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गौरेला में नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर राष्ट्रपति के कहे जाने वाले दत्तक पुत्र - Baiga tribals drink dirty water

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 1, 2024, 5:54 PM IST

Updated : Jun 1, 2024, 6:12 PM IST

जीपीएम के गौरेला जनपद पंचायत के बैगा आदिवासी आज भी पाषाण युग में जी रहे हैं. ये नाले और गड्ढे का पानी पीकर जीवन बसर कर रहे हैं.

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गंदा पानी पीने को मजबूर राष्ट्रपति के कहे जाने वाले दत्तक पुत्र (ETV BHARAT)

गौरेला पेंड्रा मरवाही: छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासी गंदा पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं. शुद्ध पानी मानों इनकी किस्मत में ही नहीं. ना कुंआ, ना ही हैंडपंप ये आदिवासी नाले और गड्ढे का पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं. इस पानी के लिए भी इनको दो किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है. इनके ये हालात आदिवासी और बैगा विकास के नाम पर चल रही तमाम योजनाओं की हकीकत बयां कर रहा है. ये लोग आज के दौर में भी पाषाण युग में जी रहे हैं.

गड्ढे के पानी पर निर्भर बैगा आदिवासी: दरअसल गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में बैगा आदिवासियों का बुरा हाल है. गौरेला जनपद पंचायत के ठाड़पथरा, आमानाला, दुर्गाधारा क्षेत्र में रहने वाले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासी आज भी साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. इनके हालात ऐसे हैं जैसे कि ये पाषाण युग में जीवन जी रहे हों. न पक्की सड़कें हैं नहीं पीने का साफ पानी इनको मिलता है. इलाके में कुंआ और हैंडपंप नहीं के बराबर है. बैगा आदिवासियों का कहना है कि वो पानी के लिए पहाड़ी नाले के पास एक गड्ढा कर उसमें पानी जमा करते हैं और फिर उसका इस्तेमाल करते हैं.

निस्तारी के लिए इसी पानी का करते हैं इस्तेमाल: ये बैगा आदिवासी जिन गड्ढों से पानी पीते हैं, उन गड्ढों में पेड़ों से गिरे हुए पत्ते सड़ रहे हैं. बगल में काई भी जमी हुई है. इसी पानी का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के लिए भी करते हैं. गांव के लोग इसी पानी के कपड़े भी धोते हैं.

गांव में हैंडपंप तो है, पर वो भी खराब है. एक हैंडपंप से लाल पानी आ रहा है, जो पीने योग्य नहीं है, इसलिए मजबूरी में यहां पर रहने वाले ग्रामीण गंदा पानी पीनें को मजबूर हैं. बरसात के दिनों में जब नाले में बाढ़ आ जाती है, तब ये लोग बाढ़ का पानी कम होने के बाद बगल में गड्ढा खोदकर उसी पानी को पीते हैं. यही कारण है कि गंदा पानी पीने से अक्सर बीमार पड़ते हैं.- बैगा आदिवासी

बरसात के दिनों में होती है परेशानी: बात अगर पहुंच मार्ग की करें तो यहां सड़क जैसी कोई चीज नजर नहीं आती. बारिश के दिनों में कच्ची सड़कों पर यहां चलना जान जोखिम में डालने के बराबर है. बारिश के दिनों में सड़कों का कटाव पानी से हो जाता है. अगर कोई रात के वक्त बारिश के दिनों में बीमार हो जाए तो उसे शहर तक ले जाना मुश्किल हो जाता है. लोगों की शिकायत है कि उनकी समस्या को देखने के लिए कोई भी अधिकारी यहां नहीं आता है.

