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महाकुंभ में जुटेंगे अमेरिका और यूरोप के विद्वान, जानिए कुंभ मेले का इतिहास और परंपराएं - MAHA KUMBH MELA 2025

महाकुंभ मेले में सोमवार को संगम पर पवित्र स्नान के लिए बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े. विद्वान कुंभ पर अध्ययन कर रहे हैं.

Maha kumbh Mela 2025 Scholars from world to gather in Prayagraj History and essence of kumbh
महाकुंभ में जुटेंगे अमेरिका और यूरोप के विद्वान, जानिए कुंभ मेले का इतिहास और परंपराएं (ETV Bharat)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Jan 13, 2025, 10:06 PM IST

प्रयागराज: महाकुंभ मेला 2025 शुरू हो चुका है, जो 26 फरवरी तक चलेगा. इस महीने के अंत में अमेरिका और यूरोप के विद्वान प्रयागराज में जुटेंगे और इस ऐतिहासिक आयोजन पर अध्ययन करेंगे. महाकुंभ मेला दुनिया भर के हिंदुओं के लिए बेहद खास धार्मिक महत्व रखता है.

अब तक 12 विद्वानों ने, जिनमें से ज्यादातर अमेरिका और यूरोप से हैं, पुष्टि की है कि वे महाकुंभ के इतिहास और मूल का अध्ययन करने के लिए 25 से 27 जनवरी तक तीन दिवसीय बैठक में भाग लेंगे. वे सभी सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के सदस्य हैं.

सोसाइटी के महासचिव डीके दुबे ने ईटीवी भारत को बताया, "सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज विद्वानों की एक संस्था है, जो सभी धर्मों की तीर्थ परंपराओं और पवित्र स्थलों के क्षेत्र में काम करती है. आम तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप और कभी-कभी चीन से विद्वान इस सोसायटी के सदस्य बनते हैं."

दुबे ने यह भी कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया के विद्वानों की पवित्र स्थानों के क्षेत्र में रुचि नहीं है, हालांकि उस क्षेत्र में कई मंदिर हैं. उन्होंने कहा, "सोसायटी के ज्यादातर विद्वान सनातन धर्म के अध्ययन में रुचि रखते हैं. हमारे पास पवित्र स्थानों के अध्ययन के अलग-अलग पहलू हैं."

BP Dubey, general secretary of the Society of Pilgrimage Studies
BP Dubey, general secretary of the Society of Pilgrimage Studies (File photo - ETV Bharat)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर दुबे ने बताया कि भारत में परंपराएं बहुत मजबूत हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश का शास्त्रीय प्रमाणों से समर्थन नहीं है.

शास्त्र एक संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ है 'आज्ञा, नियम, गाइड. संग्रह, ग्रंथ की पुस्तक'. छह शास्त्र हैं जिन्हें वेदांग के नाम से जाना जाता है. ये सहायक ग्रंथ हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों, वेदों की उचित व्याख्या और मुख्यार्थ की व्याख्या करते हैं.

भारत में दो परंपराएं

दुबे कहते हैं कि भारत में दो परंपराएं हैं- लोक परंपरा और शास्त्रीय परंपरा. उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए महाकुंभ मेले को ही लें. इसके बहुत कम शास्त्र प्रमाण हैं और यह लोक परंपरा पर आधारित है. कुछ शास्त्र प्रमाण मिले हैं, लेकिन ये इधर-उधर मिले हैं. हमें सभी प्रमाणों को एक ही जगह पर पढ़ना होगा."

उन्होंने बताया कि प्रयागराज को सभी हिंदू पवित्र स्थलों में सबसे प्रमुख स्थान हासिल है. उन्होंने कहा, "ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रयागराज को ऋग्वेद में पवित्र स्थान माना गया है. प्रयागराज के अलावा ऋग्वेद में किसी अन्य हिंदू पवित्र स्थान का उल्लेख नहीं है."

डीके दुबे ने बताया कि ऋग्वेद के अनुसार दो पवित्र अनुष्ठान हैं. पहला, जो लोग गंगा और यमुना के संगम में स्नान करते हैं, जहां महाकुंभ मेला चल रहा है - उन्हें मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है. दूसरा अनुष्ठान यह है कि जो लोग खुद से समाधि लेते हैं, उन्हें अमरत्व प्राप्त होता है.

दूसरी रस्म 1840 तक जारी रही, जिसके बाद अंग्रेजों ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि, दुबे के अनुसार आज भी यह मान्यता है कि महाकुंभ मेले में आने वाले बुजुर्ग लोग अमरत्व प्राप्त कर लेते हैं.

दुबे कहते हैं, "वैदिक साहित्य में हिंदू धर्म में केवल तीन स्थलों को पवित्र बताया गया है. एक है ऋग्वेद के नदिस्तुति सूक्त में संगम. दूसरा है शतपथ ब्राह्मण में कुरुक्षेत्र का सन्निहित सरोवर. तीसरा है यास्क के निरुक्त में गया में विष्णुपद."

