छपरा: भिखारी ठाकुर का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है, खास कर बिहार और भोजपुरी समाज में. वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे. उन्हें सम्मान देने में केंद्र और राज्य सरकारें ‘भिखारी’ बना हुआ है. कोई उन्हें 'भोजपुरी का शेक्सपियर' कहता है. कोई 'अनगढ़ हीरा' कहता है. लेकिन भिखारी ठाकुर के परिवार को कोई आधिकारिक सम्मान आज तक नहीं मिल पाने का मलाल भी है.
कब हुआ था जन्म: भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता अपनी जातिगत व्यवस्था के आधार पर बंटे कार्य करते थे. लोगों की हजामत बनाना. पूजा-पाठ, शादी-ब्याह और जन्म-मृत्यु के अवसरों पर होने वाले कार्यक्रमों से भी उनकी गृहस्थी चलती थी.
9 वर्ष की उम्र में पहली बार स्कूल गए: भिखारी ठाकुर 9 वर्ष की उम्र में पहली बार स्कूल गए. मात्र अक्षर ज्ञान के बावजूद पूरा रामचरित मानस उन्हें कंठस्थ था. शुरुआती जीवन में वह रोजी-रोटी के लिए अपना घर-गांव छोडकर खड़गपुर चले गए थे. कुछ वक्त तक वहां नौकरी की. तीस वर्षों तक पारंपरिक पेशे से जुड़े रहे. अपने गांव लौटे तो लोक कलाकारों की एक नृत्य मंडली बनाई. जिसके बाद वह रामलीला करने लगे. वह कई स्तरों पर कला-साधना करने के साथ साथ भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे.
भिखारी ठाकुर की प्रसिद्ध रचनाएं: उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा असनान, बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार आदि शामिल हैं. भिखारी ठाकुर का कथा संसार किसी किताबी विमर्श के आधार पर कल्पनालोक के चित्रण पर आधारित नहीं था. किताबी ज्ञान के नाम पर भिखारी ठाकुर बिल्कुल भिखारी रह गए थे.
रामलीला का मंचन से मिली सराहना: मेदिनीपुर आना भिखारी ठाकुर के जीवन की सबसे प्रमुख घटना रही. वहां उन्होंने रामलीला देखा और उनके भीतर का कलाकार धीरे-धीरे उन पर हावी होना शुरू हो गया. हाथ से उस्तरे छूटते गए और मुंह से कविताओं का प्रवाह फूटना शुरू हो गया. वापस गांव आए और गांव में ही रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया. लोगों ने उनकी रामलीला की काफी सराहना भी की.
संस्थाएं और संगठन उठा रही लाभ: भिखारी ठाकुर के नाम पर कई संस्थाएं और कई संगठन लाभ उठा रहे हैं, लेकिन भोजपुरी के इस शेक्सपियर को आज तक उचित सम्मान नहीं मिला है. भिखारी ठाकुर के परिजनों ने सारण के जिला अधिकारी से लेकर बिहार के राज्यपाल डॉ राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से भी गुहार लगाई है कि भोजपुरी के शेक्सपियर को उचित सम्मान मिले., लेकिन आज तक यह मामला रद्दी की टोकरी में पड़ा हुआ है.
सम्मान नहीं मिलने से भिखारी ठाकुर का परिवार आहत: वहीं उनके शिष्य रामचंद्र मांझी को काफी सम्मान मिला है. इससे उनके परिजन काफी आहत है. परिजनों ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने सम्मान देने का कौन सा नियम लगाया कि भोजपुरी के शेक्सपियर को उचित सम्मान नहीं देकर उनके शिष्य को सम्मान दे दिया.
"जल्द से राज्य सरकार और केंद्र सरकार भिखारी ठाकुर को उचित सम्मान दें. तभी इस भोजपुरी के महान कलाकार की आत्मा को शांति मिलेगी. हम लोग बराबर इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार इसपर विचार नहीं की." -सुशील ठाकुर, प्रपौत्र भिखारी ठाकुर
जयंती के नाम पर हो रही खानापूर्ति: भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील ने जिला प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर की जयंती के नाम पर केवल राजकीय समारोह आयोजित कर खाना पूर्ति किया जाता है तथा कुछ स्थानीय कलाकार को बुलाकर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जबकि बिहार स्तर के और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों को इस समारोह में बुलाना चाहिए.
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