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दमोह से राहुल की उम्मीदवारी ने सबको चौंकाया, विवादों से रहा है पुराना नाता, पढ़ें सियासी सफर - दमोह बीजेपी प्रत्याशी प्रोफाइल

Rahul Lodhi Report Card: दमोह लोकसभा सीट से बीजेपी राहुल लोधी के नाम का ऐलान किया है. बीजेपी के इस फैसले ने सबको चौंका दिया है. वह दमोह से पहले भी विधायक रह चुके हैं और विवादों से उनका चोली दामन का साथ रहा है. पढ़िए राहुल लोधी का राजनीतिक सफर...

rahul lodhi report card
दमोह से राहुल की उम्मीदवारी ने सबको चौंकाया
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 4, 2024, 7:02 PM IST

दमोह। भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा में से 25 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए गए हैं. जिसमें दमोह से राहुल लोधी का नाम सामने आया है. हालांकि जो सर्वे किया गया था, उसमें रहली विधायक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक उर्फ दीपू भार्गव का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन भाजपा हाई कमान ने राहुल लोधी को प्रत्याशी बनाकर सबको चौंका दिया है. दरअसल यह नाम इसलिए भी लोगों को चौंका रहा है, क्योंकि राहुल लोधी के बयान और विवादों से उनका चोली दामन की तरह पुराना नाता है. वह दमोह विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं.

राहुल लोधी को विरासत में मिली राजनीति

राहुल सिंह लोधी हिंडोरिया के गढ़ी परिवार से आते हैं और राजनीति उन्हें विरासत में मिली है. दमोह लोकसभा के अंतर्गत ही आने वाली बड़ा मलहरा सीट से उनके चचेरे भाई प्रद्युम्न लोधी भी दो बार विधायक रह चुके हैं. 2018 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे. उसके बाद जब कमलनाथ सरकार गिर गई थी, तब प्रद्युम्न ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में वह जीत गए थे. ठीक इसी तरह 2018 के चुनाव में राहुल लोधी को कांग्रेस ने अपना चेहरा बनाया था. उन्होंने वर्तमान विधायक एवं पूर्व वित्त मंत्री भाजपा के कद्दावर नेता जयंत मलैया को महज 798 मतों से शिकस्त देकर भाजपा के गढ़ पर कब्जा जमाया था.

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में हुए थे शामिल

राहुल लोधी का यह मोहभंग कमलनाथ सरकार गिरने के महज 3 महीने बाद ही हो गया था. उन्होंने मेडिकल कॉलेज को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन का अध्यक्ष बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था. जयंत मलैया के लाख विरोध के बाद भी पार्टी ने उन्हें दमोह विधानसभा के लिए 2021 में हुए उपचुनाव में अपना प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन वह कांग्रेस के प्रत्याशी अजय टंडन से 17089 मतों के एक बड़े अंतर से से चुनाव हार गए थे. इसके बाद यह माना जा रहा था कि राहुल लोधी का राजनीतिक करियर लगभग खत्म सा हो गया है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान ने उनके कार्यकाल को बढ़ा दिया था.

Rahul Lodhi Report Card
दमोह से बीजेपी प्रत्याशी राहुल लोधी

इसके बाद यह माना जा रहा था कि उन्हें 2023 का विधानसभा टिकट नहीं मिलेगा और ठीक वैसा ही हुआ. उन्हें टिकट नहीं दिया गया. अब इस बार लोकसभा चुनाव में सर्वे में दूसरे नंबर पर नाम होने के बाद भी राहुल लोधी को टिकट दिए जाने के भाजपा की फैसले ने सबको चौंका दिया है, लेकिन राहुल लोधी खुद एक ऐसे नेता हैं, जो अपने बयानों और कार्यकलापों से लगातार लोगों को चौंकाते रहे हैं. कहा जा सकता है कि बयानों और विवादों से उनका पुराना नाता रहा है.

नगर परिषद के चुनाव से की राजनीतिक करियर की शुरुआत

दरअसल, राहुल लोधी के राजनीतिक कैरियर की शुरुआत हिंडोरिया नगर परिषद से हुई. वह परिवार की प्रतिष्ठा के चलती न केवल वार्ड मेंबर का चुनाव जीते बल्कि अपने ही कम खास व्यक्ति को नगर परिषद का अध्यक्ष और स्वयं उपाध्यक्ष बन गए. इसके बाद दूसरे कार्यकाल में उन्होंने अपनी मां को नगर परिषद का अध्यक्ष अध्यक्ष बनवाया था. इसके बाद 2014 में जब जिला पंचायत के चुनाव हुए तो वह सदस्य के रूप में टिकरी बुजुर्ग क्षेत्र से निर्वाचित होकर अध्यक्ष पद के लिए ताल ठोक रहे थे, उन्हें प्रहलाद पटेल का समर्थन हासिल था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री जयंत मलैया से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण अंत में प्रहलाद पटेल के ही खासमखास शिवचरण पटेल को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बना दिया गया था. जिससे राहुल अध्यक्ष बनते-बनते रह गए थे.

