ग्वालियर: सिख पंथ को मानने वाले लोगों के लिए 15 नवंबर बड़ा ही विशेष दिन है. दरअसल, गुरुनानक जयंती को सिख समाज बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाता है. इस वर्ष गुरुनानक देव की 555वीं जन्म जयंती है, जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. ग्वालियर में भी गुरुनानक जयंती पर सिख समाज की संगत लगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं सिख समाज के आराध्य गुरु नानक देव का एक कनेक्शन ग्वालियर से भी रहा है. साथ ही ग्वालियर के किले पर स्थित गुरुद्वारे का इतिहास भी अपने आप में अनोखा है.
देश में एकता के प्रयास में जुटे थे धर्मगुरु
ग्वालियर किले पर बना गुरुद्वारा 'दाता बंदी छोड़' के नाम से जाना जाता है. यहां गुरुनानक जयंती पर देश-विदेश से सिख समाज के लोग परिवार के साथ पहुचते हैं. इस गुरुद्वारे से भी पहले का इतिहास ग्वालियर और सिख पंथ के संस्थापक गुरुनानक देव के बीच का रिश्ता बताता है. इतिहास विद लाल बहादुर सोमवंशी कहते हैं कि, ''1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव का जन्म पाकिस्तान के ननकाना में हुआ था. उस दौर में भारत ना सिर्फ विदेशी बल्कि आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा था और पूरा संत समाज और धर्मगुरु देश में एकता और समरसता बनाने के प्रयास में लगे हुए थे.''
ग्वालियर में पहली बार आए थे गुरुनानक साहिब
उस दौर के हालातों में गुरु नानक देव ने विश्व कल्याण के लिए कदम बढ़ाने का फैसला किया और पूरी दुनिया में कई हजार किलोमीटर का सफर किया था. बड़ी बात यह थी कि उनकी यात्रा ने जब मध्य प्रदेश के हिस्से में प्रवेश किया तो सबसे पहले उनका आगमन ग्वालियर रियासत में हुआ था. यहां लोग उनके संदेश से प्रभावित हुए और धीरे-धीरे सिख समाज बढ़ता गया. ग्वालियर फूलबाग गुरुद्वारा के प्रेसिडेंट एचएस कोछड़ ने बताया, '' ग्वालियर के इसी फूलों वाले बगीचे में गुरुनानक साहिब ने लोगों को धार्मिक संदेश दिए था. उसी जगह फूलबाग गुरुद्वारा बना है. ग्वालियर से उन्होंने प्रदेश के 5 हिस्सों में भी यात्रा की, जिनमें भोपाल के साथ खंडवा ओंकारेश्वर बैतूल भी शामिल थे.''
ग्वालियर किले में जहांगीर ने कैद किए थे सिख गुरु साहिब
ग्वालियर किले पर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ पर हर साल प्रकाश पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस गुरुद्वारे का इतिहास भी काफी रोचक है. गुरु नानक देव के प्रवेश के बाद सिख समाज बढ़ने लगा था. सिख गुरुओं ने नानक राज स्थापित करने की ओर कदम बढ़ा दिए थे. इस बीच गद्दी संभालने वाले 6वें गुरु हरगोविंद साहेब सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड़ने के काम में जुटे हुए थे. हरगोविंद साहेब एक योद्धा थे. वह शास्त्र और शस्त्र दोनों विधाओं में पारंगत थे. उनकी बदौलत समाज में मुघल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह पनपने लगा था. इसी बीच मुगल शासक जहांगीर ने उन्हें बंदी बनाकर ग्वालियर किले में कैद कर लिया था. इस कैदखाने में 52 हिंदू राजा भी कैद थे, जहां सभी ने उनका स्वागत किया था.
कैद में रहकर कराया था 52 राजाओं को आजाद
गुरु हरगोविंद साहेब करीब 2 साल 3 महीने तक ग्वालियर किले की जेल में बंद रहे. इसी बीच अचानक उन्हें कैद करने वाले मुगल शासक जहांगीर की तबयत बिगड़ गई. नीम हकीम से लेकर बड़े-बड़े जानकारों का इलाज विफल होने लगा. दिन-ब-दिन जहांगीर मौत की ओर बढ़ रहा था. इस बीच शाही पीर ने उसे चेताया कि जिस धर्म गुरू को उसने ग्वालियर किले में कैद कर रखा है, ये हालात उसकी वजह से बन रहे हैं, इसलिए उसे छोड़ना चाहिए. अपनी जान पर बनती देख जहांगीर ने सिख गुरु हरगोबिन्द साहेब को कैद से रिहा करने के आदेश दिए, लेकिन गुरु हरगोविंद साहेब इस कैद से अकेले रिहा होने को तैयार नहीं थे. उन्होंने उनके साथ कैद सभी 52 राजाओं को मुक्त करने की शर्त रख दी और उनकी जिद के आगे जहांगीर को घुटने टेकने पड़े.
इस वजह से नाम पड़ा गुरुद्वारा 'दाता बंदी छोड़'
जिस ग्वालियर किले में गुरु हरगोविंद साहेब को कैद किया गया था, आज वहां गुरुद्वारा है और उसे दाता बंदी छोड़ के नाम से जाना जाता है. अब हर साल दिवाली और प्रकाश पर्व पर हजारों लाखों सिख परिवार ग्वालियर आते हैं और पूरा दिन यहां भजन कार्यक्रम और संगत का आयोजन होता है.