सवाई माधोपुर: जिले के चौथ का बरवाड़ा स्थित चौथ माता मंदिर में सात दिवसीय वार्षिक मेला शुक्रवार को संकट चतुर्थी के अवसर पर परवान चढ़ता नजर आया. सुबह से ही लाखों श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन कर अपनी और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना की. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए पुलिस एवं प्रशासन की व्यवस्था भी चाक चौबंद नजर आई.
आज चतुर्थी पर महिला श्रद्धालु उपवास रखकर चांद को अर्घ्य देती हैं. वार्षिक मेले को लेकर माता के दरबार को फूल बंगला झांकी से सजाया गया एवं माता का आकर्षक श्रंगार किया गया. वही मंदिर ट्रस्ट द्वारा माता को पहनाया गया ढाई किलो वजनी स्वर्ण मुकुट व नौलखा हार श्रद्धालुओं में विशेष आकर्षण का केंद्र रहा. सुबह 5 बजे मंगला आरती के बाद छप्पन भोग की झांकी सजाई गई. चौथ माता मंदिर ट्रस्ट सदस्य शक्ति सिंह ने बताया कि आज चतुर्थी के अवसर पर चौथमाता का लक्खी मेला आयोजित हो रहा है, जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के मंदिर में ढोक लगाएंगे.
उन्होंने बताया कि मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. साथ ही मंदिर में महिला व पुरुषों के प्रवेश व निकास द्वार अलग-अलग बनाए गए हैं. साथ ही मेले में सुरक्षा की दृष्टि से बड़ी संख्या में पुलिस जवान तैनात किए गए हैं. वहीं मेले में बीमार यात्रियों के उपचार के लिए चिकित्सकों की टीम तैनात की गई है. एंबुलेंस 108 सहित 24 घंटे आपातकालीन सेवाओं का भी इंतजाम किया गया है.
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मंदिर कमेटी सदस्य ने बताया कि चौथ माता मेले में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और इस बार भी बड़ी संख्या में माता के भक्तों का सैलाब उमड़ता हुआ नजर आ रहा है. कड़ाके की ठंड एवं शीतलहर के बावजूद श्रद्धालुओं में माता के दर्शन करने पहुंच रहे हैं. वहीं सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह से मुस्तैद नजर आ रहा है.
चौथ माता मंदिर को लेकर कई प्रकार की किंवदंतियां प्रचलित हैं. लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना 1451 में यहां के तत्कालीन शासक भीमसिंह ने की थी. 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी तथा पहाड़ी की तलहटी में तालाब का र्निमाण करवाया गया था. 16वीं शताब्दी में यह कस्बा चौहान वंश से मुक्त होकर राठौड़ वंश के अधीन आ गया था. इस वंश के शासकों में भी माता के प्रति गहरी आस्था थी. कहा जाता है कि राठौड़ वंश के शासक तेजसिंह राठौड़ ने 1671 में मुख्य मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक तिबारा बनवाया था. हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य करने से पहले आज भी माता को निमंत्रण देने आते हैं.
प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही चौथ माता को कुल देवी के रुप में पूजा जाता है. माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना जयपुर राजघरानें के द्वारा कराई गई थी. जब राव माधोसिह ने सवाई माधोपुर बसाया था. उसी दौरान यहां मंदिर भी बनवाया गया था. क्योंकि राव माधोसिंह माता को कुलदेवी के रुप में पूजते थे. कहा जाता है कि एक बार लड़ाई के दौरान मातेश्री नामक एक महिला के पति की मौत हो गई थी. इस पर महिला ने अपने पति के साथ सती होने की जिद की, तो राव माधासिंह ने सती प्रथा पर रोक लगा दी और महिला को सती नहीं होने दिया गया.
इस पर महिला ने माता के दरबार में गुहार लगाई. कहा जाता है कि माता ने महिला के पति को जीवनदान देकर जीवित किया. तभी से पूरे राजस्थान में महिलाएं माता के नाम से चौथ माता का व्रत करती हैं. तभी से महिलाएं करवा चौथ का उपवास रखती हैं और अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं. राव माधोसिंह ने ही इस कस्बे को माली समाज के लोगों को गद्दी के रुप में भेंट कर दिया था. तभी से यहां माता की पूजा माली समाज के द्वारा ही की जाती है.