कन्यादान विवाह की घोषणा के बाद विवादों में आए

विधायक निर्वाचित होने के बाद 2019 में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत उन्होंने अपने गृह नगर हिंडोरिया की नगर परिषद में 3000 कन्यादान विवाह की घोषणा करके सबको चौंका दिया. तत्कालीन कलेक्टर जे विजय कुमार ने जब मामले की जांच के लिए चार कमेटियां बनाई और विवाह समारोह की वीडियोग्राफी और सत्यापन अपनी निगरानी में कराया, तो वह आंकड़ा महज 1000 रह गया था. उस समय भी भाजपा ने यह आरोप लगाए थे कि दरअसल 3000 जोड़ों की शादी के पीछे एक बड़ा भ्रष्टाचार है. जो राहुल लोधी ने किया है.

रेत कारोबारियों ने लगाए थे राहुल लोधी पर आरोप

दूसरी बार राहुल लोधी उस समय चर्चा में आए, जब उपचुनाव से महज 2 महीने पहले ही रेत कारोबारियों ने उन पर भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे. तीसरी बार उपचुनाव में हार के बाद जब उन्होंने मलैया परिवार पर खुलेआम चुनाव हरवाने के आरोप लगाए थे. तब भी उनके बयान को लेकर काफी विवाद हुआ था. इस विवाद के चलते भाजपा की प्रदेश इकाई ने जयंत मलैया गुट के 5 मंडल अध्यक्षों और उनके पुत्र सिद्धार्थ मलैया को 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया था.

यहां पढ़ें...

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जातिगत समीकरण सबसे बड़ा कारण

राहुल लोधी को टिकट देने के पीछे एक बड़ा समीकरण जातिवाद का भी है. दरअसल, दमोह लोकसभा में आठ विधानसभा सीटें आती हैं. जिनमें दमोह की चार सीटें दमोह, जबेरा, पथरिया और हटा शामिल है. जबकि छतरपुर जिले की एक सीट बड़ा मलहरा, सागर जिले की तीन सीटें बंडा, रहली व देवरी आती है. इनमें से देवरी, बंडा, बड़ा मलहरा, जबेरा, दमोह और पथरिया विधानसभा में लोधियों की बहुलता है. यह समाज निर्णायक भूमिका में है. भाजपा लोधियों को संभवतः नाराज करना नहीं चाहती है. इसलिए भी राहुल को उम्मीदवार बनाया गया है.

दमोह। भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा में से 25 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए गए हैं. जिसमें दमोह से राहुल लोधी का नाम सामने आया है. हालांकि जो सर्वे किया गया था, उसमें रहली विधायक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक उर्फ दीपू भार्गव का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन भाजपा हाई कमान ने राहुल लोधी को प्रत्याशी बनाकर सबको चौंका दिया है. दरअसल यह नाम इसलिए भी लोगों को चौंका रहा है, क्योंकि राहुल लोधी के बयान और विवादों से उनका चोली दामन की तरह पुराना नाता है. वह दमोह विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं.

राहुल लोधी को विरासत में मिली राजनीति

राहुल सिंह लोधी हिंडोरिया के गढ़ी परिवार से आते हैं और राजनीति उन्हें विरासत में मिली है. दमोह लोकसभा के अंतर्गत ही आने वाली बड़ा मलहरा सीट से उनके चचेरे भाई प्रद्युम्न लोधी भी दो बार विधायक रह चुके हैं. 2018 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे. उसके बाद जब कमलनाथ सरकार गिर गई थी, तब प्रद्युम्न ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में वह जीत गए थे. ठीक इसी तरह 2018 के चुनाव में राहुल लोधी को कांग्रेस ने अपना चेहरा बनाया था. उन्होंने वर्तमान विधायक एवं पूर्व वित्त मंत्री भाजपा के कद्दावर नेता जयंत मलैया को महज 798 मतों से शिकस्त देकर भाजपा के गढ़ पर कब्जा जमाया था.

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में हुए थे शामिल

राहुल लोधी का यह मोहभंग कमलनाथ सरकार गिरने के महज 3 महीने बाद ही हो गया था. उन्होंने मेडिकल कॉलेज को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन का अध्यक्ष बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था. जयंत मलैया के लाख विरोध के बाद भी पार्टी ने उन्हें दमोह विधानसभा के लिए 2021 में हुए उपचुनाव में अपना प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन वह कांग्रेस के प्रत्याशी अजय टंडन से 17089 मतों के एक बड़े अंतर से से चुनाव हार गए थे. इसके बाद यह माना जा रहा था कि राहुल लोधी का राजनीतिक करियर लगभग खत्म सा हो गया है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान ने उनके कार्यकाल को बढ़ा दिया था.

