जोधपुर. सियासत में न तो कोई स्थायी मित्र और न ही शत्रु होता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि जिस शेरगढ़ विधानसभा मुख्यालय पर भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत को एक ही दिन में दो-दो बार विरोध झेलना पडा था, वहीं शुक्रवार को उन्हें लोगों ने कंधे पर उठाकर उनके समर्थन में नारेबाजी की. दरअसल, यहां कार्यकर्ताओं के लिए होली स्नेह मिलन समारेाह का आयोजन किया गया था, जिसमें अच्छी खासी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही समर्थकों की भीड़ उमड़ी. वहीं, मौके पर विधायक बाबू सिंह राठौड़ ने क्षेत्र की आवश्यकताओं से भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत को अवगत कराया. साथ ही उन्होंने कहा कि इस बार पूरे 10 साल की कमी पूरी करनी है और पिछले सभी वाकयाओं को भूलने की अपील की.
इधर, जब गजेंद्र सिंह शेखावत ने संबोधन शुरू किया तो उन्होंने मंच से अपने मन की बातें कहीं. इसके अलावा उन्होंने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से उनके और बाबू सिंह राठौड़ के रिश्तों में कड़वाहट की बात भी कबूली. शेखावत ने आगे कहा कि 2013 से 2018 तक प्रदेश में डबल इंजन की सरकार थी, लेकिन तब बाबू सिंह की मैडम से नहीं बनी और बाद में मेरी नहीं बनी थी. इसलिए यहां काम नहीं हो सका था. उसके बाद कांग्रेस की सरकार आ गई, जिसने केंद्र के काम रोक दिया था, लेकिन वर्तमान की डबल इंजन की सरकार में अब सबकुछ होगा.
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अब नहीं रुकेगा शेरगढ़ का विकास : शेखावत ने कहा प्रदेश में बनी डबल इंजन की सरकार से केंद्र के मार्फत राज्य के काम होने लगे हैं. आप लोगों को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारा जयपुर और दिल्ली दोनों पर काबू है. इसलिए शेरगढ़ की अब जो भी मांगे बाबू सिंह ने रखी हैं, उसे पूरी की जाएगी. शेरगढ़ के विकास के लिए बाबू सिंह यहां दिन-रात पसीना बहाएंगे और मेरा खून बहेगा.
राठौड़ ने उठाया था शेखावत पर सवाल : शेरगढ़ विधायक बाबू सिंह राठौड़ ने हाल ही में गजेंद्र सिंह शेखावत की कार्यशैली को लेकर उनका विरोध किया था. खूले मंच से उन पर आरोप लगाए थे कि वे काम नहीं करवाते हैं, बल्कि सिर्फ बातें करते हैं. प्रत्याशी घोषित होने के बाद शेखावत का शेरगढ़ में विरोध भी हुआ था. हालांकि, बाद में सीएम भजनलाल शर्मा ने दोनों नेताओं संग जयपुर में बैठक की थी, जिसके बाद से ही बाबू सिंह गजेंद्र सिंह शेखावत की तारीफ में कसीदें पढ़ने लगे हैं.
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राजे से दोनों के रिश्तों में खींचतान : बाबू सिंह राठौड़ जब तीसरी बार एमएलए बने थे तो उनको वसुंधरा सरकार में तरजीह नहीं दी गई थी. इसकी वजह उनके राजे से रिश्ते बिगड़ने लगे थे. एक मौका ऐसा भी आया कि राठौड़ ने विधायकों की बैठक में ही राजे के कार्य शैली पर सवाल उठा दिया था. हालांकि, बाद में दोनों के रिश्ते बेहतर हो गए थे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. वहीं, शेखावत के पहली बार सांसद बनने के बाद केद्र में मंत्री बनते ही राज्य की राजनीति में दखल की शुरुआत से राजे नाराज रहने लगी थी. इससे दोनों के रिश्ते बिगड़ने शुरू हो गए थे.