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राज्य में निबंधित व योग्य फार्मासिस्ट नहीं, HC में 23 अगस्त को होगी सुनवाई - Hearing in Patna High Court

Patna High Court: बिहार में निबंधित व योग्य फार्मासिस्ट को लेकर पटना उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई.चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई  की. अब अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी. मुकेश कुमार ने जनहित याचिका दायर की है. पढ़ें पूरी खबर...

पटना हाईकोर्ट में सुनवाई
पटना हाईकोर्ट में सुनवाई (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 1, 2024, 7:42 PM IST

पटना : राज्य में निबंधित व योग्य फार्मासिस्ट की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर के मामले पर पटना हाईकोर्ट में अब 23 अगस्त को सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ इस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.

आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि बहुत सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते हैं. वे बिना जानकारी और योग्यता के ही मरीजों को दवा बांटते हैं. जबकि ये कार्य निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना है. उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.

'निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती' : पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में राज्य सरकार को पुनः जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था. ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर किया है. याचिकाकर्ता के वकील प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि राज्य में लगभग दस हजार अस्पताल है, जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 6 सौ से कुछ अधिक है. डॉक्टरों द्वारा लिखे गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है.

'सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की': याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग-अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए. लेकिन बिहार सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. इस आम लोगों का स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है.

'बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे' : प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए. ये कमिटी कॉउन्सिल की क्रियाकलापों की जांच करें, क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे है.

पटना : राज्य में निबंधित व योग्य फार्मासिस्ट की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर के मामले पर पटना हाईकोर्ट में अब 23 अगस्त को सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ इस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.

आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि बहुत सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते हैं. वे बिना जानकारी और योग्यता के ही मरीजों को दवा बांटते हैं. जबकि ये कार्य निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना है. उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.

'निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती' : पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में राज्य सरकार को पुनः जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था. ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर किया है. याचिकाकर्ता के वकील प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि राज्य में लगभग दस हजार अस्पताल है, जबकि निबंधित फरमासिस्टों की संख्या 6 सौ से कुछ अधिक है. डॉक्टरों द्वारा लिखे गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है.

'सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की': याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग-अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए. लेकिन बिहार सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. इस आम लोगों का स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है.

'बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे' : प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए. ये कमिटी कॉउन्सिल की क्रियाकलापों की जांच करें, क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे है.

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