जबलपुर(सिद्धार्थ शंकर पांडे): कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में समझौते के आधार पर दोषमुक्त किए जाने को अयोग्ता का आधार नहीं माना जा सकता है. जबलपुर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को पुलिस कांस्टेबल पद पर नियुक्ति प्रदान करने के आदेश जारी किए हैं. जस्टिस विवेक जैन ने अपने अहम आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को नियुक्ति दी जाए भले ही उसे वरिष्ठता का लाभ न मिले.
लिखित व ट्रेड टेस्ट में पास होने के बावजूद याचिकाकर्ता को नहीं दी गई नौकरी
कोतमा अनूपपुर निवासी रत्नेश कुमार सिंह की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि उसने मप्र प्रोफेशनल बोर्ड द्वारा 2012 में आयोजित पुलिस कांस्टेबल ड्राइवर पद के लिए आवेदन किया था. उसके खिलाफ थाना भालूमाडा जिला अनूपपुर में धारा 325 के तहत अपराधिक मामला दर्ज किया गया था. समझौते के आधार पर न्यायालय ने उसको दोषमुक्त कर दिया था. जिसका उल्लेख उसने अपने आवेदन में दिया था. लिखित व ट्रेड टेस्ट में उत्तीर्ण होने के बावजूद उसे नौकरी प्रदान नहीं की गई. जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
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हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का पर विचार करने के आदेश दिया था. अभ्यावेदन खारिज किये जाने के बाद उसने पुनः याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार याचिका के अभ्यावेदन पर विचार करने के निर्देश दिए. दूसरी बार भी अभ्यावेदन खारिज होने के बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर पुनर्विचार करने आदेश जारी किए थे. तीसरी बार भी अभ्यावेदन खारिज होने के कारण ये याचिका दायर की गई थी.
याचिका पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रतिवादियों ने मामले के इस सोच के साथ निपटाया है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला साबित हो गया है और उसने समझौता करने के लिए शिकायतकर्ता को मना लिया है. प्रतिवादियों को यह लगता है कि समझौता करने का अर्थ स्वतः ही प्रश्नगत पद के लिए अयोग्यता है. वर्तमान मामले में पड़ोसियों के बीच विवाद था. याचिकाकर्ता मुख्य हमलावर नहीं था.
कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला तुच्छ और झूठा प्रतीत होता है
राज्य अधिकारियों द्वारा विचार-विमर्श के तीनों दौर में एक भी शब्द नहीं कहा गया कि मामले के शिकायतकर्ता को क्या चोट लगी है? जिससे याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 325 के तहत मुकदमा चलाने का औचित्य सिद्ध हो सके. ऐसे तथ्यात्मक परिदृश्य को देखते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला तुच्छ और झूठा प्रतीत होता है. आईपीसी की धारा 325 के तहत अपराध को नैतिक पतन से जुड़े अपराध के रूप में नहीं रखा गया है.
जिससे याचिकाकर्ता के चरित्र का नकारात्मक तरीके से आकलन किया जा सके. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि लिखित परीक्षा और ट्रेड टेस्ट के परिणाम को प्रभावी करते हुए निम्न योग्यता होने पर नियुक्ति दी गई है तो याचिकाकर्ता को कांस्टेबल (ड्राइवर) के पद पर भी नियुक्ति दी जाए. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने पैरवी की.