जयपुर: आज 2 अक्टूबर को पूरी दुनिया उस महान विचारक को याद कर रही है जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की बंदूकों को अपने मजबूत इरादों और अहिंसा के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया था. कोई उन्हें महात्मा कहता है तो कोई बापू और कोई मोहनदास करमचंद गांधी. आज हम आपको एक ऐसे सफर पर ले चलते हैं जहां इस महान विचारक महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को आधुनिक तकनीक के साथ इस तरह प्रदर्शित किया गया है कि जैसे बापू खुद यहां आने वालों को गुलामी के अंधेरे से आजादी की रोशनी तक का सफरनामा बता रहे हैं. शहर के सेंट्रल पार्क में बने गांधी वाटिका म्यूजियम को आज गांधी जयंती के मौके पर आमजन के लिए शुरू कर दिया गया है. पूरे अक्टूबर के महीने में यहां प्रवेश निशुल्क रहेगा.
महात्मा गांधी के जीवन और उनके दर्शन से आमजन को रूबरू करवाने के लिए 14500 वर्ग मीटर में बने गांधी वाटिका म्यूजियम में गांधी दर्शन को आधुनिक तकनीक के साथ इस तरह प्रदर्शित किया गया है कि जैसे बापू खुद यहां आने वालों को गुलामी के अंधेरे से आजादी की रोशनी तक का सफरनामा बता रहे हैं. म्यूजियोलॉजी की दुनिया में इसे होलोग्राफिक प्रोजेक्शन कहा जाता है. यह बहुत ही संवेदनशील तकनीक है जिसका जयपुर में पहली बार गांधी वाटिका म्यूजियम में उपयोग किया गया है. गांधी वाटिका म्यूजियम में आने वाले लोगों को यह अहसास होता है कि बापू खुद आपके सामने खड़े हैं और आपसे संवाद कर रहे हैं.
उजाले से अंधेरे और फिर रोशनी का सफरनामा: गांधी वाटिका म्यूजियम में बापू के नजरिए से यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि प्राचीन भारत कैसे सोने की चिड़िया था. कालांतर में कई अलग-अलग साम्राज्य उभरे और इतिहास बन गए. राजशाही के दौर में विभिन्न रियासतों के आपसी द्वंद्व ने कैसे भारत को समृद्धि के उजाले से गुलामी के अंधेरे में धकेल दिया. गुलामी के दौर में किस तरह जुल्म ढाए और कैसे स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी भड़की. स्वाधीनता सेनानियों और बलिदानियों की बदौलत आजदी मिली, तो बंटवारे की पीड़ा और उसके बाद उपजे हालातों को भी इस म्यूजियम में साकार किया गया है.
ऑब्जेक्ट्स की बजाए विचारों को संजोया: इस म्यूजियम को बनाने और देखरेख से जुड़े शेखर बड़वे बताते हैं, यह जयपुर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी तरह का अनूठा म्यूजियम है. इस म्यूजियम में गांधीजी के द्वारा उपयोग किए गए पर्सनल ऑब्जेक्ट्स के बजाए उनके विचारों को संजोया गया है. इसमें उनके जीवन दर्शन से परिचय होता है. उनके जीवन दर्शन को आधुनिकतम तकनीक के जरिए दिखाने का प्रयास किया गया है. आज की युवा पीढ़ी को आधुनिक तकनीक पसंद है. इसमें सादगी का भी पूरा ध्यान रखा गया है. जो गांधीजी के विचारों से मेल खाता है. इसमें जो तकनीक प्रयोग की गई है, वह पीछे या छिपी हुई है. ताकि बापू का जीवन दर्शन और उनका संदेश साकार हो.