हालांकि, उन्होंने कहा कि "महाभारत से हमें 1,000 और पवित्र स्थान या स्थल मिलते हैं और पुराणों में इनकी संख्या बढ़ जाती है."

हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों का 'राजा' है प्रयागराज

दुबे ने आगे बताया कि प्रयागराज हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों का 'राजा' बना हुआ है क्योंकि यह पहला पवित्र स्थान है. दरअसल, प्रयागराज दुनिया में किसी भी धर्म का सबसे पुराना पवित्र स्थान है. उन्होंने आगे बताया कि प्रयाग उपसर्ग है जिसका अर्थ है 'सबसे श्रेष्ठ' और यह जुताई के माध्यम से खेती से जुड़ा है.

दुबे कहते हैं, "प्रयागराज के 200 किलोमीटर के दायरे में हमें बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाले चावल मिलते हैं. चावल की सबसे पहली खेती प्रयागराज में हुई थी. 1977-78 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों ने 8-7वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व के महीन दाने वाले चावल की खोज की थी. 2003 में संगम के पास झूसी टीले और गंगा के बाएं किनारे पर पांच किलोमीटर उत्तर में हेतापट्टी से 7-6वीं सहस्राब्दी पुराने महीन दाने वाले चावल मिले थे. इसलिए, चावल के साक्ष्य गंगा-यमुना संगम के पास की जगहों से मिलते हैं."

उन्होंने यह भी बताया कि ऋग्वेद में एक सूक्त या अध्याय है जो केवल नदी की प्रार्थना के लिए समर्पित है. दुबे कहते हैं, "प्रयागराज में सिर्फ पानी की पूजा होती है. एक प्रकार से यह प्रकृति की पूजा है. इसलिए यह मेला पानी से जुड़ा हुआ है. हरिद्वार और प्रयाग (जहां कुंभ मेला लगता है) दोनों ही गंगा के किनारे हैं."

उन्होंने कहा, "सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के विद्वान इस महीने के आखिर में तीन दिवसीय बैठक के लिए आएंगे और इन सभी विषयों पर चर्चा करेंगे. वे यह जानना चाहते हैं कि लोग इतनी कठोर सर्दियों में भी संगम में स्नान करने क्यों आते हैं." दुबे ने बताया कि सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के कई विद्वान अपने संसाधनों से भारत में काम करते हैं. उन्हें सोसायटी के शिविरों में तीर्थयात्री के रूप में रहना पसंद है.

यह भी पढ़ें- महाकुंभ मेले का आकर्षण बना अनूठा केंद्र, पौराणिक कहानियों का हो रहा डिजिटल चित्रण

प्रयागराज: महाकुंभ मेला 2025 शुरू हो चुका है, जो 26 फरवरी तक चलेगा. इस महीने के अंत में अमेरिका और यूरोप के विद्वान प्रयागराज में जुटेंगे और इस ऐतिहासिक आयोजन पर अध्ययन करेंगे. महाकुंभ मेला दुनिया भर के हिंदुओं के लिए बेहद खास धार्मिक महत्व रखता है.

अब तक 12 विद्वानों ने, जिनमें से ज्यादातर अमेरिका और यूरोप से हैं, पुष्टि की है कि वे महाकुंभ के इतिहास और मूल का अध्ययन करने के लिए 25 से 27 जनवरी तक तीन दिवसीय बैठक में भाग लेंगे. वे सभी सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के सदस्य हैं.

सोसाइटी के महासचिव डीके दुबे ने ईटीवी भारत को बताया, "सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज विद्वानों की एक संस्था है, जो सभी धर्मों की तीर्थ परंपराओं और पवित्र स्थलों के क्षेत्र में काम करती है. आम तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप और कभी-कभी चीन से विद्वान इस सोसायटी के सदस्य बनते हैं."

दुबे ने यह भी कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया के विद्वानों की पवित्र स्थानों के क्षेत्र में रुचि नहीं है, हालांकि उस क्षेत्र में कई मंदिर हैं. उन्होंने कहा, "सोसायटी के ज्यादातर विद्वान सनातन धर्म के अध्ययन में रुचि रखते हैं. हमारे पास पवित्र स्थानों के अध्ययन के अलग-अलग पहलू हैं."

BP Dubey, general secretary of the Society of Pilgrimage Studies
BP Dubey, general secretary of the Society of Pilgrimage Studies (File photo - ETV Bharat)

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर दुबे ने बताया कि भारत में परंपराएं बहुत मजबूत हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश का शास्त्रीय प्रमाणों से समर्थन नहीं है.

शास्त्र एक संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ है 'आज्ञा, नियम, गाइड. संग्रह, ग्रंथ की पुस्तक'. छह शास्त्र हैं जिन्हें वेदांग के नाम से जाना जाता है. ये सहायक ग्रंथ हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों, वेदों की उचित व्याख्या और मुख्यार्थ की व्याख्या करते हैं.

