे.

अन्य जिलों की वरिष्ठता सूची में नहीं होगा बदलाव

अपीलों की सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह सूचित किया गया था कि एकलपीठ के फैसले के दृष्टिगत 10 जुलाई 1997 को जारी कार्यकारी निर्देश रद्द होने की स्थिति में 30 जून 1997 के निर्देशों के आधार पर प्रदेश के कई अन्य जिलों में तैयार की गई पटवारियों की व्यवस्थित वरिष्ठता सूची को फिर से तैयार किया जा रहा है. कोर्ट ने आदेश दिए कि अन्य जिलों में पटवारियों की तय की गई वरिष्ठता सूची में एकलपीठ के निर्णय में जारी निर्देशों के आधार पर बदलाव नहीं किया जाएगा.

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