दंतेवाड़ा: जिले में बैलाडीला की पहाड़ियों पर हजारों सालों से ढोलकाल शिखर पर विघ्नहर्ता भगवान गणेश विराजमान हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह प्रतिमा 10वीं शताब्दी में नागवंश शासनकाल के दौरान समुद्रतल से 3000 फीट की ऊंचाई पर ढोलकाल शिखर पर बनाई गई थी. यह स्थान हरी-भरी वादियों और प्रकृति के बीच है.
नागवंशी शासनकाल में हुई स्थापना: ढोलनुमा पहाड़ के शिखर पर भगवान गणेश की अलौकिक, अनुपम प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है. पहाड़ियों पर ट्रेक करने वाले सैलानियों के लिए यह स्थान स्वर्ग की सुंदर और हरी-भरी है. यहां गणेशजी की ललिता आसन पर चारभुजाधारी प्रतिमा बैठी हुई है. गणेशजी के एक हाथ में मोदक, एक दन्त, और उदर पर एक नाग भी माले के स्वरूप में बना हुआ है, जिसकी वजह से इसकी स्थापना नागवंशी शासनकाल मे होने के प्रमाण मिलते हैं.
दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त: इस बारे में दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी विजेंदर नाथ जिया कहते हैं, " सदियों पुराने बने इस मंदिर के प्रति भक्तों की काफी आस्था है. दूर-दूर से भक्त यहां बप्पा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं." वहीं भक्तों का कहना है कि यहां वो हर साल पहुंचते हैं. यहां आकर लगता है कि मानों हम प्रकृति की गोद में हों. यहां की सुदरता देखने लायक है."
पहले सूर्यदेव की भी थी प्रतिमा: जानकारों की मानें तो ढोलकाल शिखर पर विराजमान गणेशजी की प्रतिमा 10वीं-11वीं शताब्दी की है. पथ्थर की चोटी को काटकर यह मूर्ति स्थापित की गई है. गणेश प्रतिमा के सामने की चोटी पर सूर्यदेव की प्रतिमा थी. हालांकि वर्तमान में सूर्यदेव की प्रतिमा वहां नहीं है. बस्तर में कई स्थानों पर 10वीं-11वीं शताब्दी की मूर्तियां थी. धीरे-धीरे ये प्रतिमा रख-रखाव के अभाव में विलुप्त हो गई है. गणेश प्रतिमा पूर्व दिशा में रखी गई है, जो कि दंतेश्वरी मन्दिर से ठीक सामने ढोलकाल पर है.
ऐसे पहुंचे ढोलकाल पर्वत: माई दंतेश्वरी की नगरी दंतेवाड़ा में 17 किलोमीटर डामर की सड़क पर फरसपाल गांव के कोटवारपारा आसानी से पहुंचा जा सकता है. जहां से ग्रामीण पहाड़ पर पैदल बने रास्ते पर लगभग 2 घण्टे जंगलों में ट्रेक करके इस स्थान तक पहुंचा सकते हैं. पहाड़ी रास्ता होने के कारण बरसात के दिनों में पहाड़ों पर ट्रेक करने में दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है.