अधिकारी ने दिया आश्वासन: इस संबंध में ईटीवी भारत ने आदिवासी विकास विभाग के परियोजना प्रशासक और सहायक आयुक्त से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. गौरेला जनपद पंचायत का कार्यक्षेत्र होने की वजह से जनपद पंचायत गौरेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एचएन खुटेल ने पानी की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार की ओर से चल रही जल जीवन मिशन से पानी पहुंचाने की बात कही है. साथ ही कहा है कि योजना पर जल्द काम होगा. जल्द ही आदिवासियों की समस्या का निपटारा भी किया जाएगा. प्रदेश में बैगा और आदिवासी विकास के नाम पर सालों से करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती आ रही है. सरकार की बनाई योजनाओं का लाभ कितना यहां के लोगों को मिल रहा है यहां की तस्वीर देखने के बाद साफ हो जाता है.

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गड्ढे के पानी पर निर्भर बैगा आदिवासी: दरअसल गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में बैगा आदिवासियों का बुरा हाल है. गौरेला जनपद पंचायत के ठाड़पथरा, आमानाला, दुर्गाधारा क्षेत्र में रहने वाले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासी आज भी साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. इनके हालात ऐसे हैं जैसे कि ये पाषाण युग में जीवन जी रहे हों. न पक्की सड़कें हैं नहीं पीने का साफ पानी इनको मिलता है. इलाके में कुंआ और हैंडपंप नहीं के बराबर है. बैगा आदिवासियों का कहना है कि वो पानी के लिए पहाड़ी नाले के पास एक गड्ढा कर उसमें पानी जमा करते हैं और फिर उसका इस्तेमाल करते हैं.

निस्तारी के लिए इसी पानी का करते हैं इस्तेमाल: ये बैगा आदिवासी जिन गड्ढों से पानी पीते हैं, उन गड्ढों में पेड़ों से गिरे हुए पत्ते सड़ रहे हैं. बगल में काई भी जमी हुई है. इसी पानी का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के लिए भी करते हैं. गांव के लोग इसी पानी के कपड़े भी धोते हैं.

गांव में हैंडपंप तो है, पर वो भी खराब है. एक हैंडपंप से लाल पानी आ रहा है, जो पीने योग्य नहीं है, इसलिए मजबूरी में यहां पर रहने वाले ग्रामीण गंदा पानी पीनें को मजबूर हैं. बरसात के दिनों में जब नाले में बाढ़ आ जाती है, तब ये लोग बाढ़ का पानी कम होने के बाद बगल में गड्ढा खोदकर उसी पानी को पीते हैं. यही कारण है कि गंदा पानी पीने से अक्सर बीमार पड़ते हैं.- बैगा आदिवासी

बरसात के दिनों में होती है परेशानी: बात अगर पहुंच मार्ग की करें तो यहां सड़क जैसी कोई चीज नजर नहीं आती. बारिश के दिनों में कच्ची सड़कों पर यहां चलना जान जोखिम में डालने के बराबर है. बारिश के दिनों में सड़कों का कटाव पानी से हो जाता है. अगर कोई रात के वक्त बारिश के दिनों में बीमार हो जाए तो उसे शहर तक ले जाना मुश्किल हो जाता है. लोगों की शिकायत है कि उनकी समस्या को देखने के लिए कोई भी अधिकारी यहां नहीं आता है.

अधिकारी ने दिया आश्वासन: इस संबंध में ईटीवी भारत ने आदिवासी विकास विभाग के परियोजना प्रशासक और सहायक आयुक्त से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. गौरेला जनपद पंचायत का कार्यक्षेत्र होने की वजह से जनपद पंचायत गौरेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एचएन खुटेल ने पानी की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार की ओर से चल रही जल जीवन मिशन से पानी पहुंचाने की बात कही है. साथ ही कहा है कि योजना पर जल्द काम होगा. जल्द ही आदिवासियों की समस्या का निपटारा भी किया जाएगा. प्रदेश में बैगा और आदिवासी विकास के नाम पर सालों से करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती आ रही है. सरकार की बनाई योजनाओं का लाभ कितना यहां के लोगों को मिल रहा है यहां की तस्वीर देखने के बाद साफ हो जाता है.

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Last Updated : Jun 1, 2024, 6:12 PM IST
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