Rahul Lodhi Report Card
दमोह से बीजेपी प्रत्याशी राहुल लोधी

इसके बाद यह माना जा रहा था कि उन्हें 2023 का विधानसभा टिकट नहीं मिलेगा और ठीक वैसा ही हुआ. उन्हें टिकट नहीं दिया गया. अब इस बार लोकसभा चुनाव में सर्वे में दूसरे नंबर पर नाम होने के बाद भी राहुल लोधी को टिकट दिए जाने के भाजपा की फैसले ने सबको चौंका दिया है, लेकिन राहुल लोधी खुद एक ऐसे नेता हैं, जो अपने बयानों और कार्यकलापों से लगातार लोगों को चौंकाते रहे हैं. कहा जा सकता है कि बयानों और विवादों से उनका पुराना नाता रहा है.

नगर परिषद के चुनाव से की राजनीतिक करियर की शुरुआत

दरअसल, राहुल लोधी के राजनीतिक कैरियर की शुरुआत हिंडोरिया नगर परिषद से हुई. वह परिवार की प्रतिष्ठा के चलती न केवल वार्ड मेंबर का चुनाव जीते बल्कि अपने ही कम खास व्यक्ति को नगर परिषद का अध्यक्ष और स्वयं उपाध्यक्ष बन गए. इसके बाद दूसरे कार्यकाल में उन्होंने अपनी मां को नगर परिषद का अध्यक्ष अध्यक्ष बनवाया था. इसके बाद 2014 में जब जिला पंचायत के चुनाव हुए तो वह सदस्य के रूप में टिकरी बुजुर्ग क्षेत्र से निर्वाचित होकर अध्यक्ष पद के लिए ताल ठोक रहे थे, उन्हें प्रहलाद पटेल का समर्थन हासिल था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री जयंत मलैया से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण अंत में प्रहलाद पटेल के ही खासमखास शिवचरण पटेल को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बना दिया गया था. जिससे राहुल अध्यक्ष बनते-बनते रह गए थे.

कन्यादान विवाह की घोषणा के बाद विवादों में आए

विधायक निर्वाचित होने के बाद 2019 में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत उन्होंने अपने गृह नगर हिंडोरिया की नगर परिषद में 3000 कन्यादान विवाह की घोषणा करके सबको चौंका दिया. तत्कालीन कलेक्टर जे विजय कुमार ने जब मामले की जांच के लिए चार कमेटियां बनाई और विवाह समारोह की वीडियोग्राफी और सत्यापन अपनी निगरानी में कराया, तो वह आंकड़ा महज 1000 रह गया था. उस समय भी भाजपा ने यह आरोप लगाए थे कि दरअसल 3000 जोड़ों की शादी के पीछे एक बड़ा भ्रष्टाचार है. जो राहुल लोधी ने किया है.

रेत कारोबारियों ने लगाए थे राहुल लोधी पर आरोप

दूसरी बार राहुल लोधी उस समय चर्चा में आए, जब उपचुनाव से महज 2 महीने पहले ही रेत कारोबारियों ने उन पर भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे. तीसरी बार उपचुनाव में हार के बाद जब उन्होंने मलैया परिवार पर खुलेआम चुनाव हरवाने के आरोप लगाए थे. तब भी उनके बयान को लेकर काफी विवाद हुआ था. इस विवाद के चलते भाजपा की प्रदेश इकाई ने जयंत मलैया गुट के 5 मंडल अध्यक्षों और उनके पुत्र सिद्धार्थ मलैया को 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया था.

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जातिगत समीकरण सबसे बड़ा कारण

राहुल लोधी को टिकट देने के पीछे एक बड़ा समीकरण जातिवाद का भी है. दरअसल, दमोह लोकसभा में आठ विधानसभा सीटें आती हैं. जिनमें दमोह की चार सीटें दमोह, जबेरा, पथरिया और हटा शामिल है. जबकि छतरपुर जिले की एक सीट बड़ा मलहरा, सागर जिले की तीन सीटें बंडा, रहली व देवरी आती है. इनमें से देवरी, बंडा, बड़ा मलहरा, जबेरा, दमोह और पथरिया विधानसभा में लोधियों की बहुलता है. यह समाज निर्णायक भूमिका में है. भाजपा लोधियों को संभवतः नाराज करना नहीं चाहती है. इसलिए भी राहुल को उम्मीदवार बनाया गया है.

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