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गरीबों के पीएम आवास को लगी दलालों की नजर, एटीएम लेकर निकाल ली राशि नहीं बनाया मकान

Brokers grabbed PM Awas Money भरतपुर के उमरवाह ग्राम पंचायत में अनोखा मामला सामने आया है.यहां पांच साल पहले ग्रामीणों को मिली पीएम आवास की राशि दलाल खा गए.आज पांच साल बाद सरकार बदलने पर ग्रामीण आवास की मांग कर रहे हैं.

Brokers grabbed PM Awas Money
गरीबों के मकान को लगी दलालों की नजर
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 16, 2024, 5:22 PM IST

एटीएम लेकर निकाल ली राशि नहीं बनाया मकान

मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : एमसीबी जिले के भरतपुर में पीएम आवास की राशि दलालों ने खा ली. मामला ग्राम पंचायत उमरवाह के आश्रित गांव कारीमाटी का है. जहां सात हितग्राहियों का पीएम आवास योजना के तहत पैसा स्वीकृत हुआ था.लेकिन दलालों की गिद्ध नजर हितग्राहियों के पैसों पर गढ़ गई.जिसका नतीजा ये हुआ कि आज तक इन गरीबों का आवास पूरा नहीं हो सका है.दलालों ने हितग्राहियों के खातों से पूरा पैसा निकाल लिया.लेकिन मकान पूरा बनाकर नहीं दिया.आज पांच साल बाद भी हितग्राहियों का आवास पूरा नहीं हुआ है.

केस नंबर 1- हितग्राही कारीमाटी निवासी मानमति बताती है कि उनका आवास 2015-16 में स्वीकृत हुआ था. उसके पास राधे नामक ठेकेदार आया.जिसने उसे आवास बनाकर देने का वादा किया.ठेकेदार ने आवास बनाया लेकिन उसकी क्वॉलिटी बेहद खराब थी. बीते पांच साल में आवास कई जगहों से दरक गया है.जिसे ठीक करने के लिए ठेकेदार दोबारा नहीं आया.हालात ये है कि ये आवास अब रहने लायक नहीं है.

केस नंबर 2- ग्रामीण दल प्रताप सिंह को भी आवास के नाम पर ठगा गया. दल प्रताप की माने तो प्रदुम्न महराज नामक शख्स ने एटीएम एक्टिव करने की बात कही.जिसके बाद दल प्रताप ने प्रदुम्न को एटीएम दे दिया. इसके बाद बोला कि मैं ही आवास बनाकर दे दूंगा.दल प्रताप भी उसकी बातों में आ गया.इसके बाद प्रदुम्न ने आवास के नाम पर खाते से पैसे निकाल लिए.लेकिन आवास पूरा बनाकर नहीं दिया.

''आवास का निर्माण प्रदुम्न महाराज ने ही किया. किश्त निकालकर एटीएम कार्ड रख लिया है.आज तक पीएम आवास अधूरा पड़ा है. एक बार भी मुझे बैंक नहीं ले गया, कितना पैसा निकला इसकी जानकारी नहीं.'' दल प्रताप सिंह, ग्रामीण

केस नंबर 3- ग्रामीण फूलबाई को आवास की दो किश्त मिली थी. एक किश्त मिली तो उन्होने खुद ही अपना आवास बनाना शुरू किया.जो आधा बनकर तैयार हो गया था. दूसरी किश्त मिलने पर सचिव और ठेकेदार बैजनाथ उसके पास आए. दोनों ने आवास पूरा करने की बात कही. फूलबाई ने भरोसा करके आवास की राशि दोनों को दे दी.लेकिन पांच साल बाद भी ना आवास बना ना ही पैसा वापस किया गया.

इन तीनों ही मामलों में ग्रामीणों को ठगा गया है.ग्रामीणों ने अच्छे मकान की चाह में भरोसा करके राशि जिन्हें दी उन्होंने पूरा मकान बनाकर नहीं दिया. ठेकेदारों ने ग्रामीणों से उनके एटीएम कार्ड लिए थे जो अब तक वापस नहीं हुए हैं. आवास आज भी अधूरे पड़े हैं. जिससे भोले भाले आदिवासी ग्रामीण खुद हो ठगा सा महसूस कर रहे हैं.

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केस नंबर 1- हितग्राही कारीमाटी निवासी मानमति बताती है कि उनका आवास 2015-16 में स्वीकृत हुआ था. उसके पास राधे नामक ठेकेदार आया.जिसने उसे आवास बनाकर देने का वादा किया.ठेकेदार ने आवास बनाया लेकिन उसकी क्वॉलिटी बेहद खराब थी. बीते पांच साल में आवास कई जगहों से दरक गया है.जिसे ठीक करने के लिए ठेकेदार दोबारा नहीं आया.हालात ये है कि ये आवास अब रहने लायक नहीं है.

केस नंबर 2- ग्रामीण दल प्रताप सिंह को भी आवास के नाम पर ठगा गया. दल प्रताप की माने तो प्रदुम्न महराज नामक शख्स ने एटीएम एक्टिव करने की बात कही.जिसके बाद दल प्रताप ने प्रदुम्न को एटीएम दे दिया. इसके बाद बोला कि मैं ही आवास बनाकर दे दूंगा.दल प्रताप भी उसकी बातों में आ गया.इसके बाद प्रदुम्न ने आवास के नाम पर खाते से पैसे निकाल लिए.लेकिन आवास पूरा बनाकर नहीं दिया.

''आवास का निर्माण प्रदुम्न महाराज ने ही किया. किश्त निकालकर एटीएम कार्ड रख लिया है.आज तक पीएम आवास अधूरा पड़ा है. एक बार भी मुझे बैंक नहीं ले गया, कितना पैसा निकला इसकी जानकारी नहीं.'' दल प्रताप सिंह, ग्रामीण

केस नंबर 3- ग्रामीण फूलबाई को आवास की दो किश्त मिली थी. एक किश्त मिली तो उन्होने खुद ही अपना आवास बनाना शुरू किया.जो आधा बनकर तैयार हो गया था. दूसरी किश्त मिलने पर सचिव और ठेकेदार बैजनाथ उसके पास आए. दोनों ने आवास पूरा करने की बात कही. फूलबाई ने भरोसा करके आवास की राशि दोनों को दे दी.लेकिन पांच साल बाद भी ना आवास बना ना ही पैसा वापस किया गया.

इन तीनों ही मामलों में ग्रामीणों को ठगा गया है.ग्रामीणों ने अच्छे मकान की चाह में भरोसा करके राशि जिन्हें दी उन्होंने पूरा मकान बनाकर नहीं दिया. ठेकेदारों ने ग्रामीणों से उनके एटीएम कार्ड लिए थे जो अब तक वापस नहीं हुए हैं. आवास आज भी अधूरे पड़े हैं. जिससे भोले भाले आदिवासी ग्रामीण खुद हो ठगा सा महसूस कर रहे हैं.

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