ETV Bharat / state

लोकसभा चुनाव में महिला वोटर बनेंगी 'गेम चेंजर'! मातृशक्ति पर राजनीतिक दलों की नजर, यहां समझें देवभूमि का गणित

Lok Sabha elections 2024 देश की आधी आबादी यानी मातृ शक्ति अब सत्ता बनाने और बिगाड़ने के खेल में वजीर बन गई है. यही कारण है कि उत्तराखंड में महिला वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए सभी राजनीतिक दल लगे हुए हैं. उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने जहां महिलाओं के लिए तमाम योजनाओं की शुरुआत की है तो वहीं कांग्रेस भी अपने स्तर पर लगी हुई है. दरअसल उत्तराखंड में महिला वोटर 50 प्रतिशत के आसपास हैं.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 8, 2024, 4:16 PM IST

देहरादून: आज आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको उनकी वोट की ताकत के बारे में बताते हैं, जिनके बल पर किसी पार्टी को न सिर्फ सत्ता की कुंजी मिल सकती है, बल्कि सत्ता छिन भी सकती है. लोकसभा चुनाव 2024 में अब ज्यादा वक्त नहीं है. इसीलिए आज हम आपको उत्तराखंड में महिला वोट की ताकत के बारे में बताते हैं और राजनीति में उसका गणित भी समझाते हैं.

उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने से पहले से ही यहां पर मातृ शक्तियों की अपनी एक विशेष पहचान रही है. बात उत्तराखंड से निकले विश्वव्यापी चिपको आंदोलन की प्रेरणा स्रोत रहीं गौरा देवी की हो या फिर उत्तराखंड राज्य आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेने वाली मातृशक्ति की. वहीं, अगर ये कहा जाए कि उत्तराखंड में सत्ता की चाबी महिला वोटरों के हाथ में है तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी. यही कारण है कि उत्तराखंड में महिला वोटरों को रिझाने के लिए राजनीतिक पार्टियां तमाम हथकंडे अपनाती हैं. इस बार भी राजनीति पार्टियां महिला वोटरों को रिझाने की मुहिम में जुटी हुई हैं.

2019 के चुनाव में मिला था बीजेपी को महिला शक्ति का साथ: साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह बीजेपी इस बार भी उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतकर इतिहास रचने की तैयारी कर रही है. यही वजह है कि बीजेपी का पूरा फोकस राज्य की आधी आबादी यानी मातृ शक्ति पर है.

2019 में बीजेपी का पांच प्रतिशत वोट बढ़ा था: लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को प्रदेश में तकरीबन 61 फीसदी वोट मिले थे. जबकि विपक्षी दल कांग्रेस का वोट 31 फीसदी पर ही रुक गया था. बीजेपी के अंदरूनी आकलन के मुताबिक 61 फीसदी वोट में सबसे ज्यादा मातृशक्ति का वोट भाजपा को मिला. इसके अलावा साल 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं ने बीजेपी को बढ़-चढ़कर वोट दिया था.

बीजेपी का प्रयास जीत अंतर हो पांच लाख: वहीं, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जो पांचों सीटें जीती थीं, उनमें जीत का अंतर ढाई से तीन लाख के बीच था. बीजेपी इस बार इस अंतर को और अधिक बढ़ाना चाहती है. पार्टी नेतृत्व तो चाहता है कि इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी न सिर्फ पांचों लोकसभा सीट जीतकर हैट्रिक लगाए, बल्कि हर सीट में जीत का अंतर 5 लाख के आसपास हो.

उत्तराखंड में महिला वोटर की संख्या 40 लाख: हालांकि अपने आप में यह आंकड़ा पहाड़ चढ़ने जैसा हो सकता है, लेकिन बीजेपी इसे मुमकिन बनाना चाहती है. इसे मुमकिन करने के लिए बीजेपी पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ मातृशक्ति के वोट को खींचने पर लगा रही है. उत्तराखंड में महिला वोटर्स की संख्या करीब 40 लाख के करीब है. लिहाजा भाजपा का पूरा टारगेट महिला वोटरों को साधने पर है. इसके लिए प्रदेश भर में कई कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं.

महिला वोटरों को रिझाने के लिए कांग्रेस-बीजेपी की कोशिश: उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए तमाम तरह के आयोजन कर रहे हैं. बीजेपी जहां नारी शक्ति वंदन कार्यक्रम, लखपति दीदी योजना, यूनिफॉर्म सिविल कोड और महिला आरक्षण जैसी योजनाओं के जरिए मातृशक्ति को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है तो वहीं कांग्रेस ने भी चुनाव में उतरने से पहले उत्तराखंड में महिलाओं की सुरक्षा समेत अन्य मुद्दों को उठा रखा है. हालांकि दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के कार्यक्रमों पर सवाल खड़े कर रही हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट के अनुसार बीजेपी की नीतियां और योजनाएं केवल दिखावा हैं. शीशपाल बिष्ट का आरोप है कि प्रदेश में नारी उत्पीड़न के मामले हों या फिर अन्य विषय सभी मसलों पर ये सरकार विफल रही है. वहीं बीजेपी के प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि आज पीएम मोदी के साथ समस्त नारी शक्ति का एक तरफा समर्थन देखने को मिल रहा है. इसकी वजह मोदी सरकार की महिलाओं के लिए जलाई जा रही तमाम कल्याणकारी योजनाएं हैं.

