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बाल कल्याण समिति कानपुर पर हाईकोर्ट ने लगाया 5 लाख रुपये का हर्जाना - High Court news - HIGH COURT NEWS

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाल कल्याण समिति कानपुर नगर पर 5 लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. नाबालिग बच्ची को माता-पिता की अभिरक्षा में न देकर नारी निकेतन भेजने पर हाईकोर्ट ने यह कार्रवाई की है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 22, 2024, 10:26 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाल कल्याण समिति कानपुर नगर पर 5 लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. नाबालिग बच्ची को माता-पिता की अभिरक्षा में न देकर नारी निकेतन भेजने पर हाईकोर्ट ने यह कार्रवाई की है. कोर्ट ने समिति की कार्रवाई को अविवेकपूर्ण करार देते हुए गहरी नाराजगी जाहिर की है. कहा है कि यदि समिति हर्जाने की राशि नहीं देती है तो समिति के अध्यक्ष को पुलिस अगली सुनवाई पर अदालत के समक्ष हाजिर करे.

बच्ची के पिता ने नाबालिग बच्ची की ओर से हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इससे पूर्व बाल कल्याण समिति को अपना अधिकृत प्रतिनिधि अदालत के समक्ष भेजना और यह हलफनामा देने का निर्देश दिया था की किस कारण से बच्ची को नारी निकेतन में रखने का आदेश पारित किया गया. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ कर रही है.

हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में बाल कल्याण समिति की ओर से तो कोई नहीं उपस्थित हुआ मगर बच्ची को पुलिस ने अदालत के समक्ष उपस्थित किया. पिता और मां भी अदालत में हाजिर हुए. अदालत के पूछने पर बच्ची ने बताया कि वह कक्षा 7 की छात्रा है तथा पिछले तीन माह से नारी निकेतन में बाल कल्याण समिति के आदेश से उसे रखा गया है. नारी निकेतन में रहने की वजह से उसकी परीक्षा भी छूट गई. जिससे उसका 1 साल का नुकसान हुआ. बच्ची ने अदालत से कहा कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहती है. जबकि पिता का कहना था कि पिछले कई वर्षों से बच्ची उसके पास रह रही है और दिव्यांग होने के बावजूद वही बच्ची की देखभाल कर रहा है तथा उसके स्कूल की फीस भी भरता है. बच्ची की मां ने इस तथ्य से इनकार नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि इससे पूर्व बच्ची जब अपनी मां की अभिरक्षा में थी, तब उसने उसकी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया.

अदालत ने कहा कि सबसे हैरानी की बात है कि बाल कल्याण समिति ने बच्ची को नारी निकेतन में रखा जहां समान्यत ऐसे बच्चे नहीं रखे जाते, जिनके अभिभावक उसकी अभिरक्षा लेना चाह रहे हैं और पिता बच्ची की देखभाल करने में सक्षम है. कोर्ट ने कहा कि बाल कल्याण समिति ने न तो अपने न्यायिक विवेक का उपयोग किया और न ही बच्ची को नारी निकेतन में रखने का कोई कारण दर्शाया है. समिति की ओर से प्रस्तुत प्रिंटेड प्रोफार्मा पर अध्य्क्ष सहित चार सदस्यों के हस्ताक्षर थे. कोर्ट ने बच्ची को उसके पिता के साथ भेजने की इजाजत देते हुए बाल कल्याण समिति पर 5 लाख का हर्जाना लगाया है. हर्जाना की यह राशि बच्ची की देखभाल में खर्च करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यदि 30 दिन के भीतर बाल कल्याण समिति यह धनराशि नहीं जमा करती है तो समिति के अध्यक्ष को पुलिस कमिश्नर कानपुर अदालत के समक्ष हाजिर करें.

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बच्ची के पिता ने नाबालिग बच्ची की ओर से हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इससे पूर्व बाल कल्याण समिति को अपना अधिकृत प्रतिनिधि अदालत के समक्ष भेजना और यह हलफनामा देने का निर्देश दिया था की किस कारण से बच्ची को नारी निकेतन में रखने का आदेश पारित किया गया. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ कर रही है.

हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में बाल कल्याण समिति की ओर से तो कोई नहीं उपस्थित हुआ मगर बच्ची को पुलिस ने अदालत के समक्ष उपस्थित किया. पिता और मां भी अदालत में हाजिर हुए. अदालत के पूछने पर बच्ची ने बताया कि वह कक्षा 7 की छात्रा है तथा पिछले तीन माह से नारी निकेतन में बाल कल्याण समिति के आदेश से उसे रखा गया है. नारी निकेतन में रहने की वजह से उसकी परीक्षा भी छूट गई. जिससे उसका 1 साल का नुकसान हुआ. बच्ची ने अदालत से कहा कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहती है. जबकि पिता का कहना था कि पिछले कई वर्षों से बच्ची उसके पास रह रही है और दिव्यांग होने के बावजूद वही बच्ची की देखभाल कर रहा है तथा उसके स्कूल की फीस भी भरता है. बच्ची की मां ने इस तथ्य से इनकार नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि इससे पूर्व बच्ची जब अपनी मां की अभिरक्षा में थी, तब उसने उसकी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया.

अदालत ने कहा कि सबसे हैरानी की बात है कि बाल कल्याण समिति ने बच्ची को नारी निकेतन में रखा जहां समान्यत ऐसे बच्चे नहीं रखे जाते, जिनके अभिभावक उसकी अभिरक्षा लेना चाह रहे हैं और पिता बच्ची की देखभाल करने में सक्षम है. कोर्ट ने कहा कि बाल कल्याण समिति ने न तो अपने न्यायिक विवेक का उपयोग किया और न ही बच्ची को नारी निकेतन में रखने का कोई कारण दर्शाया है. समिति की ओर से प्रस्तुत प्रिंटेड प्रोफार्मा पर अध्य्क्ष सहित चार सदस्यों के हस्ताक्षर थे. कोर्ट ने बच्ची को उसके पिता के साथ भेजने की इजाजत देते हुए बाल कल्याण समिति पर 5 लाख का हर्जाना लगाया है. हर्जाना की यह राशि बच्ची की देखभाल में खर्च करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यदि 30 दिन के भीतर बाल कल्याण समिति यह धनराशि नहीं जमा करती है तो समिति के अध्यक्ष को पुलिस कमिश्नर कानपुर अदालत के समक्ष हाजिर करें.

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