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भोजशाला के सर्वेक्षण के लिए ASI ने मांगा और वक्त, मुस्लिम पक्ष ने लगाया खुदाई का आरोप - DHAR BHOJSHALA ASI SURVEY - DHAR BHOJSHALA ASI SURVEY

धार की भोजशाला में ASI की टीम पिछले एक महीने से सर्वे कर रही है. अब ASI ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए सर्वे के और वक्त मांगा है. हिंदू पक्ष ने ASI की याचिका का समर्थन किया है. इधर मुस्लिम पक्ष ने भोजशाला में खुदाई के आरोप लगाए हैं.

DHAR BHOJSHALA DISPUTE
भोजशाला के सर्वेक्षण के लिए एएसआई ने मांगा और वक्त
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 28, 2024, 10:22 PM IST

इंदौर, (पीटीआई)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की याचिका पर सुनवाई कर सकती है, जिसमें धार जिले में भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण पूरा करने के लिए 8 सप्ताह का और समय मांगा गया है. हिंदू एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता है.

हिंदू संगठन की हाईकोर्ट में चुनौती

7 अप्रैल, 2003 को एएसआई द्वारा की गई व्यवस्था के तहत, हिंदू मंगलवार को परिसर में पूजा करते हैं और मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं. 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' नामक संगठन ने इस व्यवस्था को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में चुनौती दी, जिसने इस वर्ष 11 मार्च को एएसआई को छह सप्ताह के भीतर विवादित परिसर का 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' करने का निर्देश दिया. मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसायटी ने 11 मार्च के इस आदेश को चुनौती दी थी. वैज्ञानिक सर्वेक्षण 22 मार्च को शुरू हुआ.

भोजशाला में खुदाई का आरोप

मुस्लिम पक्ष के एक प्रतिनिधि ने दावा किया कि, परिसर में खुदाई की गई थी और जोर देकर कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस स्मारक की मूल संरचना प्रभावित या बदली न जाए. 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भोजशाला के 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि ''कोई भी भौतिक खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे संबंधित परिसर का चरित्र बदल जाए.''

हिंदू पक्ष ने किया ASI की याचिका का समर्थन

दूसरी ओर, मामले में हिंदू पक्ष के एक प्रतिनिधि ने विवादित स्मारक की सत्यता स्थापित करने और महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने आने का दावा करते हुए अधिक समय के लिए एएसआई की याचिका का समर्थन किया. भोजशाला मामले में हिंदू पक्ष के नेता गोपाल शर्मा ने पीटीआई से कहा, "पिछले छह सप्ताह में भोजशाला परिसर में एएसआई सर्वेक्षण के लिए नींव रखी गई है. अगर एएसआई को सर्वेक्षण के लिए अतिरिक्त समय मिलता है, तो ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) और अन्य उन्नत उपकरणों के इस्तेमाल से महत्वपूर्ण साक्ष्य मिल सकते हैं.''

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हिंदू पक्ष का दावा-भोजशाला टूटी हुई मूर्तियां दिखाई दीं

गोपाल शर्मा धार स्थित 'श्री महाराजा भोज सेवा संस्थान समिति' के सचिव हैं और भोजशाला मामले में 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' द्वारा हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के प्रतिवादियों में से एक हैं. शर्मा ने कहा कि ''भोजशाला के 200 मीटर के दायरे में अभी भी कुछ टूटी हुई मूर्तियां और अन्य अवशेष दिखाई दे रहे हैं, जो इस परिसर पर अतीत में हुए "हमले" की कहानी बयां करते हैं.''

शहर काजी बोले- निष्पक्षता से सर्वेक्षण करे ASI

धार के शहर काजी (प्रमुख मौलवी) वकार सादिक ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि एएसआई सर्वेक्षण में भौतिक उत्खनन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे भोजशाला परिसर का मूल चरित्र बदल जाए." सादिक ने जोर देकर कहा, "लेकिन, हाल ही में हमने परिसर के दक्षिणी हिस्से में फर्श पर दो से तीन फीट के गड्ढे खुदे हुए देखे. एएसआई को इस परिसर का पूरी निष्पक्षता से सर्वेक्षण करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए."

इंदौर, (पीटीआई)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की याचिका पर सुनवाई कर सकती है, जिसमें धार जिले में भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण पूरा करने के लिए 8 सप्ताह का और समय मांगा गया है. हिंदू एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता है.

हिंदू संगठन की हाईकोर्ट में चुनौती

7 अप्रैल, 2003 को एएसआई द्वारा की गई व्यवस्था के तहत, हिंदू मंगलवार को परिसर में पूजा करते हैं और मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं. 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' नामक संगठन ने इस व्यवस्था को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में चुनौती दी, जिसने इस वर्ष 11 मार्च को एएसआई को छह सप्ताह के भीतर विवादित परिसर का 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' करने का निर्देश दिया. मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसायटी ने 11 मार्च के इस आदेश को चुनौती दी थी. वैज्ञानिक सर्वेक्षण 22 मार्च को शुरू हुआ.

भोजशाला में खुदाई का आरोप

मुस्लिम पक्ष के एक प्रतिनिधि ने दावा किया कि, परिसर में खुदाई की गई थी और जोर देकर कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस स्मारक की मूल संरचना प्रभावित या बदली न जाए. 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भोजशाला के 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि ''कोई भी भौतिक खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे संबंधित परिसर का चरित्र बदल जाए.''

हिंदू पक्ष ने किया ASI की याचिका का समर्थन

दूसरी ओर, मामले में हिंदू पक्ष के एक प्रतिनिधि ने विवादित स्मारक की सत्यता स्थापित करने और महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने आने का दावा करते हुए अधिक समय के लिए एएसआई की याचिका का समर्थन किया. भोजशाला मामले में हिंदू पक्ष के नेता गोपाल शर्मा ने पीटीआई से कहा, "पिछले छह सप्ताह में भोजशाला परिसर में एएसआई सर्वेक्षण के लिए नींव रखी गई है. अगर एएसआई को सर्वेक्षण के लिए अतिरिक्त समय मिलता है, तो ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) और अन्य उन्नत उपकरणों के इस्तेमाल से महत्वपूर्ण साक्ष्य मिल सकते हैं.''

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गोपाल शर्मा धार स्थित 'श्री महाराजा भोज सेवा संस्थान समिति' के सचिव हैं और भोजशाला मामले में 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' द्वारा हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के प्रतिवादियों में से एक हैं. शर्मा ने कहा कि ''भोजशाला के 200 मीटर के दायरे में अभी भी कुछ टूटी हुई मूर्तियां और अन्य अवशेष दिखाई दे रहे हैं, जो इस परिसर पर अतीत में हुए "हमले" की कहानी बयां करते हैं.''

शहर काजी बोले- निष्पक्षता से सर्वेक्षण करे ASI

धार के शहर काजी (प्रमुख मौलवी) वकार सादिक ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि एएसआई सर्वेक्षण में भौतिक उत्खनन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे भोजशाला परिसर का मूल चरित्र बदल जाए." सादिक ने जोर देकर कहा, "लेकिन, हाल ही में हमने परिसर के दक्षिणी हिस्से में फर्श पर दो से तीन फीट के गड्ढे खुदे हुए देखे. एएसआई को इस परिसर का पूरी निष्पक्षता से सर्वेक्षण करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए."

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