पढ़ें---

देहरादून: आज आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको उनकी वोट की ताकत के बारे में बताते हैं, जिनके बल पर किसी पार्टी को न सिर्फ सत्ता की कुंजी मिल सकती है, बल्कि सत्ता छिन भी सकती है. लोकसभा चुनाव 2024 में अब ज्यादा वक्त नहीं है. इसीलिए आज हम आपको उत्तराखंड में महिला वोट की ताकत के बारे में बताते हैं और राजनीति में उसका गणित भी समझाते हैं.

उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने से पहले से ही यहां पर मातृ शक्तियों की अपनी एक विशेष पहचान रही है. बात उत्तराखंड से निकले विश्वव्यापी चिपको आंदोलन की प्रेरणा स्रोत रहीं गौरा देवी की हो या फिर उत्तराखंड राज्य आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेने वाली मातृशक्ति की. वहीं, अगर ये कहा जाए कि उत्तराखंड में सत्ता की चाबी महिला वोटरों के हाथ में है तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी. यही कारण है कि उत्तराखंड में महिला वोटरों को रिझाने के लिए राजनीतिक पार्टियां तमाम हथकंडे अपनाती हैं. इस बार भी राजनीति पार्टियां महिला वोटरों को रिझाने की मुहिम में जुटी हुई हैं.

2019 के चुनाव में मिला था बीजेपी को महिला शक्ति का साथ: साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह बीजेपी इस बार भी उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतकर इतिहास रचने की तैयारी कर रही है. यही वजह है कि बीजेपी का पूरा फोकस राज्य की आधी आबादी यानी मातृ शक्ति पर है.

2019 में बीजेपी का पांच प्रतिशत वोट बढ़ा था: लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को प्रदेश में तकरीबन 61 फीसदी वोट मिले थे. जबकि विपक्षी दल कांग्रेस का वोट 31 फीसदी पर ही रुक गया था. बीजेपी के अंदरूनी आकलन के मुताबिक 61 फीसदी वोट में सबसे ज्यादा मातृशक्ति का वोट भाजपा को मिला. इसके अलावा साल 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं ने बीजेपी को बढ़-चढ़कर वोट दिया था.

बीजेपी का प्रयास जीत अंतर हो पांच लाख: वहीं, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जो पांचों सीटें जीती थीं, उनमें जीत का अंतर ढाई से तीन लाख के बीच था. बीजेपी इस बार इस अंतर को और अधिक बढ़ाना चाहती है. पार्टी नेतृत्व तो चाहता है कि इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी न सिर्फ पांचों लोकसभा सीट जीतकर हैट्रिक लगाए, बल्कि हर सीट में जीत का अंतर 5 लाख के आसपास हो.

उत्तराखंड में महिला वोटर की संख्या 40 लाख: हालांकि अपने आप में यह आंकड़ा पहाड़ चढ़ने जैसा हो सकता है, लेकिन बीजेपी इसे मुमकिन बनाना चाहती है. इसे मुमकिन करने के लिए बीजेपी पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ मातृशक्ति के वोट को खींचने पर लगा रही है. उत्तराखंड में महिला वोटर्स की संख्या करीब 40 लाख के करीब है. लिहाजा भाजपा का पूरा टारगेट महिला वोटरों को साधने पर है. इसके लिए प्रदेश भर में कई कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं.

महिला वोटरों को रिझाने के लिए कांग्रेस-बीजेपी की कोशिश: उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए तमाम तरह के आयोजन कर रहे हैं. बीजेपी जहां नारी शक्ति वंदन कार्यक्रम, लखपति दीदी योजना, यूनिफॉर्म सिविल कोड और महिला आरक्षण जैसी योजनाओं के जरिए मातृशक्ति को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है तो वहीं कांग्रेस ने भी चुनाव में उतरने से पहले उत्तराखंड में महिलाओं की सुरक्षा समेत अन्य मुद्दों को उठा रखा है. हालांकि दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के कार्यक्रमों पर सवाल खड़े कर रही हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट के अनुसार बीजेपी की नीतियां और योजनाएं केवल दिखावा हैं. शीशपाल बिष्ट का आरोप है कि प्रदेश में नारी उत्पीड़न के मामले हों या फिर अन्य विषय सभी मसलों पर ये सरकार विफल रही है. वहीं बीजेपी के प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि आज पीएम मोदी के साथ समस्त नारी शक्ति का एक तरफा समर्थन देखने को मिल रहा है. इसकी वजह मोदी सरकार की महिलाओं के लिए जलाई जा रही तमाम कल्याणकारी योजनाएं हैं.

पढ़ें---

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.