भारत में दो परंपराएं

दुबे कहते हैं कि भारत में दो परंपराएं हैं- लोक परंपरा और शास्त्रीय परंपरा. उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए महाकुंभ मेले को ही लें. इसके बहुत कम शास्त्र प्रमाण हैं और यह लोक परंपरा पर आधारित है. कुछ शास्त्र प्रमाण मिले हैं, लेकिन ये इधर-उधर मिले हैं. हमें सभी प्रमाणों को एक ही जगह पर पढ़ना होगा."

उन्होंने बताया कि प्रयागराज को सभी हिंदू पवित्र स्थलों में सबसे प्रमुख स्थान हासिल है. उन्होंने कहा, "ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रयागराज को ऋग्वेद में पवित्र स्थान माना गया है. प्रयागराज के अलावा ऋग्वेद में किसी अन्य हिंदू पवित्र स्थान का उल्लेख नहीं है."

डीके दुबे ने बताया कि ऋग्वेद के अनुसार दो पवित्र अनुष्ठान हैं. पहला, जो लोग गंगा और यमुना के संगम में स्नान करते हैं, जहां महाकुंभ मेला चल रहा है - उन्हें मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है. दूसरा अनुष्ठान यह है कि जो लोग खुद से समाधि लेते हैं, उन्हें अमरत्व प्राप्त होता है.

दूसरी रस्म 1840 तक जारी रही, जिसके बाद अंग्रेजों ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि, दुबे के अनुसार आज भी यह मान्यता है कि महाकुंभ मेले में आने वाले बुजुर्ग लोग अमरत्व प्राप्त कर लेते हैं.

दुबे कहते हैं, "वैदिक साहित्य में हिंदू धर्म में केवल तीन स्थलों को पवित्र बताया गया है. एक है ऋग्वेद के नदिस्तुति सूक्त में संगम. दूसरा है शतपथ ब्राह्मण में कुरुक्षेत्र का सन्निहित सरोवर. तीसरा है यास्क के निरुक्त में गया में विष्णुपद."

हालांकि, उन्होंने कहा कि "महाभारत से हमें 1,000 और पवित्र स्थान या स्थल मिलते हैं और पुराणों में इनकी संख्या बढ़ जाती है."

हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों का 'राजा' है प्रयागराज

दुबे ने आगे बताया कि प्रयागराज हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों का 'राजा' बना हुआ है क्योंकि यह पहला पवित्र स्थान है. दरअसल, प्रयागराज दुनिया में किसी भी धर्म का सबसे पुराना पवित्र स्थान है. उन्होंने आगे बताया कि प्रयाग उपसर्ग है जिसका अर्थ है 'सबसे श्रेष्ठ' और यह जुताई के माध्यम से खेती से जुड़ा है.

दुबे कहते हैं, "प्रयागराज के 200 किलोमीटर के दायरे में हमें बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाले चावल मिलते हैं. चावल की सबसे पहली खेती प्रयागराज में हुई थी. 1977-78 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों ने 8-7वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व के महीन दाने वाले चावल की खोज की थी. 2003 में संगम के पास झूसी टीले और गंगा के बाएं किनारे पर पांच किलोमीटर उत्तर में हेतापट्टी से 7-6वीं सहस्राब्दी पुराने महीन दाने वाले चावल मिले थे. इसलिए, चावल के साक्ष्य गंगा-यमुना संगम के पास की जगहों से मिलते हैं."

उन्होंने यह भी बताया कि ऋग्वेद में एक सूक्त या अध्याय है जो केवल नदी की प्रार्थना के लिए समर्पित है. दुबे कहते हैं, "प्रयागराज में सिर्फ पानी की पूजा होती है. एक प्रकार से यह प्रकृति की पूजा है. इसलिए यह मेला पानी से जुड़ा हुआ है. हरिद्वार और प्रयाग (जहां कुंभ मेला लगता है) दोनों ही गंगा के किनारे हैं."

उन्होंने कहा, "सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के विद्वान इस महीने के आखिर में तीन दिवसीय बैठक के लिए आएंगे और इन सभी विषयों पर चर्चा करेंगे. वे यह जानना चाहते हैं कि लोग इतनी कठोर सर्दियों में भी संगम में स्नान करने क्यों आते हैं." दुबे ने बताया कि सोसायटी ऑफ पिलग्रिमेज स्टडीज के कई विद्वान अपने संसाधनों से भारत में काम करते हैं. उन्हें सोसायटी के शिविरों में तीर्थयात्री के रूप में रहना पसंद है.

यह भी पढ़ें- महाकुंभ मेले का आकर्षण बना अनूठा केंद्र, पौराणिक कहानियों का हो रहा डिजिटल चित्रण

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