देहरादून: इंसान की मूलभूत सुविधाओं में स्वास्थ्य सुविधा भी एक अहम हिस्सा है. ऐसे में सभी देश अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा सकें, इसके लिए हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाते हैं. इसका उद्देश्य यही है कि सरकार अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति न सिर्फ गंभीर हों, बल्कि लोगों को जागरूक करने के साथ ही स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं पर गहन मंथन कर सकें. ऐसे में जानते हैं उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति क्या है और क्या करने की जरूरत है?
इस साल की ये है थीम: दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को हुई थी. जिसके बाद पहली बार 7 अप्रैल 1950 को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया. इसके बाद हर साल दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाए जाने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल नई-नई थीम तैयार करता है, जिसके तहत जनता को जागरूक करने के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने पर जोर दिया जाता है. इस साल 2024 में विश्व स्वास्थ्य दिवस के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार' (My Health, My Right) थीम रखा है.
उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सेवा: उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सुविधा किसी से छिपी नहीं है. क्योंकि, प्रदेश में आए दिन स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में होने वाले मौत के मामले सामने आते रहे हैं. भले ही राज्य गठन के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति आई हो, लेकिन अभी भी प्रदेश के सीमांत क्षेत्र ऐसे हैं. जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. जिसके चलते मरीज को बेहतर इलाज के लिए शहरी क्षेत्र की ओर रुख करना पड़ता है.
स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में भी कई कारण है. कुछ जगहों पर अस्पताल तो हैं लेकिन वहां पर डॉक्टर नहीं है. कहीं अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड मशीन तो है, लेकिन एक्स रे टेक्नीशियन नहीं है. जिसके चलते खासकर पहाड़ी क्षेत्रों के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए कोई पहल नहीं की गई. बल्कि, सबसे ज्यादा पहल वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान की गई.
साल 2020 में कोरोना संक्रमण के दस्तक के बाद प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहले के मुकाबले काफी बेहतर कर दिया गया, लेकिन अभी भी शहरी क्षेत्र के अलावा खासकर दूरस्थ और पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति जस की तस बनी हुई है. प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनती रही है. बावजूद इसके राज्य सरकार इस बात का दावा करती है कि प्रदेश के सुदूर क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने पर काम किया जा रहा है.
अल्ट्रासाउंड के लिए मरीजों करना होता है महीनों इंतजार: सूबे के मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अल्ट्रासाउंड के लिए मरीजों को एक-एक महीने तक का इंतजार करना पड़ता है. स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्रों पर ज्यादातर गर्भवती महिला ही अल्ट्रासाउंड के लिए पहुंचती हैं. ऐसे में गर्भवती महिला की संख्या ज्यादा होने के चलते एक-एक महीने बाद अल्ट्रासाउंड का डेट दिया जाता है.
इतना ही नहीं सीएचसी पर एक ही अल्ट्रासाउंड टेक्नीशियन होने के चलते, जब टेक्नीशियन छुट्टी पर चला जाता है तो कई बार तो कई-कई दिनों तक अल्ट्रासाउंड ही नहीं हो पाते हैं. जिसे चलते गर्भवती महिलाओं और मरीजों को बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाना पड़ता है, जिससे न सिर्फ मरीज को दिक्कत होती है. बल्कि, उन्हें ज्यादा पैसा भी खर्च करना पड़ता है.
उत्तराखंड में डॉक्टरों की कमी बड़ी समस्या: राज्य सरकार प्रदेश के सभी राजकीय अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में शत प्रतिशत डॉक्टर की तैनाती का वादा और दावा करती रही है, लेकिन मौजूदा स्थिति ये है कि प्रदेश में अभी भी डॉक्टर की भारी कमी है. सबसे ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टरों की काफी कमी हैं. जिसके चलते इलाज नहीं हो पाते हैं. ऐसे में मरीजों को हायर सेंटर रेफर करना पड़ रहा है.
इतना ही नहीं पर्वतीय क्षेत्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती के लिए राज्य सरकार ने 'यू कोट वी पे' (You Quote We Pay) योजना भी शुरू की थी, लेकिन ये योजना भी परवान नहीं चढ़ पाई. हालांकि, लोकसभा चुनाव से पहले तमाम डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की भर्ती की गई है, लेकिन अभी भी प्रदेश में रेडियोलॉजिस्ट की भारी कमी होने के साथ ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी बड़ी कमी है.
होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टर की है भारी कमी: वैश्विक महामारी कोरोना काल के बाद लोगों का होम्योपैथिक और आयुर्वेद पर एक बार फिर भरोसा कायम होने लगा. लोग होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक की तरफ भागने लगे हैं, लेकिन उत्तराखंड की स्थिति ये है कि प्रदेश में होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टर्स की भारी कमी है.
आयुर्वेदिक विभाग में चिकित्सा अधिकारी आयुर्वेद के स्वीकृत 758 पदों मे से 253 पद खाली हैं. चिकित्साधिकारी यूनानी के स्वीकृत 5 पदों में से 3 पद खाली हैं. चिकित्साधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य के स्वीकृत 90 पदों में से 29 पद खाली हैं. इसी कड़ी में होम्योपैथिक विभाग के जिला स्तर पर चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत 111 पदों में से 27 पद खाली पड़े हैं.
हर साल बढ़ता है स्वास्थ्य विभाग का बजट: उत्तराखंड में मेडिकल कॉलेज के साथ ही सभी जिलों में जिला अस्पताल, 80 सीएचसी, 578 पीएचसी (टाइप A & B) और 1898 सब सेंटर हैं. हर साल स्वास्थ्य विभाग के बजट में बड़ा इजाफा किया जाता है. ताकि, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचा जा सके.
वित्तीय वर्ष 2023-24 में स्वास्थ्य (एलोपैथी) सुविधाओं के लिए 3530.46 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था. जिसमें से दिसंबर 2023 तक 2265.30 करोड़ रुपए अवमुक्त किया गया. जबकि, वित्तीय वर्ष 2022-23 में 3500.46 करोड़ रुपए, वित्तीय वर्ष 2021-22 में 2727.23 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था.
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