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गोरखपुर शहीद स्थली चौरी-चौरा पर दिन में 2:15 बजे फहराया जाता है तिरंगा, जानिए वजह - SHAHEED MEMORIAL MUSEUM GORAKHPUR

गोरखपुर का चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को हुआ था. इस दिन हुए शहीदों की याद में तिरंगा 2:15 बजे फहराया जाता है.

गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा.
गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा. (Photo Credit ; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 4, 2025, 5:46 PM IST

गोरखपुर : भारतीय इतिहास की एक ऐसी तिथि (4 फरवरी 1922) ऐसी तारीख है जो अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त करने के लिए एक बड़े जन विद्रोह के रूप में याद की जाती है. इसी दिन गोरखपुर का चौरी चौरा का जन विद्रोह हुआ था. जब यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी वस्तुओं, कपड़ों का बहिष्कार करते हुए अपने आंदोलन को तेज करने के दौरान, तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के थाने को आग लगा दी थी. इसमें कुल 23 पुलिसकर्मी मारे गए थे. इन्हें भी शहीद माना गया था. साथ ही वह तीन क्रान्तिकारी भी शहीद माने गए जो इस दौरान मारे गए.

देखें ; गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा पर विशेष खबर. (Video Credit ; ETV Bharat)

इतिहासकार बताते हैं कि जन विद्रोह की उग्रता को देखते हुए गांधी जी को 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन स्थगित करना पड़ा था. इसके बाद गांधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस घटनाक्रम में 225 क्रांतिकारी शामिल थे उनके मुकदमे की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की. जिसमें 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई और कई लोगों को काला पानी की सजा सुनाई गई थ. जिसमें अधिकांश लोगों को मालवीय जी बचाने में सफल रहे. अंतिम फैसले में 19 लोगों को फांसी, 16 को काला पानी और 40 लोग बरी हो गए थे.

चौरी चौरा शहीद स्मारक
चौरी चौरा शहीद स्मारक (Photo Credit ; ETV Bharat)

कालांतर में जब देश को आजादी मिली तो चौरी चौरा की क्रांति की इस भूमि पर शहीदों की याद में एक विशाल शिलालेख स्थापित हुआ. जिसके बाद यहां प्रतिवर्ष 4 फरवरी 1922 को उन्हें याद करने के लिए सभागार से लेकर परिसर तक विविध आयोजन होते हैं. जिसमें दिन के 2:15 बजे तिरंगे झंडे को फहराया जाता है. जिसके पीछे की मूल वजह यही है कि आज से करीब 104 वर्ष पहले हमारे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के थाने को आग के हवाले किया था तो वह समय भी 2:15 बजे का था.

गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा.
गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा. (Photo Credit ; ETV Bharat)

चौरी-चौरा के क्रांतिकारियों के सम्मान के लिए संघर्ष करने वाले काली शंकर यादव कहते हैं कि इस जन विद्रोह में हर वर्ग के लोगों की भागीदारी रही. इस बगावत को किसी स्थानीय कांड के रूप में नहीं लेना चाहिए. यह विश्वव्यापी और देशव्यापी फलक का जन आंदोलन था. काली शंकर कहते हैं कि स्वयं की हिफाज़त के लिए भी हिंसा जरूरी हो जाती है. आत्मरक्षार्थ शस्त्र लाइसेंस देने के पीछे दुनियाभर में यही सिद्धांत अपनाया जाता है. चौरी चौरा जन विद्रोहों के पीछे थानेदार गुप्तेश्वर सिंह और अंग्रेजों द्वारा पोषित जमींदारों के जुल्म, जनता में आक्रोश पैदा कर रहे थे. नतीजतन यह घटना हुई.


इस विद्रोह में चौरी-चौरा के 40 किलोमीटर के दायरे के 60 गांवों के गरीब किसान जिसमें अधिकतर दलित और पिछड़े समाज के लोग शामिल हुए थे. इनकी संख्या 2 से 3 हजार के बीच थी. इस बगावत के नेता अब्दुल्ला चूड़ीहार, भगवान अहीर, बिकरम अहीर, नजर अली, रामस्वरूप बरई आदि थे. जिसमें अब्दुल्ला, भगवान अहीर, बिकरम अहीर, दुधई, कालीचरन कहार, लवटू कहार, रघुबीर सुनार, रामस्वरूप बरई, रूदली केवट, संपत आदि को फांसी दी गई थी.