दांडी मार्च और चोरा-चोरी कांड हुआ साकार: उन्होंने बताया, दांडी मार्च का दृश्य साकार करने के लिए जमीन पर नमक की ढेरियां बनाई गई हैं. इन नमक की ढेरियों पर प्रोजेक्शन मैपिंग की गई है. इसमें दिखाया गया है कि गांधीजी ने दांडी यात्रा कैसे की. इसके पीछे के कारणों को भी समझाया गया है. इस म्यूजियम में होलोग्राफिक प्रोजेक्शन का भी उपयोग किया गया है. लेंटिक्युलर प्रोजेक्शन तकनीक के जरिए चोरा-चोरी कांड को दिखाया गया है. जेश्चर कंट्रोल्ड प्रोजेक्शन का भी इस म्यूजियम में प्रयोग किया गया है. जिसमें जमीन पर प्रोजेक्शन है और आप जैसे ही चलेंगे तो उसमें लहर उठती है. इससे यहां आने वालों का विषय वस्तु से सहज संवाद होना शुरू होता है. आमतौर पर म्यूजियम बहुत ही निष्क्रिय होते हैं. जिनमें सामान्य तौर पर फोटो और आलेख के जरिए समझाया जाता है. भित्तिचित्र का प्रयोग किया गया है. संग्रहालयों की परंपरागत तकनीक को आकर्षक तरीके से उपयोग किया गया है. इसके साथ ही आधुनिक तकनीक का भी इसमें प्रयोग किया गया है.
अपने आप में शोध केंद्र है यह म्यूजियम: पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के निदेशक पंकज धरेंद्र का कहना है, किसी को अगर महात्मा गांधी पर रिसर्च करना हो, तो उसे यह म्यूजियम जरूर देखना चाहिए. यह अपने आप में एक शोध केंद्र है. इसमें गांधीजी के बचपन से लेकर उनके देहावसान के बाद तक का सारा जीवन दर्शन समेटा गया है. लाइट एंड साउंड के जरिए भी कई घटनाओं को ऐसे प्रदर्शित किया गया है. जैसे वे हमारे सामने घट रही हैं. दक्षिण अफ्रीका की वह घटना, जिसमें रंगभेद के कारण बापू को ट्रेन से नीचे धकेल दिया जाता है. उसमें बाकायदा ट्रेन की आवाज सुनाई देती है. गांधीजी जमीन पर गिरे नजर आते हैं. उनका सामान बिखरा दिखाई देता है.
बापू के जीवन के हर एक पहलू को उकेरा: उन्होंने बताया, बापू ने चरखे से जो कपड़ा बनाया था, उसके ऊपर फिल्म चलती रहती है. इसमें गांधी दर्शन के आयामों को दिखाया गया है. ब्रिटेन में पढ़ाई, स्वदेश वापसी, दक्षिण अफ्रीका का प्रवास हो या चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह, दांडी मार्च, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या खिलाफत आंदोलन और उसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन. अंग्रेज हुकूमत की बंदूकों को अहिंसा के दम पर झुकाने का जो साहस महात्मा गांधी ने दिखाया. उसे इस म्यूजियम में इस तरह साकार किया गया है. जैसे वे घटनाएं सैंकड़ों साल पहले नहीं बल्कि आज ही हमारे सामने घट रहीं हो. मुकदमें हो या गांधीजी की जेल यात्रा. उनके जीवन का कोई भी ऐसा प्रसंग नहीं है. जो इस म्यूजियम में आने वाले लोगों की आंखों के सामने नहीं आ पाता हो.
और अब गांधी की विरासत पर सियासत: गांधी वाटिका म्यूजियम पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक था. एक साल पहले 23 सितंबर, 2023 को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद राहुल गांधी और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसका लोकार्पण किया था. सत्ता बदलने के बाद एक साल तक इसे आमजन के लिए नहीं खोला गया तो अशोक गहलोत ने भजनलाल सरकार के खिलाफ धरने का एलान कर दिया. इसके तुरंत बाद सरकार ने गांधी वाटिका म्यूजियम को 2 अक्टूबर से आमजन के लिए खोलने के आदेश जारी किए.