Kabuli Chana Farmers MSP: मध्यप्रदेश के काबुली चना ट्रेडर्स एसोसिएशन ने काबुली चने को तत्काल स्टॉक लिमिट से मुक्त करने की मांग की है. स्टॉक लिमिट जारी रहने की स्थिति में कृषि उपज मंडियों में चने की खरीदी जल्द ही बंद करने की चेतावनी दी है. काबुली चना प्रदेश की ऐसी उपज है, जिसका ना तो समर्थन मूल्य सरकार तय करती है न ही यह दाल की श्रेणी में है. यही वजह है कि भारत सरकार के खाद एवं उपभोक्ता मंत्रालय ने विभिन्न फसलों के लिए 2021 में जारी किए गए स्टॉक लिमिट से काबुली चने को मुक्त रखा था.
चने की खेती करने वाले लाखों किसान होंगे प्रभावित
मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात के किसानों के साथ व्यापारियों और चने के उद्योग से जुड़े लाखों लोगों के लिए काबुली चने की फसल आमदनी का स्रोत रही है. अधिकांश चना विदेश में निर्यात होने के कारण देश में इसे डॉलर चना के नाम से भी जाना जाता है. फिलहाल भारत सरकार को काबुली चने से हर साल करीब 1500 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है. हाल ही में अचानक 21 जून को काबुली चने को स्टॉक लिमिट के दायरे में शामिल कर लिया गया है, जिसके चलते चने के किसानों के अलावा व्यापारी और उद्यमी परेशानी में आ गए हैं. चने पर स्टॉक लिमिट तय होने से किसानों के पास मौजूद चने की उपज की कृषि मंडी मे खरीदी रुकने की स्थिति बंद गई है.
काबुली चना ट्रेडर्स भी नाराज, उठाई मांग
दूसरी तरफ, समर्थन मूल्य घोषित नहीं होने के कारण भी सरकार मंडियों से चने की खरीदी नहीं कर रही है. लिहाजा काबुली चने के धंधे से जुड़े एक लाख से अधिक किसान अपनी फसल बेचने के लिए भटक रहे हैं. यही स्थिति चना खरीदने वाले व्यापारियों की है. काबुली चना ट्रेडर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मुकेश बंसल और इंदौर कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने बताया "देश में जब घरेलू तौर पर दलों के भाव आसमान छू रहे थे, तब भी भारत सरकार ने काबुली चने को तमाम तरह के प्रतिबंधों से मुक्त रखते हुए निर्यात की अनुमति दी. तब से अब तक देश से काबुली चने का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है. लेकिन अब स्टाक लिमिट तय होने से ना तो व्यापारी चने को एक्सपोर्ट कर सकने की मात्रा तक खरीद पाएंगे न ही किसान से उपज खरीद पाएंगे. मालवा निर्माण अंचल पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा, जहां बिक्री नहीं होने पर करीब 1 लाख से ज्यादा काबुली चने की खेती करना भी बंद कर देंगे."
खरीदी पर एकाधिकार की मोनोपॉली
काबुली चना ट्रेडर्स एसोसिएशन से जुड़े व्यापारियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि भारत सरकार के इस तरह के आदेश से स्पष्ट है कि देश में जब काबुली चने का उत्पादन नहीं होगा तो रूस जैसे देशों से भारत के कुछ चुनिंदा कारोबारी अपना एकाधिकार जमा कर काबुली चने का आयात करेंगे, जिससे भारतीय मुद्रा का भुगतान रूस के खजाने में हो सकेगा. इधर, अब तक मध्य प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के जो किसान एक से दो लाख मैट्रिक टन चने का निर्यात करते थे, वे भी अब चैन की फसल लेना छोड़ देंगे.
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... तो बाहरी देशों से खरीदना पड़ेगा
जाहिर है इंपोर्ट किए गए चने की उपभोक्ताओं के स्तर पर खरीदी दोगने दामों पर होगी, जिसका खामियाजा आम लोगों को ही भुगतना होगा. गौरतलब है मध्य प्रदेश में काबुली चने का इंपोर्ट 2003 में 100 टन के करीब मैक्सिको से किया गया था. इसके बाद से ही मध्य प्रदेश के शुजालपुर के अलावा मालवा-निमाड़ और अन्य इलाकों के किसान काबुली चने की उपज ले रहे हैं. बीते करीब 20 सालों में मध्य प्रदेश में ही काबुली चने की उपज करीब 5 लाख टन है, जिसका 80 फ़ीसदी उत्पादन मालवा निमाड़ इलाके में होता है.