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माता-पिता के साथ जेल में कैद बच्चों के लिए सरकार को योजना लागू करनी चाहिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी - ALLAHABAD HIGH COURT

कोर्ट ने कहा-माता-पिता की कैद से उनके बच्चों के संवैधानिक अधिकारों से समझौता नहीं होना चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट आर्डर.
इलाहाबाद हाईकोर्ट आर्डर. (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 24, 2025, 11:30 AM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि माता-पिता के साथ जेल में बच्चे को बंद रखना निर्दोष जीवन पर थोपा गया अदृश्य परीक्षण है. इस तरह के बचपन न्याय की विफलता और हमारे युवा नागरिकों के प्रति संवैधानिक वादे के साथ विश्वासघात है. कोर्ट ने कहा कि माता-पिता की कैद से उनके बच्चे के संवैधानिक अधिकारों से समझौता नहीं होना चाहिए.

न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह टिप्पणी एक जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद जेलों में अपने माता-पिता के साथ रहने वाले बच्चों की दुर्दशा के मद्देनजर की है. कोर्ट ने 5 वर्षीय बच्चे की मां की जमानत मंजूर करते हुए उनके बच्चे के मौलिक अधिकारों पर जोर दिया. सरकार को निर्देश दिया कि ऐसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए. महिला अपने 5 वर्षीय बेटे के साथ जेल में रह रही है.

उसके अधिवक्ता राहुल उपाध्याय ने तर्क दिया कि जेल में बच्चे को बंद रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए और बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 सहित अन्य सुरक्षात्मक कानूनों के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. न्यायमूर्ति ने कहा कि जेल का माहौल बच्चे के समग्र विकास में गंभीर रूप से बाधा डालता है और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचाता है.

राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता और अधिवक्ता आरपीएस चौहान ने जेलों में रहने वाले बच्चों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए उपायों की आवश्यकता को स्वीकार किया. न्यायमूर्ति भनोट ने इस बात पर जोर दिया कि जेलों में रहने वाले बच्चे शिक्षा और विकास के लिए अनुकूल माहौल से वंचित हैं. जेल का माहौल, स्वाभाविक रूप से प्रतिबंधात्मक व बच्चों की विकासात्मक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. न्यायालयों के लिए ऐसे बच्चों के संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है.

न्यायमूर्ति ने कहा कि जेलों में रहने वाले बच्चों को जेल परिसर के बाहर के स्कूलों में दाखिला दिलाया जाना चाहिए. जेल अधिकारी और माता-पिता इस अधिकार से इंकार नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन होगा. सरकार को जेल में बंद माता-पिता के बच्चों के लिए एक व्यापक देखभाल योजना लागू करनी चाहिए. जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और विकास के अवसरों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके. सरकारी विभागों को ऐसी परिस्थितियों में बच्चों के लिए सहायता प्रणाली बनाने के लिए सहयोग करना चाहिए. कोर्ट ने आदेश की प्रतियां अनुपालन के लिए संबंधित विभागों को भेजने का निर्देश दिया.

यह भी पढ़ें : 'कानून मकड़ी का जाल, इसमें छोटी मक्खी ही फंसती है' इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी - ALLAHABAD HIGH COURT

यह भी पढ़ें : केंद्र सरकार में सेवारत होने से राज्य में भी नौकरी पाने का अधिकार नहीं मिल जाता, इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी - ALLAHABAD HIGH COURT COMMENT

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि माता-पिता के साथ जेल में बच्चे को बंद रखना निर्दोष जीवन पर थोपा गया अदृश्य परीक्षण है. इस तरह के बचपन न्याय की विफलता और हमारे युवा नागरिकों के प्रति संवैधानिक वादे के साथ विश्वासघात है. कोर्ट ने कहा कि माता-पिता की कैद से उनके बच्चे के संवैधानिक अधिकारों से समझौता नहीं होना चाहिए.

न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह टिप्पणी एक जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद जेलों में अपने माता-पिता के साथ रहने वाले बच्चों की दुर्दशा के मद्देनजर की है. कोर्ट ने 5 वर्षीय बच्चे की मां की जमानत मंजूर करते हुए उनके बच्चे के मौलिक अधिकारों पर जोर दिया. सरकार को निर्देश दिया कि ऐसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए. महिला अपने 5 वर्षीय बेटे के साथ जेल में रह रही है.

उसके अधिवक्ता राहुल उपाध्याय ने तर्क दिया कि जेल में बच्चे को बंद रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए और बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 सहित अन्य सुरक्षात्मक कानूनों के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. न्यायमूर्ति ने कहा कि जेल का माहौल बच्चे के समग्र विकास में गंभीर रूप से बाधा डालता है और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचाता है.

राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता और अधिवक्ता आरपीएस चौहान ने जेलों में रहने वाले बच्चों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए उपायों की आवश्यकता को स्वीकार किया. न्यायमूर्ति भनोट ने इस बात पर जोर दिया कि जेलों में रहने वाले बच्चे शिक्षा और विकास के लिए अनुकूल माहौल से वंचित हैं. जेल का माहौल, स्वाभाविक रूप से प्रतिबंधात्मक व बच्चों की विकासात्मक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. न्यायालयों के लिए ऐसे बच्चों के संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है.

न्यायमूर्ति ने कहा कि जेलों में रहने वाले बच्चों को जेल परिसर के बाहर के स्कूलों में दाखिला दिलाया जाना चाहिए. जेल अधिकारी और माता-पिता इस अधिकार से इंकार नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन होगा. सरकार को जेल में बंद माता-पिता के बच्चों के लिए एक व्यापक देखभाल योजना लागू करनी चाहिए. जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और विकास के अवसरों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके. सरकारी विभागों को ऐसी परिस्थितियों में बच्चों के लिए सहायता प्रणाली बनाने के लिए सहयोग करना चाहिए. कोर्ट ने आदेश की प्रतियां अनुपालन के लिए संबंधित विभागों को भेजने का निर्देश दिया.

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