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'कितना महफूज हूं कोने में, कोई अड़चन नहीं है रोने में'... मशहूर शायर फहमी बदायूंनी सुपुर्द-ए-खाक, मुरारी बापू थे मुरीद - POET FAHMI BADAYUNI

UP NEWS BADAUN: मशहूर शायर फहमी बदायूंनी 86 साल की उम्र में दुनिया से रुख्सत कर गए, , उनकी शायरी सीधे दिल में उतरती थी, उन्होंने अपने हुनर से देश दुनिया में बदायूं का नाम रोशन किया.

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मशहूर शायर फहमी बदायूंनी (फाइल फोटो) (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 22, 2024, 4:22 PM IST

Updated : Oct 22, 2024, 4:46 PM IST

बदायूं: 'कितना महफूज हूं कोने में, कोई अड़चन नहीं है रोने में' जैसे कई बेहतरीन शायरी पेश करने वाले मशहूर शायर शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी दुनिया से रुख्सत हो गए. कस्बा बिसौली के रहने वाले जमा शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी का बीमारी के चलते रविवार को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.

फहमी बदायूंनी का शव उनके पुश्तैनी कब्रिस्तान में सुपुर्दें खाक किया गया. फहमी बदायूंनी के जनाजे में शायरों के साथ स्थानीय लोगों मौजूद रहे और नम आखों से अंतिम विदाई दी. जानजे में दूसरे जिलों के भी शायर और साहित्यकारों ने शिरकत की उनके साथ बिताए गए यादगार पल साझा करते हुए शोक संवेदना व्यक्त कीं. सभी ने उनकी कब्र पर फातिहा पढ़कर खिराजे अकीदत पेश की.

मशहूर शायर फहमी बदायूंनी की मौत. (Video Credit; Social Media)


मशहूर शायर फहमी के बेटे जुवैद खां ने बताया कि 2016 में दिल्ली एक कार्यक्रम में फ़हमी साहब की मुलाकात मुरारी बापू से हुई थी. मुरारी बापू को फमही की शायरी बहुत पंसद आई थी. जिसके बाद हर महीने मुरारी बापू उन्हें अपने आयोजनों में बुलाया करते थे और जहां शायरी पेश कर समां बांध देते थे. मुरारी बापू बड़े शौक से फहमी बदायूंनी को सुनते थे. उनका जाना उर्दू अदब के लिए एक बड़ा खसारा है. उनके अशआर दुनिया भर के सोशल मीडिया हैंडल्स पर वायरल होते रहे हैं.

बता दें कि फहमी बदायूंनी असली नाम जमा शेर खान उर्फ पुत्तन खान था. इनका जन्म 4 जनवरी 1952 को कस्बा बिसौली में हुई थी. जनाजे में शामिल हुए शायरों ने कहा कि फहमी साहब की शायरी में जदीदियत संजीदा फिक्र-ओ-ख़्याल और नए नए जविये देखने को मिलते हैं. नयी तर्ज़ में गुफ़्तगू करते हुए उनके अशआर सीधे दिल में ऐसे उतरते हैं कि पढने वाला तारीफ किये बगैर नहीं रह सकता. उनमें दर्द भी है, तड़प भी है और तलब भी है. उन्होंने जो भी ख़्याल शायरी के हवाले से पेश किए हैं वो सच्चे नजर आते हैं. फहमी बदायूंनी की 3 किताबें 'मंज़र ए आम पर आ चुकी हैं. जिसमें "पांचवीं सम्त", "दस्तक निगाहों की" और "हिज्र की दूसरी दवा" हैं. ब्जम-ए-अदब बदायूं के वाइस प्रेसिडेंट भी थे.

इसे भी पढ़ें-दुनिया में 'बेनजीर' की ताजमहल के पास बदहाल मजार, जनता के बीच कब्र में यूं अनजान हैं 'नजीर'

बदायूं: 'कितना महफूज हूं कोने में, कोई अड़चन नहीं है रोने में' जैसे कई बेहतरीन शायरी पेश करने वाले मशहूर शायर शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी दुनिया से रुख्सत हो गए. कस्बा बिसौली के रहने वाले जमा शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी का बीमारी के चलते रविवार को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.

फहमी बदायूंनी का शव उनके पुश्तैनी कब्रिस्तान में सुपुर्दें खाक किया गया. फहमी बदायूंनी के जनाजे में शायरों के साथ स्थानीय लोगों मौजूद रहे और नम आखों से अंतिम विदाई दी. जानजे में दूसरे जिलों के भी शायर और साहित्यकारों ने शिरकत की उनके साथ बिताए गए यादगार पल साझा करते हुए शोक संवेदना व्यक्त कीं. सभी ने उनकी कब्र पर फातिहा पढ़कर खिराजे अकीदत पेश की.

मशहूर शायर फहमी बदायूंनी की मौत. (Video Credit; Social Media)


मशहूर शायर फहमी के बेटे जुवैद खां ने बताया कि 2016 में दिल्ली एक कार्यक्रम में फ़हमी साहब की मुलाकात मुरारी बापू से हुई थी. मुरारी बापू को फमही की शायरी बहुत पंसद आई थी. जिसके बाद हर महीने मुरारी बापू उन्हें अपने आयोजनों में बुलाया करते थे और जहां शायरी पेश कर समां बांध देते थे. मुरारी बापू बड़े शौक से फहमी बदायूंनी को सुनते थे. उनका जाना उर्दू अदब के लिए एक बड़ा खसारा है. उनके अशआर दुनिया भर के सोशल मीडिया हैंडल्स पर वायरल होते रहे हैं.

बता दें कि फहमी बदायूंनी असली नाम जमा शेर खान उर्फ पुत्तन खान था. इनका जन्म 4 जनवरी 1952 को कस्बा बिसौली में हुई थी. जनाजे में शामिल हुए शायरों ने कहा कि फहमी साहब की शायरी में जदीदियत संजीदा फिक्र-ओ-ख़्याल और नए नए जविये देखने को मिलते हैं. नयी तर्ज़ में गुफ़्तगू करते हुए उनके अशआर सीधे दिल में ऐसे उतरते हैं कि पढने वाला तारीफ किये बगैर नहीं रह सकता. उनमें दर्द भी है, तड़प भी है और तलब भी है. उन्होंने जो भी ख़्याल शायरी के हवाले से पेश किए हैं वो सच्चे नजर आते हैं. फहमी बदायूंनी की 3 किताबें 'मंज़र ए आम पर आ चुकी हैं. जिसमें "पांचवीं सम्त", "दस्तक निगाहों की" और "हिज्र की दूसरी दवा" हैं. ब्जम-ए-अदब बदायूं के वाइस प्रेसिडेंट भी थे.

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Last Updated : Oct 22, 2024, 4:46 PM IST
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