जगदलपुर: अपनी सुंदरता के लिए मशहूर कांगेर घाटी में मगरमच्छों की भरमार है. सर्दी में जब पारा नीचे गिरने लगता है तब कांगेर नदी से निकलकर ये मगरमच्छ आराम से बालू में लेटर सनबाथ लेते नजर आते हैं. मगरमच्छों की इस फौज को देखने के लिए स्थानीय और दूर दराज से आए पर्यटक घंटों यहां टकटकी लगाए बैठे रहते हैं. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में मगरमच्छों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ी है कि उनकी गिनती करना भी मुश्किल हो गया है. कांग्रेस घाटी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन ने अब ये तय किया है कि इनकी गिनती कराई जाए.
मगरमच्छों के फौज की होगी गिनती: कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के डायरेक्टर धम्मशील गणवीर का कहना है कि इनके संरक्षण की कोशिश लंबे वक्त से चल रही है. मगरमच्छों को बाहरी लोगों से खतरा नहीं हो इसके लिए लगातार पेट्रोलिंग भी की जाती है. कांगेर वैली नेशनल पार्क की और से एक टीम भी बनाई गई है. जवानों की ये टीम लगातार इनकी निगरानी करती रहती है. मगरमच्छों की संख्या बढ़ने से इनकी सुरक्षा का भी खासा ध्यान रखना पड़ रहा है. पार्क प्रबंधन ने अब इनकी गिनती के लिए जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ एक टाइअप किया है, जिसके तहत 3 फरवरी से लेकर 4 फरवरी तक एक अभियान चलाया जाएगा. अभियान के जरिए इनकी गिनकी के काम को पूरा किया जाएगा. पार्क प्रबंधन के मुताबिक कांगेर नदी में 12 ऐसे प्वाइंट हैं जहां ये मगरमच्छ ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं. कांगेर नदी का एक सिरा ओडिशा की सीमा क्षेत्र में भी आता है. ओडिशा राज्य से भी बात कर इनके संरक्षण को लेकर चर्चा की जा रही है.
क्या है कांगेर नदी का इतिहास: बस्तर में बहने वाला कांगेर नदी जिसे कुछ लोग विशाल नाला भी कहते हैं ये करीब 15 किलोमीटर लंबा है. कांगेर नदी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के बीच होकर निकलती है. करीब 15 किलोमीटर तक सीधी बहने के बाद ये नदी शबरी नदी में जाकर मिल जाती है. कांगेर नदी का पानी शबरी नदी में मिलता है और शबरी नदी का पानी 130 किलोमीटर बहने के बाद जाकर गोदावरी नदी में मिलता है. गोदावरी नदी का पानी फिर जाकर समुद्र में मिलता है. माना जाता है कि बारिश के दिनों में जब नदी उफान पर होती है तब ये मगरमच्छ गोदावरी नदी से सफर करते हुए कांगेर नदी तक पहुंच जाते हैं. सुनील कश्यप, संवाददाता, जगदलपुर