पटना: दिवाली का त्योहार दीयों की रोशनी से घर से आंगन जगमगाता है. वहीं पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेशजी की पूजा की जाती है. दिवाली के दिन दीयों का जलाने की परंपरा होती है. दिवाली की परंपराओं में सबसे खास परंपरा डायन दीया जलाने की होती है. उसके साथ ही घर के बाहर चौखट पर डायन दीया जलाने की पुरानी परंपरा रही है. कहते हैं डायन दीया जलाने से घर में नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता है.
क्यों जलाया जाता है डायन दीया?: दीपावली को लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं. डायन दीए के बारे में यह मान्यता है कि घरों में इसे जलाने से बुरी शक्तियों का नाश होता है. डायन दीया बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि हर घर में दीया जलाने की पुरानी परंपरा रही है. ऐसे में बाजार में इसकी खूब बिक्री होती है. धनरूआ के बरनी बाजार में कुम्हार कारीगरों के द्वारा डायन दीया बनाया जा रहा है.
घर के चौखट पर जलाते हैं डायन दीपक: कुम्हार कारीगरों ने बताया कि डायन दीया में मिट्टी की एक महिला आकृति का पुतला बनाया जाता है, जिसमें पांच दीये लगाए जाते हैं. पांच छोटे-छोटे दीयों को घी डाल कर जलाया जाता है तो पांच तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. घर में नकारात्मक शक्तियों का वास न हो इसको लेकर दिवाली की रात सभी लोग अपने घर के बाहर वाली चौखट पर डायन दीया जलाते हैं. डायन दीया की बाजारों में बहुत डिमांड रहती है.
"डायन दीया जलाने से बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं. दिवाली में डायन दिया बनाने के लिए हम लोग दिवाली आने से 2 महीना पहले से ही तैयारियों में जुट जाते हैं. उम्मीद है कि बाजारों में खूब बिक्री होगी प्रत्येक साल 40 से 50000 कमाई हो जाती है." -आशा देवी, कुम्हार, बरनी, धनरूआ, पटना
दीवाली का महत्व: दीवाली को दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके माता सीता समेत भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या नगरी पहुंचे थे. यहां पर अयोध्या वासियों ने घी के जगमग दीपों से उनका स्वागत किया था इस दिन से ही देशभर में दीवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. इसके साथ ही दीपावली में मिट्टी के दीये के साथ-साथ डायन दीया जलाने की भी परंपरा रही है.
"दीपावली पर्व के मौके पर रात में सभी घरों में घर की चौखट पर डायन दीया जलाने की पुरानी परंपरा रही है. इसके पीछे कई कहानियां भी है घर में नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता है और उस डायन दीया पर पांच दीये जलाए जाते हैं." -गोपाल पांडे, श्री राम जानकी ठाकुरवाड़ी मंदिर, मसौढ़ी
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