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इस गांव में बूढ़ी दादी के निधन पर बजा बैंड और शहनाई, बारात जैसी शवयात्रा देख लोग हैरान - damoh unique funeral procession

दमोह के ग्राम मड़ियादो में शुक्रवार उस समय लोग भौचक्के रह गए, जब एक बुजुर्ग महिला की मौत होने पर उनके परिजन ने बैंड बाजा व ढोल नागाड़े बजाते हुए अंतिम यात्रा निकाली. यह वाक्या क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. परिवार के लोगों ने आखिर ऐसा क्यों किया?

DAMOH UNIQUE FUNERAL PROCESSION
बैंड बाजा बारात के साथ दी गई अंतिम विदाई (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 3, 2024, 2:14 PM IST

दमोह: अंतिम विदाई तो लोगों ने बहुत देखी होगी, लेकिन मड़ियादो में बारात की तरह अंतिम यात्रा निकालकर विदाई दी गई. जिसमें बड़ी संख्या के लोगों ने भाग लिया. कहते हैं कि इंसान का जन्म और मरण यह दो ही वक्त ऐसे होते हैं, कि जहां हर्ष और विषाद दोनों का संयोग देखने को मिलता है. ऐसे ही हर्ष और विषाद के क्षण हटा ब्लॉक के ग्राम मड़ियादो में देखने को मिले. यहां पर एक महिला की मौत के बाद डीजे बैंड पार्टी, छतरी और संगीत की धुन पर महिला को अंतिम विदाई दी गई.

दमोह में बारात जैसी शव यात्रा (ETV Bharat)

बैंड बाजों के साथ निकाली गई अंतिम यात्रा

दरअसल हटा की रहवासी जगरानी साहू का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके पैतृक ग्राम मड़ियादो में शुक्रवार को अंतिम संस्कार के पूर्व किसी बारात जैसे माहौल में शवयात्रा निकाली गई. बैंड-बाजों और ढोल-नगाड़ों की संगीतमय धुनों के साथ मृत जगरानी साहू की अंतिम यात्रा निकाली गई. जिसमें साहू समाज के अलावा अन्य वर्ग के लोगों की खासी भीड़ रही. इस दौरान मड़ियादो के मुक्तिधाम में उपस्थित सभी लोगों ने दो मिनिट का मौन धारण कर मृतका की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की.

साहू परिवार में लंबे समय से चली आ रही यह परंपरा

बता दें कि यहां के साहू परिवार में यह परंपरा है कि जब किसी का निधन होता है, तो मृत्यु को शक नहीं बल्कि महोत्सव के रूप में मनाते हैं. यही कारण है कि जगरानी साहू को भी कुछ इसी अंदाज में विदाई दी गई. पिछले वर्ष जब जगरानी साहू की सास का निधन हुआ था. तब भी इसी तरह से बारात की तरह शोभा यात्रा निकालकर उन्हें भी अंतिम विदाई दी गई थी.

यहां पढ़ें...

शवयात्रा में बैंडबाजा-बारात, वृद्धा के निधन पर दमोह में निकाली गई अनोखी शवयात्रा

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मृत्यु पर मनाया चाहिए महोत्सवः हरिशंकर साहू

मृतका के परिजन हरिशंकर साहू ने बताया कि "मनुष्य का जन्म लाखों योनियों में भटकने के बाद प्रभु की कृपा से मिलता है. इसलिए जन्म के साथ मृत्यु को भी महोत्सव के रूप में मनाना चाहिए, जो मनुष्य इस देह को त्याग कर चला गया है. वह दोबारा संसार में आने वाला नहीं है, इसलिए जितनी खुशी उसके जन्म होने पर मनाई जाती है. उसकी विदाई भी उतनी सी धूमधाम से होनी चाहिए. यह परंपरा उनके परिवार में कई वर्षों से चली आ रही है. इसके फलस्वरूप शुक्रवार को भी जगरानी साहू की बैंड बाजों के साथ विदाई की गई."

दमोह: अंतिम विदाई तो लोगों ने बहुत देखी होगी, लेकिन मड़ियादो में बारात की तरह अंतिम यात्रा निकालकर विदाई दी गई. जिसमें बड़ी संख्या के लोगों ने भाग लिया. कहते हैं कि इंसान का जन्म और मरण यह दो ही वक्त ऐसे होते हैं, कि जहां हर्ष और विषाद दोनों का संयोग देखने को मिलता है. ऐसे ही हर्ष और विषाद के क्षण हटा ब्लॉक के ग्राम मड़ियादो में देखने को मिले. यहां पर एक महिला की मौत के बाद डीजे बैंड पार्टी, छतरी और संगीत की धुन पर महिला को अंतिम विदाई दी गई.

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बैंड बाजों के साथ निकाली गई अंतिम यात्रा

दरअसल हटा की रहवासी जगरानी साहू का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके पैतृक ग्राम मड़ियादो में शुक्रवार को अंतिम संस्कार के पूर्व किसी बारात जैसे माहौल में शवयात्रा निकाली गई. बैंड-बाजों और ढोल-नगाड़ों की संगीतमय धुनों के साथ मृत जगरानी साहू की अंतिम यात्रा निकाली गई. जिसमें साहू समाज के अलावा अन्य वर्ग के लोगों की खासी भीड़ रही. इस दौरान मड़ियादो के मुक्तिधाम में उपस्थित सभी लोगों ने दो मिनिट का मौन धारण कर मृतका की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की.

साहू परिवार में लंबे समय से चली आ रही यह परंपरा

बता दें कि यहां के साहू परिवार में यह परंपरा है कि जब किसी का निधन होता है, तो मृत्यु को शक नहीं बल्कि महोत्सव के रूप में मनाते हैं. यही कारण है कि जगरानी साहू को भी कुछ इसी अंदाज में विदाई दी गई. पिछले वर्ष जब जगरानी साहू की सास का निधन हुआ था. तब भी इसी तरह से बारात की तरह शोभा यात्रा निकालकर उन्हें भी अंतिम विदाई दी गई थी.

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मृत्यु पर मनाया चाहिए महोत्सवः हरिशंकर साहू

मृतका के परिजन हरिशंकर साहू ने बताया कि "मनुष्य का जन्म लाखों योनियों में भटकने के बाद प्रभु की कृपा से मिलता है. इसलिए जन्म के साथ मृत्यु को भी महोत्सव के रूप में मनाना चाहिए, जो मनुष्य इस देह को त्याग कर चला गया है. वह दोबारा संसार में आने वाला नहीं है, इसलिए जितनी खुशी उसके जन्म होने पर मनाई जाती है. उसकी विदाई भी उतनी सी धूमधाम से होनी चाहिए. यह परंपरा उनके परिवार में कई वर्षों से चली आ रही है. इसके फलस्वरूप शुक्रवार को भी जगरानी साहू की बैंड बाजों के साथ विदाई की गई."

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