4 फरवरी 1922 के दिन दलित बहुल डुमरी खुर्द गांव के गरीब और सामाजिक तौर पर अपमानित दलितों-बहुजनों और मुसलानों ने जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के गठजोड़ को खुलेआम चुनौती दी और कुछ समय के लिए ही सही चौरी-चौरा के इलाके पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया था. 4 फरवरी 1922 को उन्होंने उस सत्ता को न केवल चुनौती दी, बल्कि विद्रोह की रात, चौरी चौरा रेलवे स्टेशन और डाकघर पर तिरंगा फहरा कर, अपने संघर्ष का मकसद समाज के सामने रखा. काली शंकर कहते हैं कि आज़ादी की लड़ाई में ब्रिटिश सत्ता को नेस्तानाबूद करने वाले इस इकलौते कृत्य को गौरवान्वित करने वाले नायकों के परिवार आज भी उपेक्षित हैं. हमारी सरकार से मांग है कि उनके परिवारों का सम्मान हो, यही नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

इतिहास के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मी शंकर मिश्रा कहते हैं कि यह घटना तब और उग्र रूप धरण की जब यह पता चला कि चौरी चौरा के थानेदार ने बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है. इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गई थी. इस घटना के बाद 16 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था "चौरी चौरा का अपराध" और उसमें जिक्र किया कि अगर वह असहयोग आंदोलन वापस नहीं लिए होते तो दूसरी जगह पर भी ऐसी घटनाएं हो जातीं. हालांकि उन्होंने इस घटना के लिए पुलिसवालों को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन उन्होंने इस घटना में शामिल लोगों को खुद को पुलिस के हवाले करने के लिए कहा था. जिससे क्रांतिकारियों का एक दल काफी नाराज हो गया था.


चौरी चौरा शहीद स्मारक का गठन: चौरी चौरा के क्रांतिकारियों की याद में 1971 में गोरखपुर के लोगों ने स्मारक समिति का गठन किया. इस समिति ने 1973 में 12.02 मीटर ऊंची एक मिनार बनवाई. जिसके दोनों तरफ एक शहीदों को फांसी पर लटकते हुए दिखाया गया था. तब इसकी लागत करीब 13 हजार पांच सौ रुपये आई थी. इसके बाद भारत सरकार ने भी शहीदों की याद में अलग शहीद स्मारक बनवाया जो आज मुख्य स्मारक के तौर पर जाना जाता है. इस पर शहीदों के नाम दर्ज हैं. भारतीय रेलवे ने भी इनके सम्मान में ट्रेनें चलाईं जो शहीद एक्सप्रेस और चौरी चौरा एक्सप्रेस के नाम से जानी जाती हैं.

यह भी पढ़ें : आजादी का अमृत महोत्सव: चौरी-चौरा शहीद स्मारक पर मुशायरा और कवि सम्मेलन का आयोजन - mushaira and kavi sammelan organized

यह भी पढ़ें : चौरी चौरा में शहीद स्मारक संग्रहालय पर्यटकों के लिए फिर खुला - चौरी चौरा जनआंदोलन

गोरखपुर : भारतीय इतिहास की एक ऐसी तिथि (4 फरवरी 1922) ऐसी तारीख है जो अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त करने के लिए एक बड़े जन विद्रोह के रूप में याद की जाती है. इसी दिन गोरखपुर का चौरी चौरा का जन विद्रोह हुआ था. जब यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी वस्तुओं, कपड़ों का बहिष्कार करते हुए अपने आंदोलन को तेज करने के दौरान, तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के थाने को आग लगा दी थी. इसमें कुल 23 पुलिसकर्मी मारे गए थे. इन्हें भी शहीद माना गया था. साथ ही वह तीन क्रान्तिकारी भी शहीद माने गए जो इस दौरान मारे गए.

देखें ; गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा पर विशेष खबर. (Video Credit ; ETV Bharat)

इतिहासकार बताते हैं कि जन विद्रोह की उग्रता को देखते हुए गांधी जी को 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन स्थगित करना पड़ा था. इसके बाद गांधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस घटनाक्रम में 225 क्रांतिकारी शामिल थे उनके मुकदमे की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की. जिसमें 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई और कई लोगों को काला पानी की सजा सुनाई गई थ. जिसमें अधिकांश लोगों को मालवीय जी बचाने में सफल रहे. अंतिम फैसले में 19 लोगों को फांसी, 16 को काला पानी और 40 लोग बरी हो गए थे.

चौरी चौरा शहीद स्मारक
चौरी चौरा शहीद स्मारक (Photo Credit ; ETV Bharat)

कालांतर में जब देश को आजादी मिली तो चौरी चौरा की क्रांति की इस भूमि पर शहीदों की याद में एक विशाल शिलालेख स्थापित हुआ. जिसके बाद यहां प्रतिवर्ष 4 फरवरी 1922 को उन्हें याद करने के लिए सभागार से लेकर परिसर तक विविध आयोजन होते हैं. जिसमें दिन के 2:15 बजे तिरंगे झंडे को फहराया जाता है. जिसके पीछे की मूल वजह यही है कि आज से करीब 104 वर्ष पहले हमारे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के थाने को आग के हवाले किया था तो वह समय भी 2:15 बजे का था.

गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा.
गोरखपुर शहीद स्थली चौरी चौरा. (Photo Credit ; ETV Bharat)

चौरी-चौरा के क्रांतिकारियों के सम्मान के लिए संघर्ष करने वाले काली शंकर यादव कहते हैं कि इस जन विद्रोह में हर वर्ग के लोगों की भागीदारी रही. इस बगावत को किसी स्थानीय कांड के रूप में नहीं लेना चाहिए. यह विश्वव्यापी और देशव्यापी फलक का जन आंदोलन था. काली शंकर कहते हैं कि स्वयं की हिफाज़त के लिए भी हिंसा जरूरी हो जाती है. आत्मरक्षार्थ शस्त्र लाइसेंस देने के पीछे दुनियाभर में यही सिद्धांत अपनाया जाता है. चौरी चौरा जन विद्रोहों के पीछे थानेदार गुप्तेश्वर सिंह और अंग्रेजों द्वारा पोषित जमींदारों के जुल्म, जनता में आक्रोश पैदा कर रहे थे. नतीजतन यह घटना हुई.


इस विद्रोह में चौरी-चौरा के 40 किलोमीटर के दायरे के 60 गांवों के गरीब किसान जिसमें अधिकतर दलित और पिछड़े समाज के लोग शामिल हुए थे. इनकी संख्या 2 से 3 हजार के बीच थी. इस बगावत के नेता अब्दुल्ला चूड़ीहार, भगवान अहीर, बिकरम अहीर, नजर अली, रामस्वरूप बरई आदि थे. जिसमें अब्दुल्ला, भगवान अहीर, बिकरम अहीर, दुधई, कालीचरन कहार, लवटू कहार, रघुबीर सुनार, रामस्वरूप बरई, रूदली केवट, संपत आदि को फांसी दी गई थी.

4 फरवरी 1922 के दिन दलित बहुल डुमरी खुर्द गांव के गरीब और सामाजिक तौर पर अपमानित दलितों-बहुजनों और मुसलानों ने जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के गठजोड़ को खुलेआम चुनौती दी और कुछ समय के लिए ही सही चौरी-चौरा के इलाके पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया था. 4 फरवरी 1922 को उन्होंने उस सत्ता को न केवल चुनौती दी, बल्कि विद्रोह की रात, चौरी चौरा रेलवे स्टेशन और डाकघर पर तिरंगा फहरा कर, अपने संघर्ष का मकसद समाज के सामने रखा. काली शंकर कहते हैं कि आज़ादी की लड़ाई में ब्रिटिश सत्ता को नेस्तानाबूद करने वाले इस इकलौते कृत्य को गौरवान्वित करने वाले नायकों के परिवार आज भी उपेक्षित हैं. हमारी सरकार से मांग है कि उनके परिवारों का सम्मान हो, यही नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

इतिहास के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मी शंकर मिश्रा कहते हैं कि यह घटना तब और उग्र रूप धरण की जब यह पता चला कि चौरी चौरा के थानेदार ने बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है. इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गई थी. इस घटना के बाद 16 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था "चौरी चौरा का अपराध" और उसमें जिक्र किया कि अगर वह असहयोग आंदोलन वापस नहीं लिए होते तो दूसरी जगह पर भी ऐसी घटनाएं हो जातीं. हालांकि उन्होंने इस घटना के लिए पुलिसवालों को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन उन्होंने इस घटना में शामिल लोगों को खुद को पुलिस के हवाले करने के लिए कहा था. जिससे क्रांतिकारियों का एक दल काफी नाराज हो गया था.


चौरी चौरा शहीद स्मारक का गठन: चौरी चौरा के क्रांतिकारियों की याद में 1971 में गोरखपुर के लोगों ने स्मारक समिति का गठन किया. इस समिति ने 1973 में 12.02 मीटर ऊंची एक मिनार बनवाई. जिसके दोनों तरफ एक शहीदों को फांसी पर लटकते हुए दिखाया गया था. तब इसकी लागत करीब 13 हजार पांच सौ रुपये आई थी. इसके बाद भारत सरकार ने भी शहीदों की याद में अलग शहीद स्मारक बनवाया जो आज मुख्य स्मारक के तौर पर जाना जाता है. इस पर शहीदों के नाम दर्ज हैं. भारतीय रेलवे ने भी इनके सम्मान में ट्रेनें चलाईं जो शहीद एक्सप्रेस और चौरी चौरा एक्सप्रेस के नाम से जानी जाती हैं.

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