रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक नकल प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा पर कोई खास जोर नहीं दिया गया है. रमन सरकार के 15 साल के कार्यकाल की बात की जाए तो उसे दौरान नक्सल समस्या चरम पर रही. आए दिन बड़ी-बड़ी नक्सली घटनाएं होती थी. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के स्कूल भी बंद कर दिए गए थे. उसकी यह भी वजह थी कि नक्सलियों से मोर्चा लेने के लिए जो जवान उन क्षेत्रों में पहुंचते थे उन्हें इन स्कूलों में ही रोका जाता था. जवानों को टारगेट करने और उनके रुकने के ठिकानों को नक्सली निशाना बनाते थे. नक्सल प्रभावित इलाकों में ज्यादातर स्कूलों को उस वक्त नक्सलियों ने बमों से उड़ा दिया. शिक्षा का मंदिर युद्ध का मैदान बन गया. दहशत और हिंसा के चलते स्कूलों को बंद कर दिया गया.
जब सरकार का फैसला हुआ गलत साबित: जब राज्य सरकार की ओर इन स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया गया तो उस दौरान इस बात पर विचार नहीं किया गया कि आखिर इस क्षेत्र के जो बच्चे हैं उनकी शिक्षा दीक्षा कैसे होगी. बस्तर के बच्चे आगे कैसे पढ़ाई करेंगे. उनका भविष्य कैसा होगा. स्थिति चाहे जो भी रही हो लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र के स्कूलों को बंद किया जाने का निर्णय उचित साबित नहीं हुआ.
कांग्रेस सरकार ने शुरु की पहल: हालांकि सत्ता परिवर्तन के बाद भूपेश सरकार ने इन स्कूलों को फिर से खोलने की शुरुआत की. जो स्कूल बंद हो चुके थे, भवन जर्जर हो गए थे उनको ठीक ठाक कराकर फिर से स्कूल खोले गए. बस्तर के लोग और सरकार दोनों ये चाहते हैं कि बच्चों को स्कूली शिक्षा में कोई दिक्कत नहीं आए. आम ग्रामीण भी ये चाहता है कि हिंसा का रास्ता नक्सली छोड़ें और बच्चों को शिक्षा के रास्ते पर ले जाया जाए.
''नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर, सरगुजा ,कांकेर इन जगहों में दो प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए जिसमें स्वास्थ्य और शिक्षा शामिल है. इन व्यवस्थाओं में अभी भी सरकार वहां पर लड़खड़ा रही है. जिस तरीके से स्वस्थ्य और शिक्षा वहां होनी चाहिए वैसी व्यवस्था वहां नहीं है. सरकार कोई भी हो लेकिन वह वहां मिल नहीं रही है. पूर्ववर्ति रमन सरकार के समय की बात की जाए तो उसे दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्र के कई स्कूल बंद कर दिए गए. जिसकी वजह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए. इसकी वजह से उनका जीवन अंधकारमय हो गया. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में शिक्षित होकर ज्ञान, अपने अधिकार ,अपने जीवन के विकास के लिए जो सोच पाए , वह कहीं ना कहीं बंद हो गया था. हालांकि सत्ता परिवर्तन के बाद भूपेश सरकार ने इन बंद स्कूलों को शुरू किया. अब वर्तमान सरकार की यह जवाबदारी है कि इसे गति देते हुए आगे बढ़ाए. स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क ठीक नहीं करेंगे तो वहां से नक़्सलवाद खत्म नहीं होगा. विकास की योजनाओं से नक्सलवाद जरूर खत्म हो सकता है जिसकी पहल सरकार को जरुर करनी चाहिए''. - रामअवतार तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
सरकार पर सबकी निगाहें: कई दशकों से चले रहे नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था बड़ी भूमिका अदा कर सकती है. सरकार की भी मंशा है कि बस्तर की धरती से माओवादी हिंसा खत्म हो. बस्तर के लोगों को भी वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मिले जो रायपुर शहर के लोगों को मिलती है. जरुरत इस बात की है कि सरकार इस ओर जल्दी से कदम बढाए ताकि समय रहते नासूर का इलाज हो सके.