अजमेर. महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में ब्रेस्ट कैंसर चुनौती बन गया है. देश में हर 4 मिनट में एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में पता चलता है. देश में 14 फीसदी और राजस्थान में 19.4 फीसदी महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर से ग्रसित हैं. जागरूकता के अभाव में ब्रेस्ट कैंसर से ग्रसित महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. जबकि जागरूकता होने पर समय पर इलाज मिलने से ब्रेस्ट कैंसर से ग्रसित महिलाओं के जल्द स्वस्थ होने की संभावना है. जबकि इलाज में देरी ब्रेस्ट कैंसर ग्रसित महिला के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. पुष्कर के सरकारी अस्पताल में वरिष्ठ गायनिक चिकित्सक डॉ चारु शर्मा से जानते हैं ब्रेस्ट कैंसर के कारण, लक्षण और उपचार संबंधित टिप्स:
वरिष्ठ गायनिक चिकित्सक डॉ चारु शर्मा बताती हैं कि ब्रेस्ट कैंसर बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल की देन है. ब्रेस्ट कैंसर के रोगी पहले विदेश में पाए जाते थे. लेकिन पिछले एक दशक से भारत में भी ब्रेस्ट कैंसर से ग्रसित महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो चिंताजनक है. डॉ शर्मा बताती हैं कि वर्तमान में बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल के चलते लोग खानपान में स्वाद को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. जबकि पौष्टिकता को कम महत्व दिया जा रहा है.
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खान-पान में जंक फूड, पैक्ड फूड, प्रोसेसिंग फूड का चलन काफी बढ़ गया है. इनके अलावा प्लास्टिक का यूज, कीटनाशक दवाओं के उपयोग से उपजी फसल से बने खाद्य पदार्थ, शादी में देरी और ज्यादा उम्र में बच्चे होना, बच्चों को दूध नहीं पिलाना, अनुवांशिक आदि कारण से ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना रहती है. उन्होंने बताया कि बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन के डिस्टर्ब होने के कारण ब्रेस्ट कैंसर होता है. एस्ट्रोजन एक प्रकार का सेक्स हार्मोन होता है जो महिलाओं की प्रजनन और स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
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ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण: डॉ शर्मा बताती हैं कि ब्रेस्ट (स्तन) महिलाओं का बाहिए अंग है. इसमें होने वाले बदलाव महिलाएं साफ देख सकती हैं. खासकर ब्रेस्ट कैंसर जल्द पकड़ में आ जाता है. उन्होंने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर अगर जल्द पकड़ में आता है, तो उसका इलाज भी हो जाता है. देरी होने पर ब्रेस्ट में बदलाव, गांठ (बीना दर्द) होना, निप्पल से डिस्चार्ज होना (रंगीन या बेरंग पानी आना), निप्पल का अंदर की ओर धंसना, ब्रेस्ट के आकार में बदलाव होना, ब्रेस्ट के बगल में गांठ होना आदि प्रमुख लक्षण हैं.
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महिलाएं स्वंय करें जांच: वरिष्ठ गायनिक चिकित्सक डॉ चारु शर्मा बताती हैं कि 40 की उम्र के बाद महिलाओं को मैमोग्राफी जांच करवा लेनी चाहिए. इस जांच से बारीक से बारीक कैंसर टिशु के बारे में भी पता चल जाता है. उन्होंने बताया कि महिलाएं घर पर खुद अपने ब्रेस्ट की जांच कर सकती हैं. उन्होंने बताया कि जागरूकता की कमी के कारण खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं ब्रेस्ट में हो रहे बदलाव के बारे में समझ नहीं पाती हैं, तब तक काफी देरी हो चुकी होती है. उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार की ओर से संभाग स्तरीय अस्पतालों में मैमोग्राफी जांच की व्यवस्था है. वहीं ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग डे पर उपखंड स्तर पर भी मैमोग्राफी के लिए मशीन भेजी जाती है और जांच की जाती है. 5 मिनट में जांच हो जाती है. यह जांच xray की तरह होती है.
महिलाएं ऐसे करें जांच:
- महिलाएं घर पर शीशे के सामने खड़े होकर ब्रेस्ट की साइज को गौर से देखें. दोनों ब्रेस्ट के आकार में यदि कोई बदलाव है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.
- जांच करते हुए महिलाएं ब्रेस्ट में गांठ को भी महसूस कर सकती हैं. यदि गांठ है, तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए.
- निप्पल में किसी तरह का रंगीन या बेरंग पानी निकल रहा है, तो भी चिकित्सक से परामर्श लें.
ब्रेस्ट कैंसर का उपचार: उन्होंने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर के उपचार के लिए आवश्यक है ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जल्द पता चलना. देरी से पता चलने पर पूरा ब्रेस्ट हटाना पड़ सकता है. साथ ही कीमो, रेडियो और हार्मोन थेरेपी भी रोगी को देनी होती है. यदि ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जल्द ही पता चल जाता है, तो ब्रेस्ट के कुछ हिस्से को ही सर्जरी से हटाया जाता है.
अविवाहित महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के चांस ज्यादा: डॉ शर्मा बताती हैं कि अविवाहित महिलाओं को भी ब्रेस्ट कैंसर होने के चांस ज्यादा होते हैं. उन्होंने बताया कि ज्यादा उम्र में विवाह करना और बच्चे पैदा करना ब्रेस्ट कैंसर का कारण है. बच्चा होने पर उसे स्तनपान नहीं करवाने से भी ब्रेस्ट कैंसर के चांस अधिक रहते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि बच्चे को स्तनपान करवाने से ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना कम रहती है.
यह करें यह ना करें: वरिष्ठ गायनिक चिकित्सक डॉ चारू शर्मा बताती हैं कि बिगड़ी लाइफस्टाइल के कारण महिलाएं शारीरिक श्रम से दूर हो गई हैं. योग, व्यायाम, मॉर्निंग, इवनिंग वॉक को अपनी दिनचर्या में शामिल करें. पौष्टिक आहार लें. सलाद, हरी सब्जियां और फलों को भोजन में शामिल करें. फाइबर युक्त भोजन (मोटा अनाज) का सेवन भी फायदेमंद है. डॉ शर्मा बताती हैं कि स्मोकिंग, नशा, शराब, चाय, कॉफी का अधिक सेवन, जंक फूड, पैक्ड फूड का सेवन नहीं करें. साथ ही खुद को तनाव मुक्त रखने की कोशिश करें.