अलवर : शहर में वैसे तो कई गणेश मंदिर हैं, जो अपनी खास विशेषताओं के चलते जाने जाते हैं. ऐसे ही अलवर शहर के लाल दरवाजा स्थित मंदिर को शहर का पहला गणेश मंदिर कहा जाता है. खास बात यह है कि इस मंदिर को अलवर का रक्षक भी कहा जाता है. यह मंदिर अलवर शहर के हृदय स्थल में बसा हुआ है. जानकारी के अनुसार यह मंदिर 250 साल से भी ज्यादा पुराना है. मंदिर प्रांगण में भगवान गणेश की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा विराजित है, जिसके दर्शन के लिए हर बुधवार को लोग दूर-दराज से आते हैं. रियासत काल के समय यहां अलवर के महाराजा भी शीश नवाने के लिए पहुंचते थे.
गणेश जी की सूंड दाहिनी ओर : मंदिर से जुड़े भगवान सहाय ने बताया इस मंदिर को लाल दरवाजा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि रियासत काल के समय यहां पर लाल दरवाजा हुआ करता था. इस दरवाजे को शहर का प्रवेश द्वार माना जाता था, लेकिन आज मंदिर के आसपास पूरा बाजार बस चुका है. इस मंदिर में विराजित गणेश जी की प्रतिमा 6 फीट ऊंची और पूर्व मुखी है. यह प्रतिमा मिट्टी की है. इस प्रतिमा के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि यह कितनी पुरानी है. मिट्टी की प्रतिमा पर चोला चढ़ा हुआ है. प्रतिमा को देखने पर पता लगता है कि गणेश जी की सूंड दाहिनी ओर है, जो कि बहुत शुभ माना जाता है.
बग्गी में सवार होकर आते थे महाराज : इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि अलवर शहर के हृदय स्थल में बसे लाल दरवाजा गणेश मंदिर में रियासत कालीन के समय अलवर के महाराजा अपनी शाही बग्गी में सवार होकर दर्शन के लिए आते थे. महाराज की सवारी भी इस मंदिर के आगे से होकर गुजरती थी. वहीं, भगवान सहाय ने बताया कि जब इस मंदिर की स्थापना हुई, तब अलवर शहर में नाम मात्र के मंदिर थे. ऐसे में इस मंदिर को शहर का पहला गणेश मंदिर कहा जाता है. उन्होंने बताया कि उस समय अलवर शहर में बसावट भी कम थी और मंदिर तक लोग भी कम पहुंचते थे, लेकिन आज मंदिर की प्रसिद्धि इतनी है कि दूर-दूर से लोग भगवान गणेश के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
सैंकड़ों श्रद्धालु लगाते हैं अरदास : भगवान दास ने बताया कि लाल दरवाजा के गणेश मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने की अरदास लगाने के लिए आते हैं. गणेश मंदिर के आसपास बाजार होने के चलते यहां के स्थानीय व्यापारी भी सुबह अपने प्रतिष्ठान खोलने से पहले भगवान के दर्शन करते हैं. शादी, प्रतिष्ठान, दुकान के उद्घाटन के लिए लोग पहले निमंत्रण इसी मंदिर में भगवान गणेश को देने आते हैं.
गणेश चतुर्थी पर होता है विशेष श्रृंगार व भरता है मेला : भगवान सहाय ने बताया कि गणेश चतुर्थी के पर्व पर मंदिर में विशेष आयोजन किए जाते हैं. इसके लिए भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है. भगवान के लिए खास जयपुर से पोशाक तैयार कर मंगवाई जाती है. इस अवसर पर यहां मेला भरता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. भगवान सहाय ने बताया कि अलवर के गणेश मंदिर में विशेष आकर्षण गणेश जी का वाहक मूषक है. इस मूषक को चुन्नू के नाम से बुलाया जाता है. देखने में यह मूषक सफेद रंग का है. भगवान गणेश के साथ भक्त चुन्नू को भी प्रसाद का भोग लगाते हैं.