जयपुर. जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय ने चिकित्सकीय लापरवाही से प्रीमैच्योर डिलीवरी के चलते मातृत्व सुख से वंचित होने के मामले में संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल प्रशासन और उसके तीन चिकित्सकों को दोषी माना है. इसके साथ ही आयोग ने अस्पताल प्रशासन पर 9 लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. वहीं, आयोग ने डॉ. फयाज, डॉ. रिद्धिमा और डॉ. प्रियंका पर भी दो-दो लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. आयोग ने कहा कि परिवादी को इलाज में खर्च की गई कुल 65 हजार रुपए की राशि भी ब्याज सहित लौटाई जाए.
आयोग अध्यक्ष ग्यारसी लाल मीना और सदस्य हेमतला अग्रवाल ने यह आदेश जया के परिवाद पर सुनवाई करते हुए दिया. परिवाद में अधिवक्ता विपुल शर्मा ने आयोग को बताया कि 13 अगस्त, 2020 को परिवादी 21 सप्ताह की गर्भवती थी. परिवादी 20 अगस्त की देर रात दुर्लभजी अस्पताल में भर्ती हो गई, जहां उसका समय पर इलाज नहीं किया गया. परिवादी की बच्चेदानी का मुंह खुलने के बाद भी इलाज नहीं किया गया और सुबह करीब दस बजे डॉ. फयाज के आने पर जानकारी दी गई कि प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण बच्चे की मौत हो गई है. इसके बाद परिवादी को उसकी जांच रिपोर्ट भी नहीं दी गई.
अस्पताल की दलीलों को आयोग ने नहीं माना : परिवादी डिस्चार्ज होने के बाद मुंबई लौट गई, जहां अक्टूबर 2010 को सोनोग्राफी कराने पर पता चला कि गर्भाशय में पूर्व गर्भ के अवशेष मौजूद थे. इससे स्पष्ट है कि दुर्लभजी अस्पताल में उसके इलाज में लापरवाही हुई है. ऐसे में उसे मुआवजा दिलाया जाए. इसके बचाव में अस्पताल प्रशासन व चिकित्सकों की ओर से कई दलीलें दी गई, लेकिन आयोग ने उन्हें नहीं माना. इसके साथ ही आयोग ने अस्पताल व चिकित्सकों पर हर्जाना लगाया है.