आगरा: मुगलिया सल्तनत में आगरा सत्ता का केंद्र बिंदु था. आगरा से ही पूरे हिन्दुस्तान की सत्ता चलती है. मुगल बादशाहों के बनाई ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक आगरा में बने हुए हैं. इनमें एक ऐतिहासिक महत्व का भवन छीपीटोला स्थित हमाम है. जिसे लोग शाही हमाम कहते हैं. जमींदोज हो रहे शाही हमाम को सहेजने की मांग उठी है. जिसको लेकर लोग एकजुट हो रहे हैं.
कई संगठन ने छीपीटोला में शाही हमाम को बचाने के लिए हेरिटेज वॉक का आयोजन किया. जिसमें लोग अपने हाथ में फूल और मोमबत्तियां लेकर निकले. शाही हमाम की बची इमारत देखी और पुष्प अर्पित करके अलविदा शाही हमाम का बोर्ड भी लगाया. लोगों ने नारेबाजी की और गीत गाए. कहा कि शाही हमाम को बचाने के लिए हम लड़ाई लड़ेंगे.
आगरा के रकाबगंज थाना क्षेत्र में छीपीटोला हैं. जहां पर मुगल बादशाह जहांगीर के समय का 16वीं शताब्दी में बनाया गया मुगलकालीन हमाम है. जो लाखौरी ईंटों और लाल बलुई पत्थरों का इस्तेमाल करके बनाया गया था. ये हमाम मुगल दरबारी अलीवर्दी खान ने बनवाया था. जो तुर्की शैली में बनाया गया था. ये जामा मस्जिद और आगरा किले से महज 900 मीटर दूर है.
यहां पर कुआं और भवन थे. यहां पर आने वाले लोगों के स्नान और ठहरने की सुविधा के लिए ये बनवाए गए थे. इस शाही हमाम इमारत के सोशल मीडिया पर ढहाये जाने के वीडियो वायरल होने पर जर्नी रूट्स, हेरिटेज हिंदुस्तान और आगरा हेरिटेज वॉक की ओर से इसे बचाने और कब्जामुक्त कराने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. इसके लिए बुधवार को हेरिटेज वॉक किया गया. जिसे विरासत विदाई वॉक नाम दिया गया.
स्थानीय निवासी इंदर ने बताया कि इस हमाम में सब्जी-फल मंडी लग रही है. हमाम के अहाते में बने लगभग 30 कमरों में फल-सब्जी विक्रेता अपना सामान रखा करते थे. इन्हीं कमरों में 10-12 परिवार भी रह रहे हैं. इसके आसपास बसावट है. घना बाजार है. गीता देवी ने बताया कि मेरी चार पीढ़ियां यहां पर रही हैं. मैं भी अभी किराए पर रह रही थी. अब बेघर हूं. मेरे कमरे वाली जगह को तोड़ दिया गया. जबकि, मेरे पूर्वज कोर्ट में किराया छह रुपये मासिक जमा कर रहे थे.
स्थानीय लोगों ने बताया कि लगभग एक हफ्ते पहले शाही हमाम के एक हिस्से को तोड़ दिया गया. जबकि, कुछ साल पहले तक हमाम की स्थिति सही थी. एक बिल्डर ने दीवार तोड़ी और जेसीबी से अहाते की दीवारें गिरा दीं. कमरे तोड़ दिए गए. इस बारे में रकाबगंज थाना पुलिस ने बताया कि बिल्डर के पास कोर्ट का आदेश है. इसके आधार पर वो निर्माण कार्य करने कर रहा है.
जांच और चर्चा का विषय बना हमाम: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल बताते हैं कि हमाम इमारत विभाग का संरक्षित स्मारक नहीं है. इस बारे में पता किया जा रहा है. हमाम एएसआई का संरक्षित स्मारक नहीं होने की वजह से इसकी जिम्मेदारी प्रशासन के पास होनी चाहिए. डीएम इसके संरक्षक हैं. जबकि, 1992 के बाद से किराया सरकार के पास नहीं गया है तो बिना किसी की जानकारी के बेच दिया गया है. ये जांच का विषय है.
1992 तक जाता था किराया: हमाम की पहली मंजिल पर आज भी कुछ परिवार रह रहे हैं. उनका कहना है कि हमाम के किराएनामे के दस्तावेज हैं. 1992 तक 100 रुपए किराया सरकार को जाता था. सन 1947 के आसपास की एक रसीद है. जिसमें राय बहादुर सेठ ताराचंद रईस व जमींदार गवर्नमेंट ट्रेजरर का नाम लिखा है. नीचे प्यारे बल जयराम के नाम के आगे किराएदार छपा है. सन 1925 का भी एक किरायानामा है. जिसमें 6 रुपए सालाना किराया लिखा है.
संरक्षण के लिए उठाए गए कदम: जर्नी टू रूट्स की इरम का कहना है कि जनता के साथ मिलकर इसे संरक्षित करने के लिए ये मुहिम शुरू की है. ये हमारी धरोहर है. इसे संरक्षित किया जाना चाहिए. जिससे इसका इतिहास लोग जान और समझ सकें. हम इस बारे में हर संभव प्रयास कर रहे हैं. सीनियर सिटीजन व वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड मुकुल पंडया ने बताया कि ये विरासत है. इसका संरक्षण किया जाना चाहिए.
मुगलकाल में यहां पर ही लोग रुकते थे. यहां पर नहाते थे. इसके बाद शहर घूमते थे. यहां पर गर्मी और ठंडे पानी की पूरी व्यवस्था रहती थी. सिविल सोयाइटी के सदस्य अनिल शर्मा ने बताया कि ये एक ऐतिहासिक इमारत है. इसका संरक्षण होना चाहिए. इस बारे में लोगों को आगे आना चाहिए. एएसआई को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए.
ये भी पढ़ेंः 'रामायण' और 'लक्ष्मी' वाले बयान पर कुमार विश्वास ने दी सफाई; फिर बोले- बच्चों को जरूर पढ़ाएं रामचरितमानस-महाभारत